1/05/2009

"वेदना का वृक्ष"








"वेदना का वृक्ष"

विद्रोह कर आंसुओ ने,
नैनो मे ढलने से इंकार किया
ओर सिसकियाँ भी
कंठ को अवरुद्ध करके सो गयी
स्वर का भी मार्गदर्शन
शब्दों ने किया नही
भाव भंगिमाएं भी रूठ कर
लुप्त कहीं हो गयी
अनुभूतियों का स्पंदन भी
तपस्या में विलीन हुआ
वेदना के वृक्ष की ऊँचाइयों को
स्पर्श दिल ने जब किया .......


30 comments:

  1. कहां से लाती हैं शब्दों के मोती? वाह!

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  2. वेदना के वृक्ष की ऊँचाइयों को
    स्पर्श दिल ने जब किया .......

    बहुत गहनतम फ़िलिंग्स को व्यक्त किया इस रचना मे. बेमिसाल.

    रामराम.

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  3. सीमा जी, बहुत ही भावपूर्ण कविता है। आपको नए साल की ढेरों शुभ्‍ाकामनाएं।

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  4. बहुत भाव पूर्ण है यह कविता में बुने हुए लफ्ज़

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  5. "वेदना के वृक्ष"...भावों के तीब्रता की पराकाष्ठा. वैसे भी आपकी रचनाओं में कोई भी भाव अपनी अधिकतम संभावित ऊँचाइयों तक जाता है जो कथ्य को बहुत ही प्रभावशाली बना देता है.

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  6. अनुभूतियों का स्पंदन भी
    तपस्या में विलीन हुआ
    वेदना के वृक्ष की ऊँचाइयों को
    स्पर्श दिल ने जब किया .......
    well composed lines

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  7. पहली दो पंक्तियों ने ही मन मो लिया. आभार.

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  8. बहुत अच्छी कविता है....पढ़ कर बहुत अच्छा लगा....

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  9. स्वर का भी मार्गदर्शन
    शब्दों ने किया नही
    भाव भंगिमाएं भी रूठ कर
    लुप्त कहीं हो गयी
    सुंदर भावनात्मक शब्दों से पिरोई बढ़िया कविता .
    आपकी ऐसी कविता पढ़कर मन विद्रोही हो जाता है
    और जोर जोर से धड़कने लगता है और मेरा मन
    दिनभर आपके शब्द जाल में उलझा रहता है .
    महेंद्र मिश्रा
    जबलपुर.

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  10. बहुत ही भावपूर्ण कविता दिल को छू लेने वाली

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  11. विचित्र है आपका काव्य संसार और आपके शब्द
    भाव भंगिमाएं भी रूठ कर
    लुप्त कहीं हो गयी
    अनुभूतियों का स्पंदन भी
    तपस्या में विलीन हुआ

    बहुत गहरी भावनाएं है आपकी कविता में

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  12. तय नहीं कर पाते कि भाव ज्यादा सुन्दर हैं या शब्द संयोजन . एक से बढकर एक ! वाह !

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  13. "वेदना का वृक्ष" बहुत ही भावनात्मक काव्य रचना लगी ....दिल जो किसी मन्दिर सा पवित्र होता है वंहा पर आशाओं,इच्छाओं,भावनाओं और संवेदनाओं का अधिकार होना चाहिए लेकिन जब वन्ही पर दुःख और वेदनाएं पनप जाती है तो जीवन के मायने ही बदल जाते है .खैर जब दिल को दुखों का एहसास इस कदर तक हुआ की आंसुओ ने विद्रोह कर दिया .... भावः भंगिमाओं ने रूठ कर बड़े ही हौसले और साहस का परिचय दिया है वह काबिले तारीफ है .........आपने वेदना के वृक्ष उगाये वेदना के सही वृक्ष तो उगाये ....कीकर के पेड़ भी कांटेदार होते हुए भी पर्यावरण के लिए तो उपयुक्त है .....कृपया वृक्षों को सहेज कर रखिये ..लेकिन अच्छा होगा यदि वेदना के वृक्षों के साथ खुशिओं के बाग़,उम्मीदों के उपवन,और आशाओं के गमलें भी उगायें जाए ....पर्यावरण और जीवन दोनों को संतुलन की सख्त दरकार होती है

    .....सादर ....नव वर्ष की मंगल कामनाएं

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  14. Hey , very nice lines.....srry for being silent from long time.....

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  15. अनुभूतियों का स्पंदन भी
    तपस्या में विलीन हुआ,

    wah bahut sundar abhivyakti hai.

    -dard bhari kavita.

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  16. बहुत बढिया कविता है

    ---
    चाँद, बादल और शाम
    http://prajapativinay.blogspot.com

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  17. वेदना का वृक्ष ! दुष्यंत के पीर पर्वत की याद सहसा हो आई ! आपकी कवितायें सहज ही मन को संवेदित कर देती हैं और अलट्रूइजम को दुलराती हैं ! मैं कभी कभी इसलिए इनसे बचता भी रहता हूँ !

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  18. विद्रोह कर आंसुओ ने,
    नैनो मे ढलने से इंकार किया
    ओर सिसकियाँ भी
    कंठ को अवरुद्ध करके सो गयी

    कितनी गहरी थिंकिंग धिक् रही है बता नही सकता बेहद उम्दा लिखा है आपने ...बहोत खूब ढेरो बधाई कुबूल करें ....


    अर्श

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  19. जज्बातो में जान डाल दी है आपने

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  20. आराधनात्मक काव्य गुन्थन
    साधनात्मक भाव मन्थन

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  21. विद्रोह कर आंसुओ ने,
    नैनो मे ढलने से इंकार किया
    बहुत ही गहरे भाव लिये आप की यह रचना.
    धन्यवाद

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  22. बहुत अलग और गहरा लिखते हैं आप..........
    मर्मस्पर्शी.....


    अक्षय-मन

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  23. बेहद खूबसूरत रचना...शब्द संयोजन में आप का जवाब नहीं...
    नीरज

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  24. बहुत सुंदर गहरे भावः से ओतप्रोत रचना बहुत बहुत धन्यबाद

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  25. अनुभूतियों का स्पंदन भी
    तपस्या में विलीन हुआ
    वेदना के वृक्ष की ऊँचाइयों को
    स्पर्श दिल ने जब किया .......

    मर्मस्‍पर्शी भाव, बधाई।

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  26. अनुभूतियों का स्पंदन भी
    तपस्या में विलीन हुआ
    वेदना के वृक्ष की ऊँचाइयों को
    स्पर्श दिल ने जब किया .......


    shabd mil jaaye gar bayaani ko tkahne hi kyaa
    bhai wah

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  27. वेदना के वृक्ष की ऊँचाइयों को
    स्पर्श दिल ने जब किया .......
    सच कहता हूँ बहुत अच्छी है यः कविता.....सीमा जी अब आप "कहीं" पहुँच रहे हो......वो क्या कहते हैं ना "गहराईयों में.........सच.........!!

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  28. शब्दों का प्रवाह एकदम स्वाभाविक एवं दिल छू देने वाला है !!

    सस्नेह -- शास्त्री

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  29. स्वर का भी मार्गदर्शन
    शब्दों ने किया नही




    nahut hi sunder bhaw


    realy is to good


    apki har poeam dil ko chuu leti hai..


    subhkamnye

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"Each words of yours are preceious and valuable assets for me"