हजारों ख्वाब आँखों में हमारी मुस्कुराये हैं
तेरे मिलने की बेताबी ने क्या क्या गुल खिलाये हैं
तसव्वुर ने तेरे फिर रात भर मुझको जगाया है
तेरी चाहत ने मेरी नींद पर पहरे लगायें हैं ......
लबों पर प्यास रखी है मिलन की आस रखी है
वही यादों का दरया है वही ठंडी हवाएं हैं
ये मंज़र शाम ढलने का , ये भीगी रात का दामन
तेरी यादों ने ऐ जानम यहीं खेमे लगाये हैं
ये तन्हाई , ये खामोशी , ये 'सीमा' हिज्र के लम्हे
रुपहली चांदनी रातों में , हम खुद को जलाएं हैं
तेरे मिलने की बेताबी ने क्या क्या गुल खिलाये हैं
तसव्वुर ने तेरे फिर रात भर मुझको जगाया है
तेरी चाहत ने मेरी नींद पर पहरे लगायें हैं ......
लबों पर प्यास रखी है मिलन की आस रखी है
वही यादों का दरया है वही ठंडी हवाएं हैं
ये मंज़र शाम ढलने का , ये भीगी रात का दामन
तेरी यादों ने ऐ जानम यहीं खेमे लगाये हैं
ये तन्हाई , ये खामोशी , ये 'सीमा' हिज्र के लम्हे
रुपहली चांदनी रातों में , हम खुद को जलाएं हैं
8 comments:
तेरी चाहत ने मेरी नींद पर पहरे लगायें हैं ......
बहुत ही नायाब रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
kamaal karte ho Seema ji...
तेरी यादों ने ऐ जानम यहीं खेमे लगाये हैं
chubh gayee dil mein aapki rachna...
waah...
सुन्दर गीत !
.......हम खुद को जलाएं हैं,
बहुत बेहतरीन रचना,आभार.
bahut hi pyara likha hai dil ko chulene wala ji bahut accha laga padkar sima ji.....aapki awaz main gazal bhi suni badi manmohak........
वाह क्या खूबसूरत ग़ज़ल है
लबों पर प्यास रखी है......बहुत खूब
आपकी इस गज़ल को पढ़ने के बाद यादो ने करवट ली है .. और बहुत सी बाते याद आई है..
शुक्रिया
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
baht hi kuhbsurat or pyar bhari rchna .mubarak ho seema ji
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