10/19/2011

दुनिया वालों से डर न जाए कहीं


दुनिया वालों से डर न जाए कहीं
इश्क तेरा बिखर न जाए कहीं

डूबता जा रहा है जिसमें तू
वो नदी भी उतर न जाए कहीं

जिस तरफ से पलट के आई मैं
खौफ है तू उधर न जाए कहीं

राह तकती रहूंगी मैं लेकिन
फ़िक्र है तू मुकर न जाए कहीं

दर्द ही दर्द का मुहाफ़िज़ है
दर्द हद से गुज़र न जाए कहीं

सर झुका तो दिया है क़दमों में
बंदगी बे-असर न जाए कहीं

इश्क की बारगाह में "सीमा"
हुस्न खुद ही संवर न जाए कहीं

9 comments:

Nirantar said...

pahlee baar aap ke blog se parichay huaa,achhaa lagaa
सर झुका तो दिया है क़दमों में
बंदगी बे-असर न जाए कहीं
sundar likhaa hai

Smart Indian said...

दुनिया वालों से डर न जाए कहीं
इश्क तेरा बिखर न जाए कहीं

डूबता जा रहा है जिसमें तू
वो नदी भी उतर न जाए कहीं

बहुत खूब!

Sunil Kumar said...

दर्द ही दर्द का मुहाफ़िज़ है
दर्द हद से गुज़र न जाए कहीं
बहुत खुबसूरत शेर दाद को मुहताज नहीं फिर भी दिल से निकला वाह वाह ..

Ritu said...

बहुत खूबसूरत गजल

हिन्‍दी कॉमेडी- चैटिंग के साइड इफेक्‍ट

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

khoobsurat gazal kahee hai Seema ji aapne!!

दिगम्बर नासवा said...

सर झुका तो दिया है क़दमों में
बंदगी बे-असर न जाए कहीं

अब जब ये सर झुका ही दिया तो बंदगी हो न हो ये तो उसको ही देखना है ...
बहुत ही दिलकश, गहरे एहसास हैं सभी शेरों में .. लाजवाब ...

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

bas ek shabd"vaah"

Anonymous said...

aaj jo post kiya hai usme tippani ka option nahi mil rahaa

urdu to muze aati nahi par photo dekha

khushi hui ki sarhaden paar bharteey hui bhaavnaae

Hadi Javed said...

दर्द ही दर्द का मुहाफ़िज़ है
दर्द हद से गुज़र न जाए कहीं
बहुत खूबसूरत लबो लहजा ......बाकमाल शायरी.... वाह