2/04/2009

"एहसास "

"एहसास"

हर साँस मे जर्रा जर्रा
पलता है कुछ,
यूँ लगे साथ मेरे
चलता है कुछ.
सोच की गागर से
निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ

http://vangmaypatrika.blogspot.com/
http://swargvibha.0fees.net/march2009/Kavita/seema%20gupta.html

47 comments:

विवेक सिंह said...

आप हास्य लिखें तो मुझे आश्चर्य न होगा !

दर्द लिखतीं हैं तो होता है !

अजीब सामंजस्य बिठाया हुआ है आपने !

दिल को छू गई रचना !

बवाल said...

जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
अ हा ! क्या बात कही सीमा जी, बहुत बहुत बहुत लाजवाब। बहुत ही उम्दा पंक्तियाँ सचित्र। आलातरीन !

Smart Indian said...

बहुत सुंदर! पढ़कर अपनी कुछ लाइनें याद आ गयीं.
सब कुछ तो खो गया है क्या पास रह गया है
तुम साथ हो ये झूठा अहसास रह गया है
हाथों से फिसले लम्हे फ़िर किसको मिल सके हैं
जाती हवा का झोंका चुपके से कह गया है

Anonymous said...

विवेक की बात में भी दम है, कविता में दर्द है इसलिये हा हा हा हा...

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) said...

कहीं तो कुछ बदला है
कल जो स्याह दिख रहा था
आज उजला है
वेदना के वृक्ष के नीचे से
कोई दूसरा अंकुर निकला है
जो जमा था अन्दर बर्फ सा
आज कुछ तो पिघला है

मुझे आपकी ऐसी रचनाएं बेहद पसंद हैं .

"अर्श" said...

बहोत ही खुबसूरत बहोत बढ़िया लिखा है सीमा जी बहोत दिनों के बाद आपको पढने को मिला सुबह सुबह मज़ा आगया ... ढेरो बधाई आपको

अर्श

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह.... खूबसूरत अहसासों से भरपूर काव्याभिव्यक्ति...

Alpana Verma said...

ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ

--बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ हैं..मोम का बर्फ की मानिंद पिघलना अद्भुत कल्पना है...सुंदर रचना!-

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

kisi ne kaha hai "mit jane do in hasrato ko,ye bhee to khun piti thi apna" bar bar har bar aapki rachna ko good,better,best kahana nahi bhata, iske bad kya shabd hai apne ko nahi aata. narayan narayan

Udan Tashtari said...

ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???

जो मोम बनके मुझमे ,

बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ



-जबरदस्त!! वाह!!

Rakesh Kaushik said...

aaj dil garden garden ho gya.
sach me bahut hi umda likhi hai,
kafi dino baad dil ke kareeb koi rachna padhne ko mili hai

Vinay said...

हर बार की तरह दिल में बस जाने वाली कविता!

चाँद, बादल और शाम

Anonymous said...

आपकी कविता की दाद देने के लिये नये शब्द गढ़्ने पडे़गें.. आप हर बार कुछ नया ले कर आती है और हम है जो हर बार बस वाह वाह किये जा्तें है..

Science Bloggers Association said...

सोच की गागर से
निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???

एक रूमानी और पुरअसर ख्याल। मुबारकबाद कुबूल फरमाएँ।

मीत said...

ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
बहुत सुंदर शब्द प्रयोग किए हैं...
सुंदर...
मीत

कुश said...

पहली दो पंक्तिया ही कमाल करती है..

ताऊ रामपुरिया said...

जो मोम बनके मुझमे ,

बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ

बहुत लाजवाब.

रामराम.

Anil Pusadkar said...

अब तारीफ़ के लिए और क्या बाकी रह गया।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

एक बार फिर लाजवाब कर दिया.

मोहन वशिष्‍ठ said...

19 Comments
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Blogger विवेक सिंह said...

आप हास्य लिखें तो मुझे आश्चर्य न होगा !

दर्द लिखतीं हैं तो होता है !

अजीब सामंजस्य बिठाया हुआ है आपने !

दिल को छू गई रचना !


