"शब्द भी रोने लगे "
निष्प्राण हृदय के ज़ीने पे,
अनुभूतियों के मानचित्र
विद्रोह कर
अपना अस्तित्व संजोने लगे
विवश हो,
अभिव्यक्तियों के काफिले भी
साथ होने लगे......
अश्को के नगीने
बिखर गये
दिल के मलाल
अनुबंधित हो कर
आक्रोश की तलहटी में
एकत्रित होने लगे,
"तब "
भावाग्नि के उच्च ताप से
"शब्द भी रोने लगे ..."
29 comments:
ह्रदय - हृदय (ऋ की मात्रा बहुत दु:ख देती है।मेरे IME में यह मात्रा R से लगती है)
आस्तीत्व - अस्तित्व
भावाग्नी - भावाग्नि
कविता में वर्णित है - स्वयं कविता के सृजन के पहले की प्रक्रिया। सम्भवत: प्रक्रिया कहना भी ठीक नहीं - बस 'होना' कहना ठीक है।
@ उच्च ताप से
"शब्द भी रोने लगे ...
इसके आगे ही तो कालजयी रचा जाता है। उसके आगे की स्थिति में तो शब्द 'मंत्र' हो जाते हैं।
आभार सान्द्र कविता की प्रस्तुति पर।
सीमा जी बहुत दिनों से आपको पढने की इच्छा हो रही थी
पूरी हुयी -अब कुछ संयोग पर हो जाय न -मौसम को तो देखिये !
वाह जी सुंदर.
अश्को के नगीने
बिखर गये
दिल के मलाल
अनुबंधित हो कर
आक्रोश की तलहटी में
एकत्रित होने लगे,
"तब "
भावाग्नी के उच्च ताप से
"शब्द भी रोने लगे ..."
बहुत सुंदर पंक्तियाँ.... अश्कों के नगीने.... वाह! बहुत खूब....
बहुत अच्छी लगी यह कविता....
@ आदरणीय गिरिजेश राव जी, वर्तनी की इतनी अशुद्धियों की तरफ ध्यान दिलाने और सही मार्गदर्शन के लिए बेहद आभार.
regards
@आदरणीय अरविन्द जी, आपके प्रोत्साहन के लिए दिल से शुक्रिया, जरुर जल्द ही आपको ऐसी रचना पढने को मिलेगी.....
regards
अश्को के नगीने
बिखर गये
दिल के मलाल
अनुबंधित हो कर
आक्रोश की तलहटी में
एकत्रित होने लगे,
अति सुन्दर भाव !
दिल के मलाल
अनुबंधित हो कर
आक्रोश की तलहटी में
एकत्रित होने लगे,
"तब "
भावाग्नि के उच्च ताप से
"शब्द भी रोने लगे ..."
ओह!! जबरदस्त अभिव्यक्ति!! बहुत सुन्दर भाव!
भावाग्नि के उच्च ताप से
"शब्द भी रोने लगे ..."
बहुत लाजवाब अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.
रामराम.
कविता कैसे जन्म लेती है, आज पता चल गया. सुन्दर.
aanand aa gaya padh kar....
kitne achhey dhang se aapne hindi ko pesh kiya hai...
aafareen
बहुत ही सुन्दर शब्दों का समावेश लिये हुये बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
सीमा जी जब कभी आपकी कविता पढा करता हू, मै आश्चर्यचकित हो जाता हू कि आप कविताओ को आखिर कितनी गहराई पर उतर कर लिखती होन्गी, मै उन गहराईयो को नापने का प्रयत्न करता हू और सचमुच अभिभूत हो जाता हू, अब इसी कविता को देख लीजीये-
निष्प्राण ह्रदय के ज़ीने पे,
अनुभूतियों के मानचित्र
विद्रोह कर
अपना आस्तीत्व संजोने लगे
ये पन्क्तिया ऐसे ही नही बनी होगी? अपने प्रिय के विरह मे व्याकुल एक नायिका को उस अवस्था मे ऐसा ही महसूस होता होगा, अनुभूतिया अपने अस्तित्व के लिये विद्रोह करती होन्गी और निश्चय ही ऐसे अवसर पर शब्दो के काफिले अनायास साथ चलने विवश होते होन्गे.
