5/31/2010

वक़्त की गर्द से परे

"वक़्त की गर्द से परे"

वक़्त की गर्द से परे


एक पल तुमको सुन लेती

तारो की आगोश में छिप पर

अक्स तुम्हारा मन में धर लेती

प्रेम ठिठोली चंदा की अठखेली

संग तुम्हारे अंक में भर लेती..

एक पल तुमको सुन लेती.....

नदिया की धारा जुगनु तारा

प्रीत से बोझिल आलम सारा

शीत पवन की तन्हाई को

संग तुम्हारे सुर में सुर देती

एक पल तुमको सुन लेती....

25 comments:

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति.....

    ReplyDelete
  2. संग तुम्हारे सुर में सुर देती
    एक पल तुमको सुन लेती....


    दिल की गहराई से निकले भाव!

    ReplyDelete
  3. प्रेम ठिठोली चंदा की अठखेली

    संग तुम्हारे अंक में भर लेती..

    एक पल तुमको सुन लेती.....



    बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ..... यह कविता दिल को छू गई.....

    ReplyDelete
  4. bahut sundar


    puri tarh achhi rachna

    ReplyDelete
  5. वही कसक वही साध वही याद वही ललक वही अतृप्ति वही रिक्तक्ता वही तड़प वही विछोह वही विरह वही पीड़ा
    आपके सृजन का वही जज्बा ! सलाम !

    ReplyDelete
  6. सुन्दर अभिव्यक्ति,एक प्रेयसी की उत्कट अभिलाषा, कोमल मन और जज्बातो के अनुपम समन्वय को शब्दो का स्वरूप देती आपकी पन्क्तिया, पूर्व की कविताओ की तरह फिर से मन मे वही रोमान्च पैदा कर गयी... एक बार पुन: बधाई.

    ReplyDelete
  7. That is fantastic, asusual, words with feeling and meaning.

    Lovely.

    ReplyDelete
  8. सुंदर।
    मन की तड़प, चाह को जिस तरीके उपमाएं देकर शब्दों में पिरोया गया है, बढ़िया

    ReplyDelete
  9. तारो की आगोश में छिप पर,अक्स तुम्हारा मन में धर लेती...
    बहुत अच्छी रचना

    ReplyDelete
  10. शीत पवन की तन्हाई को
    संग तुम्हारे सुर में सुर देती

    प्रेम की कोमल भावनाओं में रची लाजवाब रचना है ... पवन की तरह बहती .. संगीत छेड़ती ... सुंदर अभिव्यक्ति है ...

    ReplyDelete
  11. संग तुम्हारे सुर में सुर देती
    khaaskar bhaa gayi ye pankti...pyaari rachna

    ReplyDelete
  12. रचना आमँत्रण की शक्ति और जिजीविषा की अभिव्यक्ति है ।

    ReplyDelete
  13. AMIT VERMA2/6/10 8:18 AM

    ek pal tum ko sun leti :)
    Yet another master piece from You seema

    Thanks for sharing.
    Love & Piece

    ReplyDelete
  14. वक़्त की गर्द से परे... या भी हो सकता था.
    बहुत बढ़िया!

    ReplyDelete
  15. शीत पवन की तन्हाई को

    संग तुम्हारे सुर में सुर देती

    एक पल तुमको सुन लेती....'

    - सुन्दर.

    ReplyDelete
  16. सीमा जी..अब तो किताबों में भी ऐसा पूर्ण समर्पण नहीं मिलता.दिल को छूती लाजवाब रचना.

    ReplyDelete
  17. SEEMA.....KYA AB VIRAH KEE GAHARAAYIYON KO BHI LAANGHNE KAA IRADA HAI....AISA MAT KARO PLIZ....VAISE EK BAAT BATAAUN......SACH LIKHI BAHUT ACCHHI HAI TUMNE YE KAVITA....JABARDAST....VAAH...VAAH....!!!!!

    ReplyDelete
  18. बहुत खूबसूरत भाव

    ReplyDelete
  19. प्रेम और कल्पना इनका अद्भुत समन्वय है आपकी इस रचना में.

    ReplyDelete
  20. भावपूर्ण रचना।

    ReplyDelete
  21. nayaa bck ground achcha lagaa.naye colors kaafi comfortable lagte hain. ghaalib kee ek ghazal hai:
    कभी नेकी भी उसके जी में गर आ जाए है मुझसे

    जफ़ाएं करके अपनी याद शर्मा जाए है मुझसे;

    खुदाया ! जज्बा -ए-दिल की मगर तासीर उल्टी है

    कि जितना खींचता हूँ और खिंचता जाए है मुझसे;


    वोह बद _ख़ू और मेरी दास्ताँ -ए -इश्क तुलानी

    इबारत मुख्तसर , कासिद भी घबरा जाए है मुझसे ;

    उधर वोह बद _गुमानी है , इधर यह नातवानी है

    न पुछा जाए है उससे , न बोला जाए है मुझसे;

    संभलने दे मुझे ऐ ना _उम्मीदी क्या क़यामत है

    कि दामान -ए -ख़याल -ए -यार छूता जाए है मुझसे;

    तकल्लुफ बरतरफ नज्ज़ारगी में भी सही , लेकिन

    वोह देखा जाए , कब ये ज़ुल्म देखा जाए है मुझसे ;

    हुए हैं पाँव ही पहले नाबार्ड -ए -इश्क में ज़ख़्मी

    ना भागा जाए है मुझसे , ना ठहरा जाए है मुझसे ;

    क़यामत है के होवे मुद्दई का हम _सफ़र 'ग़ालिब '

    वोह काफिर , जो खुदा को भी ना सौंपा जाए है मुझसे;

    ReplyDelete

"Each words of yours are preceious and valuable assets for me"