1/12/2009

"विमुखता"

"विमुखता"

खामोशी तेरे रुखसार की
तेज़ाब बन मस्तिष्क पर झरने लगी
जलने लगा धैर्य का नभ मेरा
और आश्वाशन की धरा गलने लगी
तुमसे वियोग का घाव दिल में
करुण चीत्कार अनंत करने लगा
सम्भावनाये भी अब मिलन की
आहत हुई और ज़ार ज़ार मरने लगी
था पाप कोई उस जनम का या
कर्म अभिशप्त हो फलिभुत हुआ
अपेक्षा की कलंकित कोख में
विमुखता की वेदना पलने लगी....






35 comments:

  1. बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति बहुत गहरे भावः भरी है आपकी कविता

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  2. सहृदय लिखी गयी बहुत अच्छी कविता

    ---मेरा पृष्ठ
    गुलाबी कोंपलें

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  3. दावानल की आग की जलन लिए ये शब्द, दर्द का ऐसा चित्र उकेरते हैं की लगता है सचमुच में कोई तेजाब दिल को छूकर गुजर गया हो .
    तुमसे वियोग का घाव दिल में
    करुण चीत्कार अनंत करने लगा
    सम्भावनाये भी अब मिलन की
    आहत हुई और ज़ार ज़ार मरने लगी
    था पाप कोई उस जनम का या
    कर्म अभिशप्त हो फलिभुत हुआ
    अपेक्षा की कलंकित कोख में
    विमुखता की वेदना पलने लगी....
    यूँ लगता है है जैसे वेदना स्वतः मूर्त रूप धर चीत्कार कर रही हो .

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  4. बहुत मार्मिक और गहन पीडा की अभिव्यक्ति. लाजवाब रचना है.

    रामराम.

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  5. खामोशी तेरे रुखसार की
    तेज़ाब बन मस्तिष्क पर झरने लगी
    सुंदर कल्‍पना।

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  6. दिल को झिंझोड़ती है, ये वेदना तुम्हारी
    फटते हुए जिगर की, लो दाद लो हमारी

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  7. बहुत मार्मिक ......bahut hi acchi kavita hai....

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  8. hi,
    it's really very painfull.
    but beautiful as well.

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  9. 'अपेक्षा की कलंकित कोख में
    विमुखता की वेदना पलने लगी...'
    इतना दर्द भरा है इन पंक्तियों में कि हर शब्द में उस की पीडा महसूस की जा सकती है.
    लगता है..
    जैसे दिल से जार जार आंसू बह रहे हों...!
    भावभरी रचना सीमा जी.

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  10. था पाप कोई उस जनम का या
    कर्म अभिशप्त हो फलिभुत हुआ
    अपेक्षा की कलंकित कोख में
    विमुखता की वेदना पलने लगी....
    मर्म झलकता है...
    ---मीत

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  11. Dear Seema
    This one is such a master piece..
    Really you done it superbly this time (as every time)

    Great Going Buddy
    In particular, I loved these rhymes inside this poetry..
    Greattt.....

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  12. यह वेदना, यह दर्द आखिर है ही क्यों?

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  13. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति... शब्दो चयन व भाव अद्वितीय हैं

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  14. कर्म अभिशप्त हो फलिभुत हुआ
    अपेक्षा की कलंकित कोख में
    विमुखता की वेदना पलने लगी....

    poem with the heart
    timing of word is like
    napolian bonapart

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  15. उत्कृष्ट रचना, मोतियों की तरह चुने हुये शब्द.

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  16. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  17. था पाप कोई उस जनम का या
    कर्म अभिशप्त हो फलिभुत हुआ
    अपेक्षा की कलंकित कोख में
    विमुखता की वेदना पलने लगी....


    --भीतर तक भेदती एक मार्मिक अभिव्यक्ति.

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  18. दिल से लिखी गई एक बेहतरीन कविता ... बहोत बधाई आपको सीमा जी...


    अर्श

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  19. गहन पीडा की मार्मिक अभिव्यक्ति...

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  20. कर्म अभिशप्त हो फलीभूत हुआ
    अद्भुत भाव !

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  21. लाजवाब शब्द और सुंदर भाव....ये ही तो विशेषता है आपकी...वाह...
    नीरज

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  22. बहुत ही गहरे भाव लिये, यह आप की कविता.
    धन्यवाद

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  23. बहुत खूब!! आपका यूँ संवेदनाओं के स्तर पर भावनाओं को उकेरना अच्छा लगा !

    बरसों पहले लिखी अपनी एक ग़ज़ल का मुखडा याद आ गया.....
    " कुछ दर्द को मिलाया , कुछ खाके ग़म मिला दी
    बस इस तरह खुदा ने , मेरी ज़िंदगी बना दी !!

    तेरी दुआ से मैंने पाई यह ज़िन्दगी है,
    मेरे खैरख्वाह तुने, यह कैसी बद्दुआ दी !!

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  24. आपका सहयोग चाहूँगा कि मेरे नये ब्लाग के बारे में आपके मित्र भी जाने,

    ब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है अवश्य अवगत करायें
    तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

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  25. वियोग श्रंगार से परिपूर्ण एक मार्मिक रचना।

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  26. सम्भावनाये भी अब मिलन की
    आहत हुई और ज़ार ज़ार मरने लगी


    बेहतरीन रचना है लेकिन दर्द भरी कि हर एक शब्‍द को दर्द में डुबोकर एक माला में पिरोया है

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  27. बहुत ही सुंदर और खुबसूरत रचना है मैम आपकी. नव वर्ष की शुभकामनायें. नया साल आपको शुभ हो, मंगलमय हो.

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  28. दिल को भेदने वाली. एकदम मर्मस्पर्शी. आभार.

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  29. मकर संक्राति पर्व की हार्दिक शुभकामना और बधाई .

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  30. अपेक्षा की कलंकित कोख में
    विमुखता की वेदना पलने लगी...
    विश्वास था इसलिए अपेक्षा ने जन्म लिया......
    वैसे कभी कभी तो ख़ुद पर भी भरोसा नही होता....
    बहुत ही गमदीदा लिखा है........




    अक्षय-मन

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  31. अच्छी है..........मगर पिछली ही कई कविताओं का विस्तार-सी..........सीमा जी ख़ुद को और भी अन्य रसों में अभिव्यक्त करें ना....!!

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  32. bahut hi behtrin rachna likhi hai.

    supab



    badhiyan

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"Each words of yours are preceious and valuable assets for me"