" सिरहाने पे आ मिलते हैं "
उजालों के बदन पर अक्सर
उम्मीदों के आँचल जलते हैं
जाने कितनी ख्वाइशों के छाले
पल पल भरते पिघलते हैं
बिखर जाते हैं पल में छिटक कर
हथेलियों से सब्र के जुगनू
दिल में कुछ बेचैन समंदर
बिन आहट करवट बदलते हैं
ठिठकी हुई रात की सरगोशी में
फूट फूट बहता है दरिया-ए-जज्बा
शिकवे आंसुओं की कलाई थाम
रोज मेरे सिरहाने पे आ मिलते हैं
(इस कविता को यहाँ मेरी आवाज में सुनिये..... )
29 comments:
Beautiful.... much lively with your voice and nicely selected pictures...
Amazing..........:)
sikwe aanshuon ki kalai tham
roj mere sirahne pe milte hain...
kitnee pyari lekin dard bhari baat kahi aapne...
ाद्भुत रचना और आवाज। आपका जादू चल गया धन्यवाद्
सब्र के जुगनू बेचैन कुछ समन्दर। बहुत मर्मस्पर्शी
बधाई व धन्यवाद ऐसी सुन्दर रचना को मन्ज़रे-आम करने के लिये।
अदभुत और जादुई लगा ।
एक गुजारिश- सिरहाने को आपने सीराहने लिख दिया है ,दुरुस्त कर लीजिये ।
@ अजय जी आभार गलती सुधार दी है
regards
ख्वाहिशों के छाले ....
बहुत खूब .. कुछ ऐसे छाले उम्र भर रिस्ते रहते हैं ...
nice feeling
अति सुंदर जी
कविताये उन्हे उम्दा कही जाती है जिनमे कविताओ की पन्क्तियो के साथ चित्र उभरते प्रतीत होते है, मै जब इन कविताओ को पढ रहा था तब मेरे मन:स्थल पर एक विरहन का एक रेखाचित्र अनायास उभरने सा लगा था जिसकी सिसकती वेदनाये आन्सुओ मे एकत्रित होकर सिरहाने को गीली कर रही थी, उसके मनोभाव गिले शिकवो को समेटे कुछ इस तरह लग रहे थे थे मानो समन्दर मे बिना पतवार की नाव हिचकोले खा रही हो, किकर्तव्यविमूढ सा,मन मस्तिष्क मे अजीब सी शून्यता लिये एक विरहन के दर्द को शब्द देने के लिये एक बार पुन: साधुवाद और बधाई.
हमेशा की तरह आपकी ये कविता भी गज़ब की है.
बधाई.
आंसुओं की भी कलाई होती है..
वाह क्या भाव है.
पूरी रचना कहती है कि थोड़ी देर खामोश रह लिया जाए. हमेशा की तरह कमाल की रचना.
हाँ यहाँ तो सिरहाना ही है ।
seema ji amazing aaj pahali baar aapki aawaj sunne ko mili bahut shandar aapko badhai ho
ek baar phir khoobsoorati aur kala ka anmol sangam...
afareen...!
Your imagination... EXTREME
Your wordings... EXTREME
Your emotions... They too EXTREME
An EXTREMELY beautiful peom from an EXTREMELY talented poetesssss...
Love the way You write...
AMIT
गज़ब के ख्याल्……………बेहतरीन अल्फ़ाज़्……………दर्द उमड आया है और अन्दर तक टीस गया है।
ठिठकी हुई रात की सरगोशी में
फ़ुट फ़ुट बहता है दरिया-ए-जज्बा
शिकवे आंसुओं की कलाई थाम
रोज मेरे सिरहाने पे आ मिलते हैं
कमाल की नज्म भावनाओं से भरपूर ।
ठिठकी हुई रात की सरगोशी में
फ़ुट फ़ुट बहता है दरिया-ए-जज्बा
शिकवे आंसुओं की कलाई थाम
रोज मेरे सिरहाने पे आ मिलते हैं
बहुत सुंदर ।
गजब है गजब.
यह कविता भी रुमान संसार की सैर करा रही है -काश जीवन ऐसे ही मखमली अहसासों का होता .....
आप की रचना 9 जुलाई के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
तकलीफदेह यादें !
kya kahun.....kuchh kah hi nahin paa rahaa.....darasal....ise dubara padha to mera sirhana bhi gila ho jaayegaa....sach.....seema....achha likha hai tumne....!!
adbhut sabdon ka jaadu hai,, aise hi likhiye
ठिठकी हुई रात की सरगोशी में
फ़ुट फ़ुट बहता है दरिया-ए-जज्बा
शिकवे आंसुओं की कलाई थाम
रोज मेरे सिरहाने पे आ मिलते हैं
वाह !!!!!!!!! क्या बात है..... बहुत जबरदस्त अभिव्यक्ति
मन को छू गये भाव।
अभिभूत हूँ।
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पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
सावधान, आपकी प्रोफाइल आपके कमेंट्स खा रही है।
अच्छा लगा ।
अच्छा लगा ।फुट फुट बहता दरिया-ए-ज़जबा के बदले फूट फूट होना चाहिये।
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