4/30/2014

"उस रात की बात.... "


"उस रात की बात.... "


चांदनी की सरगोशियाँ में


नहा कर मचलता


सियाह रात का हुस्न


उसपे बेख़ौफ़ होकर तेरे बाजुओं में


रुसवाइयों की थकन का पनाह पा जाना


लबों की चुप्पियों में दफ़न


इश्क का वो अंगारा


अचानक से


जिस्म की सरहदों से


झाँकने लगा है


कब तक छुप सकेगी


जमाने से आखिर


"उस रात की बात.... "

2 comments:

Anonymous said...

Bahut Khoob...

Kaunquest said...

listening to your captivating ghazal. very nice :)