8/03/2011

हजारों ख्वाब आँखों में हमारी मुस्कुराये हैं



हजारों ख्वाब आँखों में हमारी मुस्कुराये हैं
तेरे मिलने की बेताबी ने क्या क्या गुल खिलाये हैं

तसव्वुर ने तेरे फिर रात भर मुझको जगाया है
तेरी चाहत ने मेरी नींद पर पहरे लगायें हैं ......

लबों पर प्यास रखी है मिलन की आस रखी है
वही यादों का दरया है वही ठंडी हवाएं हैं

ये मंज़र शाम ढलने का , ये भीगी रात का दामन
तेरी यादों ने ऐ जानम यहीं खेमे लगाये हैं

ये तन्हाई , ये खामोशी , ये 'सीमा' हिज्र के लम्हे
रुपहली चांदनी रातों में , हम खुद को जलाएं हैं

8 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

तेरी चाहत ने मेरी नींद पर पहरे लगायें हैं ......

बहुत ही नायाब रचना, शुभकामनाएं.

रामराम.

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

kamaal karte ho Seema ji...

तेरी यादों ने ऐ जानम यहीं खेमे लगाये हैं

chubh gayee dil mein aapki rachna...

waah...

वाणी गीत said...

सुन्दर गीत !

डॉ. मनोज मिश्र said...

.......हम खुद को जलाएं हैं,
बहुत बेहतरीन रचना,आभार.

!!अक्षय-मन!! said...

bahut hi pyara likha hai dil ko chulene wala ji bahut accha laga padkar sima ji.....aapki awaz main gazal bhi suni badi manmohak........

Hadi Javed said...

वाह क्या खूबसूरत ग़ज़ल है
लबों पर प्यास रखी है......बहुत खूब

vijay kumar sappatti said...

आपकी इस गज़ल को पढ़ने के बाद यादो ने करवट ली है .. और बहुत सी बाते याद आई है..
शुक्रिया
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

Mukesh Garg said...

baht hi kuhbsurat or pyar bhari rchna .mubarak ho seema ji