Ghazal published in Aalamisahara E magzine in Feb 2012 ediiton
हजारों ख्वाब आँखों में हमारी मुस्कुराये हैं
तेरे मिलने की बेताबी ने क्या क्या गुल खिलाये हैं
तसव्वुर ने तेरे फिर रात भर मुझको जगाया है
तेरी चाहत ने मेरी नींद पर पहरे लगायें हैं ......
लबों पर प्यास रखी है मिलन की आस रखी है
वही यादों का दरया है वही ठंडी हवाएं हैं
ये मंज़र शाम ढलने का , ये भीगी रात का दामन
तेरी यादों ने ऐ जानम यहीं खेमे लगाये हैं
ये तन्हाई , ये खामोशी , ये 'सीमा' हिज्र के लम्हे
रुपहली चांदनी रातों में , हम खुद को जलाएं हैं
Courtesy : Ali Abidi Amrohavi
2 comments:
ये मंज़र शाम ढलने का , ये भीगी रात का दामन
तेरी यादों ने ऐ जानम यहीं खेमे लगाये हैं
सुभान अल्लाह...क्या शेर है...भाई वाह...लाजवाब
नीरज
ये मंज़र शाम ढलने का , ये भीगी रात का दामन
तेरी यादों ने ऐ जानम यहीं खेमे लगाये हैं ...
गज़ब का शेर है ... बहुत ही लाजवाब ... और बधाई इस प्रकाशन पर ..
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