वेदना के वृक्ष को
अश्रुओं से सींच कर
सुख और स्वयं के मध्य
लक्ष्मण रेखा खिंच कर
मर्यादा कौन सी निभा रहे हो
मेरे लिए असंख्य वृक्ष
काँटों के लगा रहे हो
उग रहे है घने जंगल
दुःख के चंहू ओर मेरे
लुप्त हो रही प्रसन्न्ता ये
हृदय से क्षण क्षण मेरे
वृक्ष वेदना का उगा है
फल फूल भी आयेंगे
जख्मों के पुष्प खिलेंगे
ग़मों की बौर आयेगी क्या?
इस जंगल से सुरभि लेकर
हवा मेरी ओर आएगी क्या ?
53 comments:
कविता का एक एक शब्द काबिले तारीफ है
वृक्ष वेदना का उगा है
फल फूल भी आयेंगे
जख्मों के पुष्प खिलेंगे
ग़मों की बौर आयेगी क्या?
इस जंगल से सुरभि लेकर
हवा मेरी और आएगी क्या ?
bahut sunder rachna hai .....bhaaw bhi sunder hai
हमेशा की तरह उत्तम्।
हर शब्द व्यथित सा करता है
हर भाव वेदना भरता है
उपजा जो तेरे सीने में
मेरी आंखों में भरता है
सुन्दर भाव वाली रचना, पढ़कर अच्छा लगा
---मेरे पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें | चाँद, बादल और शाम | तकनीक दृष्टा/Tech Prevue | आनंद बक्षी | तख़लीक़-ए-नज़र
बहुत ही सुन्दर विरह गीत रच दिया आदरणीय सीमाजी आपने, दर्द की गूढ़ भावाभिव्यक्ति आपकी क़लम से ही हो सकती। सच में यह विरह-वेदना का दर्पण है।
बहोत ही सुंदर भावनावों की अभिब्यक्ति दी है आपने सीमा जी बहोत खूब लिखा है आपने...ढेरो बधाई स्वीकारें ...
अर्श
आपकी संवेदना का ये पक्ष और भी खूबसूरत है-प्रकृति और मनुष्य का रिश्ता बहुत पुराना रहा है, और उससे जुड़कर कुछ कहने पर बात को बल भी मिलता है और प्रमाण भी।
जख्मों के पुष्प खिलेंगे
ग़मों की बौर आयेगी क्या?
इस जंगल से सुरभि लेकर
हवा मेरी और आएगी क्या ?
bahut khoob bahut hi gehra aur adbhut
regards
MAnuj Mehta
बहुत सुंदर भाव है इस रचना के .सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत गहरे भाव हैं. शब्द संयोजन भी उम्दा है. आनन्द आ गया. बधाई एंड
Regards :)
सुंदर विरह रचना.
दर्द जब hadd से गुजर जाए तो जख्म भी भी पुष्प लगने लगते हैं.
सीमा जी,पिछली दो पोस्ट आप का इंतज़ार कर रही हैं --मुझे पूछने को कहा है की क्या उन से कोई नाराजगी????या व्यस्तता??
:)-?
@ अल्पना जी .....शायद मै देख ही नही पाई पिछली दो पोस्ट आपकी. अभी उनका इन्तजार क्षमा याचना के साथ खत्म किए देतें हैं और इस वादे के साथ की उन्हें कभी इंतजार नही करना पडेगा .....हम इन्तजार करेंगे..."
Regards
hamesha ki tarah bahut kuch keh rahe hain aapki kavita....
sundar abhivyakti!
lajbab abhivyakti
हमेशा की तरह लाजवाब रचना और अन्तिम पंक्तियाँ तो बहुत पसंद आई ।
बड़ी ही गहरी कविता है...
i like it...
मीत
"उग रहे है घने जंगल
दुःख के चंहू ओर मेरे
लुप्त हो रही प्रसन्न्ता ये
हृदय से क्षण क्षण मेरे
वृक्ष वेदना का उगा है"
वाह...मन के अवसाद का बहुत मार्मिक वर्णन...शब्दों का तो खजाना है आप के पास...बेहतरीन...
