"युध्भूमि" त्रेमासिक पत्रिका का "सिसकती इंसानियत" का अंक मिला, किन शब्दों में आदरणीय प्रदीप जी का आभार प्रकट करूं समझ ही नहीं आ रहा. मेरी ताशकंत की यात्रा को आदरणीय शास्त्री जी की प्रतिमा और विवरण सहित जिस सुन्दरता से निखार कर युध्भूमि में अनुपम स्थान मिला है बस अभिभूत हूँ. कभी कभी कुछ कहने को शब्द भी कम पड़ जाते हैं, आज वही स्थिति मेरे सामने है.
सच में बेहद ही अनूठी प्रस्तुती है ये "युध्भूमि" , कितने सवाल कितने जवाब.....कितने संकल्प और न जाने साहित्य की कितनी सर्द गर्म आहटे समेटे अपने आप में एक सम्पूर्ण पत्रिका है.
आदरणीय सलीम प्रदीप जी और उनकी पूरी टीम को हार्दिक बधाई इतनी शानदार पेशकश पर. आप सभी का ये प्रयास अत्यंत सराहनीय है , नये पुराने साहित्य से परिचय कराने उनसे जुडी विस्तृत जानकारी देने में जो मेहनत आप लोग करते हैं अपना कीमती समय लगाकर उसके लिए शुक्रिया शब्द बेहद ही छोटा सा है. .युध्भूमि दिन बा दिन उचाईयों के नये आयाम स्थापित करे इन्ही शुभकामनाओ के साथ ..


"बी-२, मानसरोवर पार्क, शाहदरा , दिल्ली -110032"
दूरभाष - 9312034120
ईमेल- yudhbhumi@gmail.com
Badhai............post ko thora zoom karke lagati to aur kuchh bhi kahta..:)
ReplyDelete@ Mukesh ji,
ReplyDeleteplease click on image to read it,
regards
seema ji..
ReplyDeletemaine to zoom kar ke padh lee...
acha laga...
aapka swaagat hai...
"andheron ka ehsaas na ho" pe...
http://shayarichawla.blogspot.com/
युध्भूमि पत्रिका के बारे में उम्दा जानकारी दी है ...आभार
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई.
ReplyDeleteपत्रिका परिचय के लिए आभार और दिलकश चित्र के लिए भी जिसे सहेज लिया है !
ReplyDeleteबहुत बधाई.
ReplyDeleteहार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
आप को बधाई जी
ReplyDeletePatrika ki jaankaari dene ka shukriya ...
ReplyDeleteaapko bhi bahut bahut badhaai ....
पत्रिका की जानकारी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteआपके साथ-साथ हम भी घूम आए ताशकंद।
ReplyDeleteGantantr diwas kee dheron badhayi!
ReplyDeleteबधाई...उसी समझौते के नाम से जाना जाता है ताशकंद....बड़ा अहम समझौता था.......
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी है पत्रिका के बारे मे। लेकिन मै तो आपकी कविता पढ रही हूँ और पढे जा रही हूँ
ReplyDeleteआँखे सुराही घूंट घूंट
चांदनी पीती रही
कहाँ से ऐसे एहसास ढूँढ कर लाती हैं?
दीमक लगी हो वक़्त की
बेचैनियों के वर्क में
उम्र ऐसी बीती रही
वाह बहुत भावमय रचना है बधाई।