अश्को के नगीने
बिखर गये
दिल के मलाल
अनुबंधित हो कर
आक्रोश की तलहटी में
एकत्रित होने लगे,
"तब "
भावाग्नी के उच्च ताप से
"शब्द भी रोने लगे ..."
मोती की तरह सुन्दर एक-एक शब्द को बेहद खूबसूरती से आपने कविता मे नगीने की तरह सजोया है, मै जितना इसे पढने और समझने का प्रयत्न करता हू उतना ही गहरे भावो मे जाता चला जाता हू, क्या कहू सीमा जी काश! मेरे पास अपनी भावनाओ को व्यक्त करने के लिये इन सारे वाक्यो और शब्दो के एवज मे सिर्फ एक शब्द होते तो मै कह पाता... अद्भुत...
आक्रोश की तलहटी में
एकत्रित होने लगे,
"तब "
भावाग्नि के उच्च ताप से
"शब्द भी रोने लगे ..."
जानदार और उम्दा लाइनें.
सुन्दर भावाभिव्यक्ति है!
Its really very nice
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
bahut sundar shabd sanyojan,bhav pradhan rachna.chitr purvvat: apna standard liye hue,jab shabd hi rone lagen to arth se kya ummeed ki ja sakti hai.kavi ki kalpna hoti hi itni shshkt ki yatharth ko shbdon k madhyam se prastut kar ke apni baat ko kalatmakta dete hue padhne valon ke dil se vaah vaah niklne lagta hai.
congrats
बहुत सुन्दर!!
शब्द भी रोने लगे अच्छा बिम्ब है ।
aur rote shabdon se upaji
samvedanaaye
sahaanubhuti
dayaa
sahrudaytaa
fir usne paayaa
ek saayaa
kahin
bahut sundar :)
बहुत सुन्दर रचना
बधाई स्वीकारें
आज तो आप कुछ और ही मूड में हैं ! फिलोस्फिकल रंग .......
i m sonu from sehore seema ji,aapki bhavnayen ko aapse badker koi nahi samjgh skta.per phir bhi mene aapki puri kitaab padi hai me thoda bahut use mahsoos ker skta hu kyoki thoda mere......... kuch kahuga nahi. aapke book ka front maine hi banaya hai thodi se kosish kare hai bas.(bahut kuch bate kerna hai aapse kabhi baad me aaram se karuga)My Blog Address is-
http://sameerpclab2.blogspot.com/
Sundar aur bhavpoorna rachana-----.
Poonam
अश्को के नगीने
बिखर गये
दिल के मलाल
अनुबंधित हो कर
आक्रोश की तलहटी में
एकत्रित होने लगे,
"तब "
भावाग्नि के उच्च ताप से
"शब्द भी रोने लगे ..."
सीमा जी मुझे तो आपके शब्द हंसते मुस्कुराते और बहुत कुछ कहते नज़र आ रहे हैं ---- वैसे शब्द न रोयें तो इतनी सुन्दर रचना बन ही नही सकती। इन शब्दों के रोने से कवि को कितनी वेदना झेलनी पडती है ये आपकी कविता से जाना जा सकता है दिल की गहराई से लिखा है आपने बहुत बहुत शुभकामनायें। हाँ आपका ब्लाग शायद ब्लागवुड के सभी ब्लाग्ज़ मे से सुन्दर और सुसज्जित है। बधाई
शब्दों का अदभुत प्रयोग।
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।।
--------
कुछ खाने-खिलाने की भी तो बात हो जाए।
किसे मिला है 'संवाद' समूह का 'हास्य-व्यंग्य सम्मान?
भावाग्नि के उच्च ताप से
"शब्द भी रोने लगे ..."
सुन्दर शब्दो और भावों से लैस रचना
बहुत सुन्दर
great lines
Post a Comment