4/12/2010

"मुझको पुकारे "


"मुझको पुकारे"

झिलमिलाते दूर तक उजले सितारे
और चाँद का आंचल थाम के देखो
चल रहे नदिया के किनारे
पत्तो की खन खन कुछ कहना चाहे
अलसाई पवन ले जब दरख्तों के सहारे
और रात की बाँहों में मचले हैं देखो
जगमगाते जुगनू ये सारे
धुन्धले से साये अनजानी राहे
कुछ गुनगुनाते ये अधभुत नजारे
और दूर गगन में चुपके से देखो
आहट किसी की "मुझको पुकारे"
झिलमिलाते दूर तक उजले सितारे
और चाँद का आंचल थाम के देखो
चल रहे नदिया के किनारे

27 comments:

Udan Tashtari said...

वाह, बहुत भावपूर्ण और उम्दा रचना.

Apanatva said...

prakruti se judee rachana badee pyaree lagee .

जितेन्द़ भगत said...

मोहक गीत।

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत सुन्दर रचना है...
आपके ब्लॉग पर आकर सुकून मिलता है...

AMIT VERMA said...

That was typical Seema.
Superb Superb Superb!

Your each poem has taken me to some other place whenever I read it .
AMIT

neelima garg said...

bhavpurn...

Arvind Mishra said...

एक झीनी झीनी रूमानियत तारी है कविता में -बहुत खूब ....

P.N. Subramanian said...

बहुत ही सुन्दर रचना

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत खूबसूरत रचना!

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

one of the best ones from you!

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

one of the best ones from you!

कविता रावत said...

कुछ गुनगुनाते ये अधभुत नजारे
और दूर गगन में चुपके से देखो
आहट किसी की "मुझको पुकारे"
.....Khoobsurat andaj mein bayan ki gayee rachna babut achhi lagi..

Alpana Verma said...

'पत्तो की खन खन कुछ कहना चाहे
अलसाई पवन ले जब दरख्तों के सहारे....

Bahut hi sundar!
Bhaav abhivyakti ke liye Prakriti ke sundar bimbon ka adbhut prayog kiya hai.
pasand aayi aap ki yeh kavita Seeema ji.

[Aap ki pustak ki charcha akhbaar mein hui..bahut bahut badhayee.
Bharat aayungee tab aap ki yeh book zarur lena chahungee,Waise bhi party to due hai hi na...:)]

प्रकाश गोविंद said...

बहुत भावपूर्ण

खूबसूरत रचना!

Shekhar Kumawat said...

bahut kub
और दूर गगन में चुपके से देखो
आहट किसी की "मुझको पुकारे"
http://kavyawani.blogspot.com/

shekhar kumawat

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत अच्छा रेखाचित्र...
इन शब्दों में वर्तनी में थोड़ी गुंजाइश है..
नदीया अधभुत धुन्दले

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत सुन्दर रचना,आनंद आ गया,धन्यवाद.

शरद कोकास said...

बहुत सुन्दर भाव हैं नदीया को नदिया और धुन्दले को धुन्धले कर लें

Smart Indian said...

और दूर गगन में चुपके से देखो
आहट किसी की "मुझको पुकारे"

बहुत सुन्दर!

बवाल said...

एक बहुत ही लाजवाब रचना। बधाई सीमाजी।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मन को छू लेने वाले भाव।
हार्दिक बधाई।
--------
गुफा में रहते हैं आज भी इंसान।
ए0एम0यू0 तक पहुंची ब्लॉगिंग की धमक।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सुंदर और सधे हुए शब्दों में.... बहुत ही खूबसूरत कविता.....

Sorry for coming late........ extremely sorry....

Regards...

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

झिलमिलाते दूर तक उजले सितारे
और चाँद का आंचल थाम के देखो
चल रहे नदिया के किनारे

...क्या बात है. चित्र भी सुन्दर है

Satish Saxena said...

मन कभी कभी उदास सा हो आपके ब्लाग पर पंहुचते ही फ्रेश सा हो जाता है ! धन्यवाद आपका !

प्रदीप मानोरिया said...

सुन्दर भाव्पूर्ण रचना
बधाई

अभिन्न said...

पत्तो की खन खन कुछ कहना चाहे
..............
और चाँद का आंचल थाम के देखो
चल रहे नदिया के किनारे

प्रकृति का मानवीकरण कर के, शब्दों को पात्र बना कर अपनी कविता रूपी मंच पर एक बेहद खुबसूरत नाटिका प्रस्तुत कर देना सिर्फ ओर सिर्फ आप की ही विशेषता है
शुभकामनाएं स्वीकार करें

suFiCat said...

likhne walon ne to bahot kuch likha hai ..par aap ne jo rakam kiya hai ..wo soch ke sagar we dube huwe alfazon ke moti ko chun chun kar gahraiyon se nikala hai..
mam ..main abhi writter to nahi hoon par koshish karta hoon ki gahraion ko padh padh kar shayad kalam gahri ho jaye ..
sukriya mam