नीरज
वेदना का वृक्ष ? कवि की कल्पना ! वाह !
बेहद लाजवाब, गहनतम भावाभिव्यक्ति .
रामराम.
Wow,yet another great piece of work..laga mano kisi aurat ke dil per, sach me ye sab ho raha ho (jaise koi van devi)awesome! how do you match pictures seema......
Amit verma
वृक्ष वेदना का उगा है
फल फूल भी आयेंगे
जख्मों के पुष्प खिलेंगे
ग़मों की बौर आयेगी क्या?
इस जंगल से सुरभि लेकर
हवा मेरी ओर आएगी क्या ?
कविता का एक एक शब्द दर्द की स्याही से लिखा गया लगता है.
बहुत सुंदर. धन्यवाद
main kya likhooon, sabke comments 111 baar repeat.
आपका ब्लॉग देखा बहुत अच्छा लगा.... मेरी कामना है कि आपके शब्दों को नए अर्थ, नए रूप और विराट संप्रेषण मिलें जिससे वे जन-सरोकारों के समर्थ सार्थवाह बन सकें.......
कभी फुर्सत में मेरे ब्लॉग पर भी पधारें...
http://www.hindi-nikash.blogspot.com
सादर- आनंदकृष्ण, जबलपुर
आपकी समस्त रचनाओं में बहुत ही वेदना एवं पीडा की अभिव्यक्ति ही दिखलाई पडती है.
हमेशा की तरह धांसू मय च आंसू मय। इस पोस्ट का महत्व इस बात में है कि जब कभी पानी खतम हो जायेगा तो लोग आंसू से पेड़-पौधे सींचने का जुगाड़ करेंगे। तब यह तरीका सीमाजी का तरीका के रूप में जाना जायेगा। है न!
लक्ष्मण रेखा खिंच कर
मर्यादा कौन सी निभा रहे हो
... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति।
फिर कविता जा पहुंची संत्रास और घुटन के घेरे में -क्या जीवन का यह पक्ष ज्यादा प्रबल है ? गहरे संवेदित करती और डराती हुई सी अभिव्यक्ति !
जख्मों के पुष्प खिलेंगे
ग़मों की बौर आयेगी क्या?
इस जंगल से सुरभि लेकर
हवा मेरी ओर आएगी क्या ?
हमेशा की तरह बहुत गंभीर सरस रचना सार्थक भी
maryada ke bina jeevan ki kalpana kamse kam main to nahi kar sakta. narayan narayan
वेदना के वृक्ष को
अश्रुओं से सींच कर
सुख और स्वयं के मध्य
लक्ष्मण रेखा खिंच कर
मर्यादा कौन सी निभा रहे हो
सार्थक रचना बहुत सुंदर. धन्यवाद
seema , this time you have wrote something amazing .. these lines are ultimate ..
वृक्ष वेदना का उगा है
फल फूल भी आयेंगे
जख्मों के पुष्प खिलेंगे
ग़मों की बौर आयेगी क्या?
इस जंगल से सुरभि लेकर
हवा मेरी और आएगी क्या ?
prem aur vedna ki gahri abhivyakti hai ...
aapki lekhni ko mera salaam.
well, seema , from where you get these pics , they are so classic and relates to your poems ..
regards
vijay
जिन शब्दों को आपकी लेखनी मिल जाए वो शब्द मात्र शब्द नहीं रह जाते ....
पाठको की समीक्षाये बहुत कुछ कह जाती है.सीमा जी मेरा अभिवादन स्वीकार हो
Wah seema g wah....
SEEMA JEE,
AAPKEE DARD BHAREE KAVITA
BHEE PRIY LAGTEE HAI.ANGREJEE KE
MAHAKAVI NE SAHEE KAHAA THAA--
"OUR SWEETEST SONGS ARE THOSE THAT
TELL OF SADDEST THOUGHTS".
