हाँ वो लाचार वक़्त हूँ मैं
छटपटाता हुआ बदहवास सा
ठहरा हूँ मै तब से
दो दिलो के वादों का
साक्ष्य बना था जब से
व्याकुल हो विरह में
अश्कों में डुबे सिसकते
एक दिल न कहा था
" जब अंत समय आये और
ये सांसे बोझ बन जाये
एक बार मुझसे कह देना
मै भी साथ चलूँगा ..."
उस रिश्ते पर मेरा ही
कफ़न पड़ गया शायद
अब मै गुजर जाना चाहता हूँ
मुक्त हो जाना चाहता हूँ
साक्ष्य के उस बोझ से
काश मेरे सीने से कोई
उस लम्हे के अंश को
चीर के जुदा कर दे
हाँ वही लाचार वक़्त हूँ मै .....
36 comments:
उस रिश्ते पर मेरा ही
कफ़न पड़ गया शायद
अब मै गुजर जाना चाहता हूँ
मुक्त हो जाना चाहता हूँ
साक्ष्य के उस बोझ से
काश मेरे सीने से कोई
उस लम्हे के अंश को
चीर के जुदा कर दे
हाँ वही लाचार वक़्त हूँ मै .....
बहुत बेहतरीन अभिव्यक्ति. शुभकामनाएं.
रामराम.
आज सही अर्थ लगाना आसान नहीं रहा। शायद साथ जीने मरने की कस्में विफल होने का दर्द है इसमें।
o o o o o oh my God,
What a thought.
It is incredible. Bhavna Pradhan rchna ke liye aapka bahut bahut shukariya.
@ जितेन्द्र जी आपने सही अर्थ समझा है यही दर्द है इसमें की जीने मरने की कसमे खाकर भी जुदा हो गये......और समय इन वादों के हेर फेर मे उलझ कर रह गया "
Regards
शानदार रचना. हम तो बस इतना ही कह पाएंगे. हम तो सनेमा के गीत गाके ही अपने आपको समझा लेते हैं.जैसे "वक्त ने किया क्या हसीं सितम"
दिल को छू गई।
दिल कहीं खो गया .....बेहतरीन रचना .....मोहब्बत में ऐसा भी होता है ....वक़्त ही तो है
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
काश मेरे सीने से कोई
उस लम्हे के अंश को
चीर के जुदा कर दे.......बहुत गहन भाव .बधाई .
उस रिश्ते पर मेरा ही
कफ़न पड़ गया शायद
अब मै गुजर जाना चाहता हूँ
मुक्त हो जाना चाहता हूँ
साक्ष्य के उस बोझ से
काश मेरे सीने से कोई
उस लम्हे के अंश को
waah waqt dard ka thahrav aur safar bhi bahut achha laga,ek lajawab rachna ke liye badhai.
लाचारी हमेशा दुख देती है, चाहे वह वक्त की हो या फिर किसी और की।
-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
seema ji,
chavanni par jari hindi talkies series ka aapko nimantran hai.apne sansmaran bhejen.
http://chavannichap.blogspot.com/2009/04/blog-post_13.html
ise padhen aur apni rai bhi den.
chavannichap@gmail.com
वक्त की घोर की लाचारी के बावजूद भी मैंने कविता पढी -बढियां है -बधाई !
aaj rula diya aapne.
" जब अंत समय आये और
ये सांसे बोझ बन जाये
एक बार मुझसे कह देना
मै भी साथ चलूँगा ..."
उस रिश्ते पर मेरा ही
कफ़न पड़ गया शायद.....................
अति संवेदनशील भावनात्मक अभिव्यक्ति.
चन्द्र मोहन गुप्त
बहुत भावपूर्ण रचना...इंसान सोचता क्या है और होता क्या है...क़समें खा कर भी लोग जुदा हो जाते हैं...लाजवाब शब्द...
नीरज
एक दिल न कहा था
" जब अंत समय आये और
ये सांसे बोझ बन जाये
एक बार मुझसे कह देना
मै भी साथ चलूँगा ..."
विश्वास नहीं होता की इतनी अछि रचना बन पड़ी है...
बेहद पसंद आई है यह रचना...
आज दिन में कई बार इसे पढूंगा...
बहुत सुंदर...
मीत
सीमा जी,बहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।
bahut acha raha
बहुत बढिया रचना है सीमा जी ... वक्त ऐसे ही लाचार बना देता है किसी को भी ... बहुत बहुत बधाई।
मुक्त हो जाना चाहता हूँ
साक्ष्य के उस बोझ से
काश मेरे सीने से कोई
उस लम्हे के अंश को
चीर के जुदा कर दे
हाँ वही लाचार वक़्त हूँ मै .....
