बेहद सुंदर लिखा है आपने .... अश्रु से भी प्रकट ना हो ना अधरों से छलका जाए मौन आवरण मे सिमटा ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये बहुत ही सुंदर शब्दों में इन कोमल भावनाओं को उकेरा है. इसका अभिवादन मैं अपनी ही एक रचना से करना चाहूँगा --- कैसे जान पाओगी इसे यह न तो शब्दों में ढल सकता है और न ही चित्रों में उभर सकता है कोई नही है इसका रंग रूप यह न तो फूलों की खुशबू में समा सकता है और न ही मोतियों की चमक में बिखर सकता है परे है यह हर गंध और चमक से यह न तो चेहरे के भावों में सिमट सकता है और न ही आंसुओं में घुल सकता है अव्यक्त है यह हर भंगिमा से कैसे जान पाओगी इसे यह जो मेरी नीदों में और जाग्रत पलों में यह जो मेरे खाली और व्यस्त क्षणों में हर पल चलता है मेरे साथ तुम्हारी प्रतिच्छाया बनकर
अश्रु से भी प्रकट ना हो ना अधरों से छलका जाए मौन आवरण मे सिमटा ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये यह कविता तो सच मै किसी देवदास के लिये होगी, या फ़िर एक बाप के प्यार को दर्शाती है... यह दोनो ही बहुत प्यार करते है लेकिन दर्शाते कभी नही. धन्यवाद सीमा जी
सीमा जी नमस्कार, आप पे हक़ जताते हुए एक पुराने ब्लोगिया रिश्ते से ये कहना है के आप अब मेरे ब्लॉग पे नही आती पता नही क्यूँ अगर मैंने कोई गलती करी हो जाने-अनजाने में तो मुझे माफ़ करें. आप सबों के स्नेह से ही मुझे अच्छा लिखने का प्रोत्साहन मिलता रहा है ...जब से मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया आपका साथ मिलता रहा है मगर इधर कुछ दिनों से आपके स्नेह से वंचित हूँ...कृपया एसा न करें... http://prosingh.blogspot.com/
"@ Arsh I am sorry if u felt like this.... may be i could not noticed your postings in time, please do keep writing , my good wishes are always with you"
भावों से भी व्यक्त ना हो, ना अक्षर में बांधा जाए खामोशी की व्याकरण बांची अर्थ नही कोई मिलपाये सीमा जी बहुत ही बिंदास . खामोशी की कोई सीमा नही होती है और न ही इसका अर्थ निकालता है . बढ़िया भावो से परिपूर्ण मनभावन . बधाई ....
प्रेम जिसे कहते हैं.....!! मचल जाए तो किसी ठौर से ना बांधा जाए...... इस सकुचाहट के पीछे कितना कुछ बहता जाए...... बंद आंखों से ये आंसू पीता जाए.... और आँख खुले तो जैसे सैलाब सा बह जाए.... बेशक मौन अपने मौन में..... दर्द ढेर सारे पी जाता हो...... मगर मौन जो टूटे..... जिह्वा फफक कर रह जाए.... समूची आत्मा को आंखों में उतार ले जो.... प्रेम जिसे कहते हैं.... वो पलकों पे उतर आए.....
ढाई अक्षर के इस शब्द को कैसे समझाया जाए?/इसे अनुभूत ही किया जा सकता है. मौन आवरण में सिमटा...वाह क्या बात कही है! बहुत ही सुंदर रचना और भाव, कविता में ऊपर का चित्र बेहद खूबसूरत है..!
32 comments:
भावों से भी व्यक्त ना हो,
ना अक्षर में बांधा जाए
bahut khub
well edited too
"अश्रु से भी प्रकट ना हो, ना अधरों से छलका जाए"
बहुत सटीक परिभाषा.
ये तो अनुभूति है, अहसासने के लिए.
सुन्दर.
regards :)
bahut hi sundar prayas hai in bhavnao ko shabdo me bandhne ka.
It's really nice to feel.
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये
बहुत नाइंसाफी है :)
अश्रु से भी प्रकट ना हो
ना अधरों से छलका जाए
मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये .....
ati sundar...
"अश्रु से भी प्रकट ना हो,
ना अधरों से छलका जाए"
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
रामराम.
बेहद सुंदर लिखा है आपने ....
अश्रु से भी प्रकट ना हो
ना अधरों से छलका जाए
मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये
बहुत ही सुंदर शब्दों में इन कोमल भावनाओं को उकेरा है. इसका अभिवादन मैं अपनी ही एक रचना से करना चाहूँगा ---
कैसे जान पाओगी इसे
यह न तो शब्दों में ढल सकता है
और न ही चित्रों में उभर सकता है
कोई नही है इसका रंग रूप
यह न तो फूलों की खुशबू में समा सकता है
और न ही मोतियों की चमक में बिखर सकता है
परे है यह हर गंध और चमक से
यह न तो चेहरे के भावों में सिमट सकता है
और न ही आंसुओं में घुल सकता है
अव्यक्त है यह हर भंगिमा से
कैसे जान पाओगी इसे
यह जो मेरी नीदों में और जाग्रत पलों में
यह जो मेरे खाली और व्यस्त क्षणों में
हर पल चलता है मेरे साथ
तुम्हारी प्रतिच्छाया बनकर
ek ahasas hai ye ruh kee mahki khushbu payar ko payar hee rahane do koi naam naa do.payar na to shbdo ka gulam hai naa bhasa ka.narayan narayan
aapki rachna to hai hi hamesha ki tarah, lekin pratap ji ne bhi bahut umda rachna tippanni ke roop me prastut ki hai.
