दुनिया वालों से डर न जाए कहीं
इश्क तेरा बिखर न जाए कहीं
डूबता जा रहा है जिसमें तू
वो नदी भी उतर न जाए कहीं
जिस तरफ से पलट के आई मैं
खौफ है तू उधर न जाए कहीं
राह तकती रहूंगी मैं लेकिन
फ़िक्र है तू मुकर न जाए कहीं
दर्द ही दर्द का मुहाफ़िज़ है
दर्द हद से गुज़र न जाए कहीं
सर झुका तो दिया है क़दमों में
बंदगी बे-असर न जाए कहीं
इश्क की बारगाह में "सीमा"
हुस्न खुद ही संवर न जाए कहीं
9 comments:
pahlee baar aap ke blog se parichay huaa,achhaa lagaa
सर झुका तो दिया है क़दमों में
बंदगी बे-असर न जाए कहीं
sundar likhaa hai
दुनिया वालों से डर न जाए कहीं
इश्क तेरा बिखर न जाए कहीं
डूबता जा रहा है जिसमें तू
वो नदी भी उतर न जाए कहीं
बहुत खूब!
दर्द ही दर्द का मुहाफ़िज़ है
दर्द हद से गुज़र न जाए कहीं
बहुत खुबसूरत शेर दाद को मुहताज नहीं फिर भी दिल से निकला वाह वाह ..
बहुत खूबसूरत गजल
हिन्दी कॉमेडी- चैटिंग के साइड इफेक्ट
khoobsurat gazal kahee hai Seema ji aapne!!
सर झुका तो दिया है क़दमों में
बंदगी बे-असर न जाए कहीं
अब जब ये सर झुका ही दिया तो बंदगी हो न हो ये तो उसको ही देखना है ...
बहुत ही दिलकश, गहरे एहसास हैं सभी शेरों में .. लाजवाब ...
bas ek shabd"vaah"
aaj jo post kiya hai usme tippani ka option nahi mil rahaa
urdu to muze aati nahi par photo dekha
khushi hui ki sarhaden paar bharteey hui bhaavnaae
दर्द ही दर्द का मुहाफ़िज़ है
दर्द हद से गुज़र न जाए कहीं
बहुत खूबसूरत लबो लहजा ......बाकमाल शायरी.... वाह
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