विवेक जी ने भी अच्‍छी टिप्‍पणी की है

आपकी कविता के बारे में क्‍या कहूं बेहतरीन लिखते ही हो हमें भी अपना शिष्‍य बना लो ना ताकि हम भी कोशिश कर सकें कुछ यूं लिखने की वाकई लाजवाब

Anonymous said...

sach aakhari anktiyon ne jaan bhar di kavita mein bahut sundar

डॉ .अनुराग said...

जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ

shayad isi me arth nihit hai puri rachna ka.....vakai..

makrand said...

हर साँस मे जर्रा जर्रा

पलता है कुछ,

यूँ लगे साथ मेरे

चलता है कुछ.

kya khub likha aapne

राज भाटिय़ा said...

क्या बात है,
जो मोम बनके मुझमे ,

बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
सीमा जी जबाब नही आप की कविता का, बस हम तो यही कहे गे कि वाह वाह वाह
धन्यवाद

mamta said...

लाजवाब और बेमिसाल ।

रंजना said...

वाह ! सुंदर भावाभिव्यक्ति.

Abhishek Ojha said...

Wonderful !

Gyan Dutt Pandey said...

मोम और बर्फ! अपोजिट्स का द्वन्द्व!

Arvind Mishra said...

जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
गुस्ताखी माफ़ -
अगर कुछ यूँ लिखा जाय तो _
जो अंतराग्नि बन मुझमें
मोम के मानिंद पिघलाता है
बर्फ सा कुछ !

अमिताभ श्रीवास्तव said...

ehsaas....
mene to ehsaas hi nahi balki haqikat me paya ek behtreen rachna ko..
khoob likhti he aap...
ham jese padne valo ke liye sone pe suhaaga he,
dhnyavad

Anonymous said...

सुन्दर!! ई त सवाल है जी! इसका जबाब कब तलक आयेगा? पढ़वाइयेगा!

seema gupta said...
This comment has been removed by the author.
निर्मला कपिला said...

antarduand ki sunder abhivyakti

प्रदीप मानोरिया said...

ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
जो अंतराग्नि बन मुझमें
मोम के मानिंद पिघलाता है
बर्फ सा कुछ !
bahut sundar shabd rachnaa gahre bhav

seema gupta said...

"@ आदरणीय अरविन्द जी मार्गदर्शन के लिए आभार ...ये पंक्तियाँ सच मे खुबसुरत है...."

Regards

नीरज गोस्वामी said...

अब क्या करें...हम तो प्रशंशा कर कर थक गए हैं...आप जब भी लिखती हैं गज़ब लिखती हैं...
नीरज

Publisher said...

लाजवाब। कहते हैं कविताएं दिल का आवाज होती हैं, दर्द और जज्बात से भरी हुई। भाव और विचार से सराबोर। बेहतरीन काव्य है।

vijay kumar sappatti said...

seema ji

wonderful expression of emotions ..
you have this art in you..
bahut badhai ..

meri aaj ki rachan padhiyenga , ek sacchi ghatna par hai ..

regards

Anonymous said...

kya baat hai

ये एहसास

जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ

कुन्नू सिंह said...

(+) (+)
===
===

बढीया कविता।
उप्पर मैने ड्राईंग कीया है।

Anonymous said...

'ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ'

- लाजवाब परिभाषा.

दिलीप कवठेकर said...

प्रशंसनीय...

आपकी कविता की उष्मा से मन में यादों के पिघलने का अंदेशा हो रहा है.

समयचक्र said...

खूबसूरत अहसासों से भरपूर ....

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

पिघलता है कुछ तो...पिघलने दो.....महकता है मन जो....महकने दो....दरकता है कुछ भीतर धीरे-धीरे....बनता है कुछ मन में हौले-हौले....दर्द को भीतर से बाहर जो निकाला है....दरीचे से इक शोर निकला है....शोर में भी इक चुप्पी है....जरा सा तो रुक जाओ....इस चुप्पी के अर्थों को हमें भी समझने दो.....!!

दिगम्बर नासवा said...

इतनी गहराई से, इतनी सोज़ से, इतने ख़ुशी और गम के मिश्रित एहसास से लिखी हुयी है यह रचना,
खोया हुवा बहुत कुछ पा लिया है मैंने..........

Mukesh Garg said...

bahut hi sunder dil ko chuu lene wali rachna hai.

dhero badhiya

neha said...

its just superb