bahot khub likha hai aapne behad umda dhero badhai aapko.......
regards
arsh
मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये
सुंदर बात कही
हम कितने बड़े प्रसंशक हो गये हैं आपको कैसे बतायें प्रेम के ऊपर लिखने वाले बहुत पर सबमें वह दम नहीं जो आज कल मुझे आपकी कविताओं में दिख रहा है।
---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
---मेरा पृष्ठ
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
कितनी ख़ूबसूरती से `नज़र’ आ रहा `प्रेम' आपकी कविता में प्रतिपल सकुचाता हुआ। सुन्दर भावनाओं से ओतप्रोत इस कविता के लिए बधाई।
pream ka bahut hi sunder warnan kiya hai aapne,
jis par iske alawa kuch or likh pana mukmkin nahi hai.
badhiyan
भावों से भी व्यक्त ना हो,
ना अक्षर में बांधा जाए
खामोशी की व्याकरण बांची
अर्थ नही कोई मिलपाये
वाह जी हमेशा की तरह बेहतरीन कविता
अश्रु से भी प्रकट ना हो
ना अधरों से छलका जाए
मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये
यह कविता तो सच मै किसी देवदास के लिये होगी, या फ़िर एक बाप के प्यार को दर्शाती है...
यह दोनो ही बहुत प्यार करते है लेकिन दर्शाते कभी नही.
धन्यवाद सीमा जी
प्रेम परिभाषित !
प्रेम की मौन अभिवयक्ति -जी हाँ सचमुच वही तो है प्रेम !
मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मुहब्बतों की कहानियां
जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो
(बशीर बद्र )
Bahut badiya.
सही। प्रेम अभिव्यक्ति कम, अहसास अधिक मांगता है।
प्रेम की परिभाषा - सुंदर अभिव्यक्ति.
"तेरा गम जब से मैने थामा है, कुछ न कुछ छूटता ही रहता है .. मैं कहाँ तक संभालूं दिल का मकाँ रोज़ कुछ टूटता ही रहता है ...."
uchit1980@gmail.com
सीमा जी नमस्कार,
आप पे हक़ जताते हुए एक पुराने ब्लोगिया रिश्ते से ये कहना है के आप अब मेरे ब्लॉग पे नही आती पता नही क्यूँ अगर मैंने कोई गलती करी हो जाने-अनजाने में तो मुझे माफ़ करें. आप सबों के स्नेह से ही मुझे अच्छा लिखने का प्रोत्साहन मिलता रहा है ...जब से मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया आपका साथ मिलता रहा है मगर इधर कुछ दिनों से आपके स्नेह से वंचित हूँ...कृपया एसा न करें...
http://prosingh.blogspot.com/
अर्श
"@ Arsh I am sorry if u felt like this.... may be i could not noticed your postings in time, please do keep writing , my good wishes are always with you"
Regards
वाहवा.. बहुत अच्छी कविता.. सीमा जी.. प्रेमपूर्ण..
seema ji this is one of the finest writings of you , and speciallly
मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये
these are ultimate .. kudos ..
aapko bahut badhai ..
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
bahut dino baad aapko padha..in dino aapki lekhni me ek khasi paripakvta mahsoos ki ja rahi hai...kavita bahut sundar hai.
भावों से भी व्यक्त ना हो,
ना अक्षर में बांधा जाए
खामोशी की व्याकरण बांची
अर्थ नही कोई मिलपाये
सीमा जी
बहुत ही बिंदास . खामोशी की कोई सीमा नही होती है और न ही इसका अर्थ निकालता है . बढ़िया भावो से परिपूर्ण मनभावन . बधाई ....
Prem yahi hai
bhaut khmoshi se kam shabdon main aapne likha hai
bahut hi sunder
so there is just the feelings
प्रेम जिसे कहते हैं.....!!
मचल जाए तो किसी ठौर से ना बांधा जाए......
इस सकुचाहट के पीछे कितना कुछ बहता जाए......
बंद आंखों से ये आंसू पीता जाए....
और आँख खुले तो जैसे सैलाब सा बह जाए....
बेशक मौन अपने मौन में.....
दर्द ढेर सारे पी जाता हो......
मगर मौन जो टूटे.....
जिह्वा फफक कर रह जाए....
समूची आत्मा को आंखों में उतार ले जो....
प्रेम जिसे कहते हैं....
वो पलकों पे उतर आए.....
ढाई अक्षर के इस शब्द को कैसे समझाया जाए?/इसे अनुभूत ही किया जा सकता है.
मौन आवरण में सिमटा...वाह क्या बात कही है!
बहुत ही सुंदर रचना और भाव,
कविता में ऊपर का चित्र बेहद खूबसूरत है..!
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