6/22/2009

"मौन जब मुखरित हुआ "

"मौन जब मुखरित हुआ "

मौन जब मुखरित हुआ
और सुर मे आने लगा,
प्रियतम तेरी यादो का झरना
फुट फुट जाने लगा..

भूली बिसरी बातो के
सोए खंडहर सहसा जाग उठे,
पीडा के बोझ से दबा
हर पल लडखडाने लगा...

बिखरे हुए संबंधो की कडियाँ
छोर भी न कोई पा सकी,
अपनत्व का अस्तित्व
दर दर ठोकरे खाने लगा...
नैनो की शाखों पे
जम गये जो सुख कर
मृत अश्को मे प्राण
जैसे अंकुरित हो जाने लगा...

http://latestswargvibha.blog.co.in/

41 comments:

  1. बहुत सुंदर और सशक्त अभिव्यक्ति. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. मौन की भाषा पढ़ ली आपने.. बहुत सुन्दर..

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  3. बिखरे हुए संबंधो की कडियाँ

    छोर भी न कोई पा सकी,
    अपनत्व का आस्तित्व
    दर दर ठोकरे खाने लगा...
    वाह ,बहुत खूब,प्रभावी सृजन

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  4. भूली बिसरी बातो के
    सोए खंडहर सहसा जाग उठे,
    पीडा के बोझ से दबा
    हर पल लड़खाने लगा...


    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है........... यादों के खंडहर ........... सचमुच यादें खंडहर ही होती हैं.........

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  5. Soch ki gaharaiyo ko chhua hai aapane,
    Sadhuvad.

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  6. सुन्दर गज़ल,
    अच्छे शब्द।
    बधाई।

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  7. आज वाकई मौन मुखरित हुआ है.

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  8. tadapane ki darkhwast ke baad
    milaa apno ka saya
    aur maun mukhrit hua
    surya grahan se
    chand ka jharna bahaa
    jhilmilaaye sitare
    suhaag chinh darshit hua
    kaise maane
    aadi ke janam din baad
    tabiyat thi bigdi
    andaaz bayaani ka
    thamaa nahi tha thaamaa
    seema ne kahi baat viram se
    aur ham hanse ha ha

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  9. bahut hi sundar .........moun se nikali gayi kawitaa ........jisake shabda mukharita ho rahe hai...atisundar

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  10. bahut hi sundar .........moun se nikali gayi kawitaa ........jisake shabda mukharita ho rahe hai...atisundar

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  11. भाव प्रवण !

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  12. मौन जब मुखरित हुआ
    और सुर मे आने लगा,
    प्रियतम तेरी यादो का झरना
    फुट फुट जाने लगा..
    सुंदर....
    आपको वापस देख अच्चा लगा
    मीत

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  13. पीडा के बोझ से दबा

    हर पल लड़खाने लगा...
    sunder bhavabhivyakti.

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  14. बड़ा अच्छा लगा पूरे जोश खरोश से वापस आना. आशा है अब नियमित लेखन होगा.

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  15. welcome back........
    bahut accha likha aapne itna sundar geet ..........
    man main khushboo ki tarhaan samaa gaya........
    khusboo pholon bagon ki khushboo pehli barsaat ki sundhi soundi mitti ki........
    usi tarhaan aapka ye geet bahut accha laga............dhanywaad

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  16. मौन जब मुखरित हुआ.... वाह... पहली पंक्तिं ने ही छू लिया सीमा जी..

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  17. दिल को छूने वाले रचना !

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  18. सीमा जी,

    बहुत सुन्दर रचना और उतने ही सुन्दर चित्र का आपके द्वारा चयन.

    बधाई आपको.

    इतने कम समय मे इतनी ढेर सारी प्रतिक्रियाये जैसे आपके लेखनी का लोहा मानने को मुझे विवश करती है.

    प्रथम चार पन्क्तियो मे किसी विरहन के मुखरित होते मौन के फलस्वरूप उत्पन्न भावो को वयक्त करने की आपकी चेष्टा आपकी लेखन कुशलता को प्रतिबिम्बित करती है.विरह वेदना को महसूस करती किसी स्त्री का मौन जब मुखरित होता होगा तो निश्चय ही भावनाओ का हिम शिखर पिघलता होगा जो रह रह कर आन्सुओ के रूप मे गिरते हुये एक स्त्री के ह्र्दय की धधकती ज्वाला को शान्त करने का नाकाम प्रयत्न करती होन्गी.वे आन्सू गर्म तवे पर गिरते पानी की कुछ बून्दो की तरह उस अत्रिप्त प्यास को और उद्वेलित करती होन्गी.मातमी गीत सुरो मे सज कर स्पन्दित होती धडकनो के साथ लय और ताल मिला किसी तरह जी लेने का पथ प्रशस्त करती होन्गी.

    बीच के दोनो पेराग्राफ्स बहुत सुन्दर, जैसे उन्ही मौन को मुखर स्वरूप प्रदान करने के लिये वे यादे हेतु बनती होन्गी.

