1/15/2009

"प्रेम"

"प्रेम"

भावों से भी व्यक्त ना हो,
ना अक्षर में बांधा जाए
खामोशी की व्याकरण बांची
अर्थ नही कोई मिलपाये
अश्रु से भी प्रकट ना हो
ना अधरों से छलका जाए
मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये


http://vangmaypatrika.blogspot.com/2009/01/blog-post_15.html

32 comments:

makrand said...

भावों से भी व्यक्त ना हो,
ना अक्षर में बांधा जाए

bahut khub
well edited too

Smart Indian said...

"अश्रु से भी प्रकट ना हो, ना अधरों से छलका जाए"
बहुत सटीक परिभाषा.

Udan Tashtari said...

ये तो अनुभूति है, अहसासने के लिए.

सुन्दर.

regards :)

Rakesh Kaushik said...

bahut hi sundar prayas hai in bhavnao ko shabdo me bandhne ka.


It's really nice to feel.

विवेक सिंह said...

ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये

बहुत नाइंसाफी है :)

Unknown said...

अश्रु से भी प्रकट ना हो
ना अधरों से छलका जाए
मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये .....

ati sundar...

ताऊ रामपुरिया said...

"अश्रु से भी प्रकट ना हो,
ना अधरों से छलका जाए"

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.

रामराम.

Anonymous said...

बेहद सुंदर लिखा है आपने ....
अश्रु से भी प्रकट ना हो
ना अधरों से छलका जाए
मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये
बहुत ही सुंदर शब्दों में इन कोमल भावनाओं को उकेरा है. इसका अभिवादन मैं अपनी ही एक रचना से करना चाहूँगा ---
कैसे जान पाओगी इसे
यह न तो शब्दों में ढल सकता है
और न ही चित्रों में उभर सकता है
कोई नही है इसका रंग रूप
यह न तो फूलों की खुशबू में समा सकता है
और न ही मोतियों की चमक में बिखर सकता है
परे है यह हर गंध और चमक से
यह न तो चेहरे के भावों में सिमट सकता है
और न ही आंसुओं में घुल सकता है
अव्यक्त है यह हर भंगिमा से
कैसे जान पाओगी इसे
यह जो मेरी नीदों में और जाग्रत पलों में
यह जो मेरे खाली और व्यस्त क्षणों में
हर पल चलता है मेरे साथ
तुम्हारी प्रतिच्छाया बनकर

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

ek ahasas hai ye ruh kee mahki khushbu payar ko payar hee rahane do koi naam naa do.payar na to shbdo ka gulam hai naa bhasa ka.narayan narayan

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

aapki rachna to hai hi hamesha ki tarah, lekin pratap ji ne bhi bahut umda rachna tippanni ke roop me prastut ki hai.

"अर्श" said...

bahot khub likha hai aapne behad umda dhero badhai aapko.......



regards
arsh

रंजू भाटिया said...

मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये

सुंदर बात कही

Vinay said...

हम कितने बड़े प्रसंशक हो गये हैं आपको कैसे बतायें प्रेम के ऊपर लिखने वाले बहुत पर सबमें वह दम नहीं जो आज कल मुझे आपकी कविताओं में दिख रहा है।

---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम

---मेरा पृष्ठ
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

बवाल said...

कितनी ख़ूबसूरती से `नज़र’ आ रहा `प्रेम' आपकी कविता में प्रतिपल सकुचाता हुआ। सुन्दर भावनाओं से ओतप्रोत इस कविता के लिए बधाई।

Mukesh Garg said...

pream ka bahut hi sunder warnan kiya hai aapne,

jis par iske alawa kuch or likh pana mukmkin nahi hai.



badhiyan

मोहन वशिष्‍ठ said...

भावों से भी व्यक्त ना हो,
ना अक्षर में बांधा जाए
खामोशी की व्याकरण बांची
अर्थ नही कोई मिलपाये

वाह जी हमेशा की तरह बेहतरीन कविता

राज भाटिय़ा said...

