11/15/2010

"इश्क की इबादत "




"इश्क की इबादत "

बर्फीली पहाड़ियों से उठ कर
अधखुली आँखों से झांकती
भोर की निष्पक्ष किरणों से
कुनमुनाता है ठहरा सागर
नर्म घास की अंगड़ाइयों से
महकने लगती है फिजायें
धीमी गति से चुपचाप फिर
कहीं हवाएं लेती हैं करवटें
यूँ लगता है .....
कायनात की आगोश में सिमटा
पवित्र सौंदर्य का दिलकश मंजर
लिख रहा हो
धरती के अलसाये बदन पे
इश्क की एक नई इबादत

12 comments:

  1. बहुत खूबसूरत वर्णन ...प्रकृति इश्क के रंग में रंग गयी ..

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  2. वाह
    वहुत खूब
    प्रकृति का शानदार चित्रण है

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  3. "भोर की निष्पक्ष किरणों से
    कुनमुनाता है ठहरा सागर"
    आपका और कुदरत का बड़ा गहरा रिश्ता है.......ये रचना शांत समुद्र के किनारे अकेले बिताये कुछ क्षणों का एहसास ताज़ा कर गयी.......धन्यवाद

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  4. wah wah wah...
    khoobsurat ehsaas...

    पवित्र सौंदर्य का दिलकश मंजर

    aafareen

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  5. यूँ लगता है .....
    कायनात की आगोश में सिमटा
    पवित्र सौंदर्य का दिलकश मंजर
    लिख रहा हो
    धरती के अलसाये बदन पे
    इश्क की एक नई इबादत ...

    प्रेम की गहरी नज़र से प्राकृति भी अपने आप में आशिक ही नज़र आती है .... कुछ नया सा मंज़र आँखों के सामने बहने लगता है इस रचना को पढने के बाद ... लाजवाब ...

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  6. sundar kavita - aapki uplabdhi Tau paheli 100 kaa link kal mai charchamanch par rakh rahi hun..badhai aur shubhkaamnayen..

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  7. इश्क़ की भावनाओं से लबरेज़ बेहतरीन नज़्म जिसकी पासबां ख़ुद कुदरत बनी है। शत शत बधाई।

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  8. आह ! चार लाइनों में हज़ार बातें. सुंदर.

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  9. Prakruti ke ishk ka ye khoobsurat lamha aapne kitani sunderta se bayan kiya hai.

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  10. सीमा जी प्रणाम!
    नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें .....

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"Each words of yours are preceious and valuable assets for me"