    अन्तिम चार पन्क्तियो मे जैसे आपने निचोड ही कह डाला, सचमुच उन सुखे अश्रुओ मे प्राण का सन्चार तो तभी होता होगा जब वे अतीत की यादे टीस बनकर फिर से उन घावो को हरा करती होन्गी, और यमुना की निश्छल जल धारा की तरह कोई विरहा अपने आन्सुओ के प्रवाह से उन यादो के सतह पर जमे धूल धुसरित आवरण को निर्मल कर सहेजती होगी.

    बहुत सुन्दर रचना

    पुन: बधाई आपको

    राकेश

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  19. Superbly Amazing :)
    It was like I was reading your lines and wandering within a distant land, at the same time..

    You rock lady ..

    Amit Verma

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  20. आपकी शब्‍द योजना अदभुत है, जिससे कविता में एक नया आकर्षण उत्‍पन्‍न हो जाता है।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  21. सीमा जी,


    बीमारी के बाद बड़ी चुस्ती से मैदान में हैं। यह जोश-ओ-खरोश बरकरार रहे, आपका ब्लॉग पढना एक सुखद अनुभव होता है।

    सादर,


    मुकेश कुमार तिवारी

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  22. मौन जो बहुत लम्बा हो चला था...........उसे तो मुखरित होना ही था..............

    मौन का मुखरित होना भले ही कडुआ लगे पर सच के बहुत ज्यादा करीब होता है कारण कि मौन तभी मुखरित होता है जब उसके हिसाब से सहन की पराकाष्ठा समाप्त हो चुकी होती है..........

    सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति पर हार्दिक आभार.

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  23. बहुत सुन्दर तरीके से आपने जिन्दगी के हालत को बयान किया है .. आपकी लेखनी को प्रणाम
    प्रदीप मनोरिया
    09425132060

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  24. "मौन जब मुखरित हुआ
    और सुर मे आने लगा,
    प्रियतम तेरी यादो का झरना
    फुट फुट जाने लगा"
    रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....

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  25. सिमा गुप्ताजी,
    "भूली बिसरी बातो के
    सोए खंडहर सहसा जाग उठे,"
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है...* * * * *

    आभार/मगलकामना
    महावीर बी सेमलानी "भारती"
    मुम्बई टाईगर
    हे प्रभु यह तेरापन्थ

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  26. अपनत्व का अस्तित्व
    दर दर ठोकरे खाने लगा...
    नैनो की शाखों पे
    जम गये जो सूख कर
    मृत अश्को मे प्राण
    जैसे अंकुरित हो जाने लगा..

    बहुत भावपूर्ण कविता
    मौन की भाषा की सुन्दर अभिव्यक्ति !


    आज की आवाज

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  27. seema ji ,

    namaskar ...

    aapki is kavita ne to maun ki bhaasha ko nayi abhivykati di hai .....

    poori kavita ek lay me hai...

    aapko bahut abhaar is post ke liye ..

    bahut dino se aap ne meri poems ko apna aashirwad nahi diya ji ...
    samay mile to dekhiyenga jarur..

    dhanywad.

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  28. मृत अश्को मे प्राण
    जैसे अंकुरित हो जाने लगा..
    बहुत ही उम्दा ओर स्तरीय रचना .आप की शैली सिर्फ आपकी है
    ठीक आप के आने से भी ब्लॉग जगत में प्राण वापिस आ गए है
    बेहतर स्वास्थ्य की कामना के साथ
    sure

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  29. बहुत सुंदर और सशक्त अभिव्यक्ति. शुभकामनाएं.

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  30. मुखरित हुए मौन ने दिल को छू लिया है

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  31. मौन जब मुखरित हुआ,

    काव्‍य का तब जन्‍म हुआ,

    आपकी पढकर रचना

    टिप्‍पणी मैंने किया।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  32. मौन जब मुखरित हुआ
    और सुर मे आने लगा,
    प्रियतम तेरी यादो का झरना
    फुट फुट जाने लगा..


    -वाह!! चलो, सुर मे आ गया,, वाकई, सुर में आ गया. बहुत खूब!

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  33. behtareen vapsee huyee hai...balki shayad vaapsee kehna theek nahi,kyonki aap kabhi door nahi gaye they :)

    aapki agli rachna ka intezaar hai

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  34. बहुत ही लाजवाब कविता कही सीमाजी आपने। क्या कहना ! अहा ! मौन जब मुखरित हुआ।

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  35. हृदयस्पर्शी रचना

    ---
    विज्ञान । HASH OUT SCIENCE

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  36. bahut kuhb seema ji very nice..


    likhna bhi cahuu to kuch likh nahi pauu main uska naam ( apki poetry ki baat ki baat kar raha hu)

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  37. सुंदर पंक्‍ति‍यॉं-

    अपनत्व का अस्तित्व
    दर दर ठोकरे खाने लगा...

    और सुंदर कल्‍पना-

    नैनो की शाखों पे
    जम गये जो सुख कर
    मृत अश्को मे प्राण
    जैसे अंकुरित हो जाने लगा...

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  38. wah seema ji kya kuhb likha hai
    मौन जब मुखरित हुआ
    और सुर मे आने लगा,
    प्रियतम तेरी यादो का झरना
    फुट फुट जाने लगा.dhero badhiya savikar kare

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