बहुत ही संवेदन शील......भावनात्मक अभिव्यक्ति है
ऐसा होता है कभी कभी इंसान कुछ पलों को कुछ लम्हों को भूलना या काटना चाहता है.........पर वो नहीं कर पाता
सुन्दर अभिव्यक्ति . अच्छी लगी आपकी यह रचना सीमा जी
जब अंत समय आये और
ये सांसे बोझ बन जाये
एक बार मुझसे कह देना
मै भी साथ चलूँगा ..."
vakt hamesha chalta rahaa chaltaa rahega sath kisi ke jaata nahi thamta nahi siva aaj ki nai takneek photography ke
seema jee,
saadar abhivaadan, aapko pehle bhee padh chukaa hoon aur yakeen maniye aapke blog par jab bhee aata hoon to lagtaa hai ki blogging to sahee maayene mein aap jaise log hee kar rahe hain ham to na jane kya kar rahe hain.
सीमा जी,
कविता के लिए धन्यवाद,प्रेम की गहरी
पीडा़ झलक रही है इसमें।मैं तो समय से बस
इतना कहता हूँ-
तुमसे कोई गिला नहीं है।
प्यार हमेशा मिला नही है।
शेष मेरे ब्लाग पर......
हर रविवार को नई ग़ज़ल अपने ब्लाग पर
डालता हूँ।मुझे यकीन है कि आप इन्हें जरूर
पसंद करेंगी....
उस रिश्ते पर मेरा ही
कफ़न पड़ गया शायद
अब मै गुजर जाना चाहता हूँ
मुक्त हो जाना चाहता हूँ
साक्ष्य के उस बोझ से
काश मेरे सीने से कोई
उस लम्हे के अंश को
चीर के जुदा कर दे
हाँ वही लाचार वक़्त हूँ मै ....
ईमानदार स्वीकारोक्ति ......
उस रिश्ते पर मेरा ही
कफ़न पड़ गया शायद
अब मै गुजर जाना चाहता हूँ
मुक्त हो जाना चाहता हूँ
साक्ष्य के उस बोझ से
काश मेरे सीने से कोई
उस लम्हे के अंश को
चीर के जुदा कर दे
हाँ वही लाचार वक़्त हूँ मै .....
सीमा जी हर बार की तरह लाजवाव रचना बहुत ही गहन भाव हैं
रिगार्ड
मुक्त हो जाना चाहता हूँ
साक्ष्य के उस बोझ से
काश मेरे सीने से कोई
उस लम्हे के अंश को
चीर के जुदा कर दे
हाँ वही लाचार वक़्त हूँ मै .....
वाह!
कितनी कसक भरी रचना लिखी है!
बेहद भाव भरी..हर शब्द बोलते हैं जैसे!
बहुत सुन्दर! कैसे लिख लेती हैं आप इतना भावपूर्ण।
लाचार वक्त के मुख से बोलता रचनाकार का सत्य है या अन्य कई वेदनाओं से निकली रचना...??
जो भी है, किंतु है बहुत मार्मिक और सुंदर
काश मेरे सीने से कोई
उस लम्हे के अंश को
चीर के जुदा कर दे
हाँ वही लाचार वक़्त हूँ मै ....... बहुत अच्छा लिखा आपने
4/13/2009
"वक़्त की लाचारी"
एक दिल न कहा था
" जब अंत समय आये और
ये सांसे बोझ बन जाये
एक बार मुझसे कह देना
मै भी साथ चलूँगा ..."
vedna jab bhi apne dere se bahar nikalti he dard ke saath visfot si karti he, jo marm ko chhuti hui hradya ke aar paar ho jaati he..tab hota he ek srajan, srajan rachna kaa..kaavya ka..jo bahut had tak peer par marham saa kaam karti he..
bahut sundar bhavo ke saath likhi gai rachna he aapki.
सुन्दर.
साक्ष्य के उस बोझ से
काश मेरे सीने से कोई
उस लम्हे के अंश को
चीर के जुदा कर दे
हाँ वही लाचार वक़्त हूँ मै ..bahut sundar likha hai apne .kamaal ka aap likhati hai . thodi vilam se apka blaag dekha hai isiliye let kaments dene ke liye kshama prathi hun .
काश मेरे सीने से कोई
उस लम्हे के अंश को
चीर के जुदा कर दे
हाँ वही लाचार वक़्त हूँ मै
........इस कालजयी रचना के लिए आपको सौ सौ नमन सीमा जी
पता नहीं इस दर्द से कैसे रोशनाई बनाती हो
ओर लिख जाती हो एक दास्तान आंसुओं की हर बार
बहुत सुन्दर लेकिन दर्दीली रचना
दिल के करीब लगी आपकी अभिव्यक्ति....'बहुत मुश्किल है वक्त के दिए घाव को भुलाना'
seema ji sahi kaha hai aapne jab koi pyar ki kasme or wade kar k chodh kar chla jata hai to waqt bhi ulajh kar reh jata hai or ye sochne par majbur ho jata hai ki akhir ye qu hua kya wajha rahi or ese hi bahut se swal
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