शब्द कोई गीत बनकर
अधरों पे मचलता नही
सुर सरगम का साज कोई
जाने क्यूँ बजता नहीं.....
बाँध विचलित सब्र के
हिचकियों मे लुप्त हो गये ,
सिसकियों की दस्तक से भी,
द्वार पलकों का खुलता नहीं....
रीती हुई मन की गगरिया,
भाव शून्य हो गये,
खामोशी के आवरण मे ,
26 comments:
वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
गहरी अभिव्यक्ति!! बधाई....
भावपूर्ण अभिव्यक्ति बधाई !!!
बहुत खुब..
एक अच्छी गीतकार के बाद ये नया रूप Queen of Puzzles भी काफी आकर्षक लगा.
बाँध विचलित सब्र के
हिचकियों मे लुप्त हो गये ,
सिसकियों की दस्तक से भी,
द्वार पलकों का खुलता नहीं....
bahut hi gahri abhivyakti ke saath ek bahut hi sunder kavita hai......
bahut achchi lagi yeh kavita...
Regards...
भावों का वैयक्तिकरण करने में आपको महारत है। और यही वजह है कि आपकी कविता में चार चाँद लग जाते हैं तथा वह ज्यादा अपीलिंग हो जाती है।
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बहुत घातक है प्रेमचन्द्र का मंत्र।
हिन्दी ब्लॉगर्स अवार्ड-नॉमिनेशन खुला है।
Pdhkar aisa laga jaise kahin mushladdhar barish hokar ruki ho. or mitti ki vo sondhi sondhi khusbhu har kahin fail gayi ho. bahut hi atmik lagi . lekin kafi dino baad aapki posst aayi. jisse khalipan jo bna tha vo bhar gya.
Aisa lga jaise k Sachin Tendulkar ne fir se koi chamtkarik pari kheli ho. matlab i feel proud to hav freind like u.
उफ्फ कितना दर्द भर दिया है आपने अपने शब्दों से इस रचना में...
सिसकियों की दस्तक से भी,
द्वार पलकों का खुलता नहीं....
बहुत सुंदर... अपने आप में डूबा रही है ये रचना...
मीत
शब्द कोई गीत बनकर
अधरों पे मचलता नही
सुर सरगम का साज कोई
जाने क्यूँ बजता नहीं.....
DARD BHARI DAASTAAN HAI AAPKI NAZM ..KABHI KBAHI SABR KAA BAANDH TOOT JAATA HAI PAR AANSOO THAM JAATE HAIN AUR SISKIYAAN GHER LETI HAIN UN KE SOONE PAN KO .... GAHRE BHAAV LIYE KAMAAL KI RACHNA HAI ...
khanoshi ke aawaran men maun karwat badalta nhin ' bahut hi sundar kawita. antarik bhawnaonko padhnen men kitni sarthak pahal.
sach me maun karwat badalta nahi ... gambhir baat kahi hai seema ji aapne... aur mujhe lagtaa hai ke saari paheliyaa aap hi jitati hai itane purashkaar mile hai... kya kamaal hai ye waah badhaayee is baat ke liye... aabhaar
regads
arsh
शब्द कोई गीत बनकर
अधरों पे मचलता नही
सुर सरगम का साज कोई
जाने क्यूँ बजता नहीं.....
अक्सर कई बार ऐसा होजाता है. बहुत सशक्त संप्रेषण है. शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत गहरे भाव लिये है आप की रचना.....
'मौन करवट बदलता नहीं' बड़ी ही भावपूर्ण रचना है सुर ओर सरगम का साथ तो अनंत काल से है
गीत न बनते हुए भी बन गया है ,बहुत सुन्दर गीत है चित्र ओर भी मनमोहक ,मौन को करवट बदलनी होगी अवश्य ओर अवश्य
वाह! क्या बात है...!
हर बार की तरह भावपूर्ण।
शुक्रिया!
बेहतरीन रचना
maine apney blog pr ek lekh likha hai- gharelu hinsa-samay mile to padhein aur comment bhi dein-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
मेरी कविताओं पर भी आपकी राय अपेक्षित है। यदि संभव हो तो पढ़ें-
http://drashokpriyaranjan.blogspot.com
Fine ,sentimental poem that you always write.
Have my best wishes.
with regards,
dr.bhoopendra
dil wah wah kar uthtaaa ji
wah ji kyaa khoob dikhaye aansu bhi
kahte karvate badaltaa maun bhi nahi
gagariya soony hui man ki
geet adhron par machaltaa nahi
wah wah wah
kya khoob kahi
सिसकियों की दस्तक से भी,
द्वार पलकों का खुलता नहीं....
waah!
-kavita mein lay hai ,geet ki khanak hai.
-rachna mein gahan bhaavon ki khubsurat abhivyakti hai.
सुंदर एवं मार्मिक अभिव्यक्ति।
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सिर पर मंडराता अंतरिक्ष युद्ध का खतरा।
परी कथाओं जैसा है इंटरनेट का यह सफर।
रीती हुई मन की गगरिया,
भाव शून्य हो गये,
खामोशी के आवरण मे ,
मौन करवट बदलता नहीं..
acha laga aapka bhav v abhivykti ka tareeka..badhai
बाँध विचलित सब्र के
हिचकियों मे लुप्त हो गये ,
सिसकियों की दस्तक से भी,
द्वार पलकों का खुलता नहीं....
संवेदनाओं के झरोखे से झाँकता दर्द बहुत खूब शुभकामनायें
lajwaab
आपका ब्लॉग बहुत सुंदर है,गजब है
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