वही फुरक़त के अँधेरे वही अंगनाई हो
तेरी यादों का हों मेला ,शब् -ए -तन्हाई हो
मैं उसे जानती हूँ सिर्फ उसे जानती हूँ
क्या ज़ुरूरी है ज़माने से शनासाई हो
इतनी शिद्दत से कोई याद भी आया ना करे
होश में आऊं तो दुनिया ही तमाशाई हो
मेरी आँखों में कई ज़ख्म हैं महरूमी के
मेरे टूटे हुए ख़्वाबों की मसीहाई हो
वो किसी और का है मुझ से बिछड कर “सीमा “
कोई ऐसा भी ज़माने में न हरजाई हो
8 comments:
Bahut khoob ... Gazab ke sher hain sabhi... Furkat ka manzar liye ...
मेरी आँखों में कई ज़ख्म हैं महरूमी के
मेरे टूटे हुए ख़्वाबों की मसीहाई हो
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वाह,,,वाह,,,,,क्या बात है
बहुत खूब
लाजवाब ग़ज़ल ......हर शेर उम्दा है !!!
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आभार
सीमा जी नमस्ते..
"वो किसी और का है मुझ से बिछड कर “सीमा “
कोई ऐसा भी ज़माने में न हरजाई हो ..."
उम्दा ... दिल के ठहरे तालाब में हलचल कर गयी ये ग़ज़ल ...
Woh kishi aur ka hai mujh se bishad kar "Seema"
Khoobsurat ghazal
Woh kishi aur ka hai mujh se bichad kar "Semma"
May God bless "U" and "Woh" both
Touching line
वो किसी और का है मुझ से बिछड कर “सीमा “
कोई ऐसा भी ज़माने में न हरजाई हो ..."
वाह ।
Extraordinary ASTONISHED seeing your touching new heights
pahlay to main ek raaz tha seenay mein dhadaktaa
afsose huaa hai ki abhee faash hua hoon
haathon mein liye haath ko chalta tha zameen per
dhartee se uthaya gayaa aakaash hua hoon
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