अश्रु से भी प्रकट ना हो
ना अधरों से छलका जाए
मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये
यह कविता तो सच मै किसी देवदास के लिये होगी, या फ़िर एक बाप के प्यार को दर्शाती है...
यह दोनो ही बहुत प्यार करते है लेकिन दर्शाते कभी नही.
धन्यवाद सीमा जी

Arvind Mishra said...

प्रेम परिभाषित !
प्रेम की मौन अभिवयक्ति -जी हाँ सचमुच वही तो है प्रेम !

मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मुहब्बतों की कहानियां
जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो
(बशीर बद्र )

सचिन मिश्रा said...

Bahut badiya.

Gyan Dutt Pandey said...

सही। प्रेम अभिव्यक्ति कम, अहसास अधिक मांगता है।

Anonymous said...

प्रेम की परिभाषा - सुंदर अभिव्यक्ति.

Anonymous said...

"तेरा गम जब से मैने थामा है, कुछ न कुछ छूटता ही रहता है .. मैं कहाँ तक संभालूं दिल का मकाँ रोज़ कुछ टूटता ही रहता है ...."

uchit1980@gmail.com

Anonymous said...

सीमा जी नमस्कार,
आप पे हक़ जताते हुए एक पुराने ब्लोगिया रिश्ते से ये कहना है के आप अब मेरे ब्लॉग पे नही आती पता नही क्यूँ अगर मैंने कोई गलती करी हो जाने-अनजाने में तो मुझे माफ़ करें. आप सबों के स्नेह से ही मुझे अच्छा लिखने का प्रोत्साहन मिलता रहा है ...जब से मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया आपका साथ मिलता रहा है मगर इधर कुछ दिनों से आपके स्नेह से वंचित हूँ...कृपया एसा न करें...
http://prosingh.blogspot.com/

अर्श

seema gupta said...

"@ Arsh I am sorry if u felt like this.... may be i could not noticed your postings in time, please do keep writing , my good wishes are always with you"

Regards

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाहवा.. बहुत अच्छी कविता.. सीमा जी.. प्रेमपूर्ण..

vijay kumar sappatti said...

seema ji this is one of the finest writings of you , and speciallly

मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये

these are ultimate .. kudos ..

aapko bahut badhai ..

vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com

डॉ .अनुराग said...

bahut dino baad aapko padha..in dino aapki lekhni me ek khasi paripakvta mahsoos ki ja rahi hai...kavita bahut sundar hai.

महेंद्र मिश्र.... said...

भावों से भी व्यक्त ना हो,
ना अक्षर में बांधा जाए
खामोशी की व्याकरण बांची
अर्थ नही कोई मिलपाये
सीमा जी
बहुत ही बिंदास . खामोशी की कोई सीमा नही होती है और न ही इसका अर्थ निकालता है . बढ़िया भावो से परिपूर्ण मनभावन . बधाई ....

श्रद्धा जैन said...

Prem yahi hai
bhaut khmoshi se kam shabdon main aapne likha hai
bahut hi sunder

Anonymous said...

so there is just the feelings

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

प्रेम जिसे कहते हैं.....!!
मचल जाए तो किसी ठौर से ना बांधा जाए......
इस सकुचाहट के पीछे कितना कुछ बहता जाए......
बंद आंखों से ये आंसू पीता जाए....
और आँख खुले तो जैसे सैलाब सा बह जाए....
बेशक मौन अपने मौन में.....
दर्द ढेर सारे पी जाता हो......
मगर मौन जो टूटे.....
जिह्वा फफक कर रह जाए....
समूची आत्मा को आंखों में उतार ले जो....
प्रेम जिसे कहते हैं....
वो पलकों पे उतर आए.....

Alpana Verma said...

ढाई अक्षर के इस शब्द को कैसे समझाया जाए?/इसे अनुभूत ही किया जा सकता है.
मौन आवरण में सिमटा...वाह क्या बात कही है!
बहुत ही सुंदर रचना और भाव,
कविता में ऊपर का चित्र बेहद खूबसूरत है..!