चाँद मुझे लौटा दो ना
चंदा से झरती
झिलमिल रश्मियों के बीच
एक अधूरी मखमली सी
ख्वाइश का सुनहरा बदन
होले से सुलगा दो ना
इन पलकों में जो ठिठकी है
उस सुबह को अपनी आहट से
एक बार जरा अलसा दो ना
बेचैन उमंगो का दरिया
पल पल अंगडाई लेता है
आकर फिर सहला दो ना
छु कर के अपनी सांसो से
मेरे हिस्से का चाँद कभी
मुझको भी लौटा दो ना
8 comments:
छु कर के अपनी सांसो से
मेरे हिस्से का चाँद कभी
मुझको भी लौटा दो ना
बहुत ही खुबसुरत अल्फाज बेहतरीन रचना, शुभकामनाएँ.
रामराम.
बहुत सुन्दर रचना
नई पोस्ट मैं
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (24-10-2013) को "ब्लॉग प्रसारण : अंक 155" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
BAHUT HI SUNDER RACHNA, BADHAIYA
uljhe hea man ki uljhane
tum aoge to sulajh jayega.
na jaane esa kyon lagta he
tumse jab v milta hu......
sunil kumar sonu
uljhe hea man ki uljhane
tum aoge to sulajh jayega.
na jaane esa kyon lagta he
tumse jab v milta hu......
sunil kumar sonu
Lajawab....
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