2/07/2011

"चांदनी पीती रही"


"चांदनी पीती रही"

आँखे सुराही घूंट घूंट
चांदनी पीती रही
इश्क की बदनाम रूहें
अनकहे राज जीती रही
रात रूठी बैठी रही
नाजायज ख्वाब के पलने झुला
नींद उघडे तन लिए
पैरहन खुद ही सीती रही
हसरतों के थान को
दीमक लगी हो वक़्त की
बेचैनियों के वर्क में
उम्र ऐसी बीती रही
आँखे सुराही घूंट घूंट
चांदनी पीती रही

19 comments:

  1. बहुत अच्छी जानकारी है पत्रिका के बारे मे। लेकिन मै तो आपकी कविता पढ रही हूँ और पढे जा रही हूँ
    आँखे सुराही घूंट घूंट
    चांदनी पीती रही
    कहाँ से ऐसे एहसास ढूँढ कर लाती हैं?

    दीमक लगी हो वक़्त की
    बेचैनियों के वर्क में
    उम्र ऐसी बीती रही
    वाह बहुत भावमय रचना है बधाई।
    निर्मला कपिला

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  2. सीमा जी आपकी रचना पढ़ के मुझे वो गाना याद आ गया, "रात भर बैरन निगोड़ी चांदनी चुभती रही", फिल्म आप की कसम से!
    आपकी रचनाएँ हमेशा ही ताजगी का एहसास कराती हैं!
    आफरीन!

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  3. बहुत खूब सीमा जी ....शुभकामनायें !

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  4. आँखे सुराही घूंट घूंट
    चांदनी पीती रही
    इश्क की बदनाम रूहें
    अनकहे राज जीती रही


    अत्यंत भावपूर्ण और सशक्त रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  5. सीमा जी प्रणाम !

    "नींद उघडे तन लिए
    पैरहन खुद ही सीती रही"

    वाह क्या बात कही है.....हम तो कायल हो गए आपकी लेखनी के ... बहुत खूब !

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  6. बहुत खूबसूरत,आभार.

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  7. आपकी रचनाएँ हमेशा ही ताजगी का एहसास कराती हैं!

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  8. बहुत सुंदर सीमा जी, धन्यवाद

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  9. "दीमक लगी हो वक़्त की
    बेचैनियों के वर्क में
    उम्र ऐसी बीती रही"

    लाजवाब
    गजब की पंक्तियाँ हैं
    ऐसा लगा जैसे गुलज़ार को पढ़ रहे हैं
    बधाई
    आभार

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  10. प्रिय सीमा गुप्ता जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    आँखे सुराही घूंट घूंट
    चांदनी पीती रही

    वाऽऽह ! क्या बात है …

    आपकी पुरानी पोस्ट्स भी देखी …
    बहुत ख़ूबसूरत भाव हैं आपकी रचनाओं में ।
    मुबारकबाद !

    आपका ब्लॉग भी इतना सुंदर है … ऊपर - नीचे हर कहीं जैसे ख़ूबसूरत फूल महक रहे हैं … अरे ! ये तो आपकी तस्वीरें हैं … :)

    बसंत पंचमी सहित बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  11. बहुत सुंदर सीमा जी, धन्यवाद

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  12. हसरतों के थान को
    दीमक लगी हो वक़्त की
    बेचैनियों के वर्क में
    उम्र ऐसी बीती रही ...

    अधूरी हसरतों के साथ जीना आसान नहीं होता ... उम्र भर एक प्यास का एहसास रहता है ... बेचैनी सी रहती है ...
    बहुत गहरी अनुभूति से गुजारती है ये रचना ..

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  13. हसरतों के थान को
    दीमक लगी हो वक़्त की
    बेचैनियों के वर्क में
    उम्र ऐसी बीती रही

    बड़े नए नए प्रतीक और बिम्ब देखने को मिले आपकी कविता में.

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  14. हसरतों के थान को
    दीमक लगी हो वक़्त की
    बेचैनियों के वर्क में
    उम्र ऐसी बीती रही
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति खुबसूरत अहसासों की अच्छी लगी , बधाई

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  15. बहुत खूब सीमा जी ....शुभकामनायें !
    बहुत सुन्दर कविता ...वाह

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  16. सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति !

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  17. हसरतों के थान को
    दीमक लगी हो वक़्त की
    बेचैनियों के वर्क में
    उम्र ऐसी बीती रही...................ज़िन्दगी की तल्ख़ सच्चाइयों को उजागर करती हुई भावपूर्ण दर्द से लबरेज़ कुछ अनकहे प्रश्न उठती हुई सुन्दर कविता सीमा जी इस कविता की रचना करना भी कलेजे का काम है.....बधाई स्वीकार करें

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