"इस जंगल से सुरभि लेकर
हवा मेरी ओर आएगी क्या"
वो सुबह ज़रूर आएगी. हम तो इसी का रट लगाए रहते हैं. बहुत सुंदर. आभार.
सीमा जी नमस्कार
सीमा जी माफ करना कई दिन से आपके ब्लाग पर नहीं आ पाया कुछ व्यस्तताएं या कहिए पारिवारिक प्रोब्लम के कारण ज्यादा समय नहीं दे पाया ब्लाग की दुनिया को इस कारण आपकी कविताओं को नहीं पढ पाया आज आया तो देखा और पढा कविता को पढकर मन में आया कि कुछ तो लिख देना चाहिए मुझे लेकिन क्या करूं लिखना मुझे आता नहीं कोई मुझे बताता नहीं बिना कमेंट किए रहा जाता नहीं इसलिए नाकुछ लिखते हुए बस यही लिखूंगा की हमेशा की तरह बेहतरीन लिखते हो आप बस यही सदा ऐसे ही लिखते रहो
आपने मन की भावनाओं का प्रकृति से बहुत खूबसूरती से तादात्म्य स्थापित किया है, बधाई।
लाजवाब रचना .....
surbhi ki baat chali
to
holi ke din basant me aaye
yaad
hotaa thaa tesu
liye rangon ki barsaat
purvaj lagaa gaye the
aam
aur hum bo rahe babool
fir kahte
lo beta
chale ped par bandhe rassi
aur le jhool
Bahut achha likha hai aapne!
सुख और स्वयं के मध्य
लक्ष्मण रेखा खिंच कर
sundar..ati sundar.blog par charon taraf lage aapke chit'r bhi khoobsurat haiN aur khaskar "dil" jo yahan vahaN bikhre hain ati sundar..
mujhe nahin pataa ki ye kavita kitni kavita hai aur kitna sach... agar ik kavita bhi hai to behad dard hai ismen....aur agar sach hai to yah sach kavita se bhi jyada darnaak....!!
आज के युग में इतनी व्यथा क्यों । जहाँ सृस्ती मैं चरों और बाज़ार वाद और उपभोक्ता वाद चल रहा है । भूखी प्यासी नारी भी आज बाजारवाद के युग में कुछ सिम्बोल बन जाती है । इनता अंधकार और निराशया क्यों । कविता पड़ कर खाफी परेशान हो गया हूँ मैं ।
आज के युग में इतनी व्यथा क्यों । जहाँ सृस्ती मैं चरों और बाज़ार वाद और उपभोक्ता वाद चल रहा है । भूखी प्यासी नारी भी आज बाजारवाद के युग में कुछ सिम्बोल बन जाती है । इनता अंधकार और निराशया क्यों । कविता पड़ कर खाफी परेशान हो गया हूँ मैं । कविता नें मन को झंझ्कोरे के रख दिया है।
प्रस्तुति के लिए आभार
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित
लाजवाब...बेहद लाजवाब....
kiya kuhb likha hai
फल फूल भी आयेंगे
जख्मों के पुष्प खिलेंगे
bhut hi dard bhari kavita likhi hai ...
iske agee kuch likha hi nhi ja raha
seema ji , ayushi ka birthday tha or hume pata hi nahi chala. usko meri taraf se sorry kehna or kehna unkle ne aapko bahut pyar or dher sari suhbkamaye di hai.
haapy birthday to u ayushi
mairebhavnayen.blogspot.com is very informative. The article is very professionally written. I enjoy reading mairebhavnayen.blogspot.com every day.
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bahut hi suder,
aapki ye pyar me bhawbhivor panktiya sach me ek jadu s kaar gai
dhero badhaiya savikar kre
bahut hi suder,
aapki ye pyar me bhawbhivor panktiya sach me ek jadu s kaar gai
dhero badhaiya savikar kre
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