4/20/2009

निरुत्तर लौटे संदेश सभी

" निरुत्तर लौटे संदेश सभी "

सुनी लगती है ये धरती...
अगन ये नभ बरसाता है
तुमको खोजे कण कण मे
ये मन उद्वेलित हो जाता है...

अरमानो के पंख लगा
एक स्पर्श तुम्हारा पाने कों
सेंध लगा रस्मो की दीवारों मे
दिल बैरागी हो जाता है.....
हर आस सुलगने लगती है
उम्मीद बोराई जाती है
ये कसक है या दीवानापन
सुध बुध को समझ ना आता है...

पानी की बूंदों से बाँचे
और पवन के रुख पे सजों डाले
निरुत्तर लौटे वो संदेश सभी
हर प्रयास विफल हो जाता है...

48 comments:

  1. तुमको खोजे कण कण मे
    ये मन उद्वेलित हो जाता है....
    अति सुंदर .

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  2. सीमा जी,

    " पानी की बूंदों से बाँचे
    और पवन के रूख पे सजों डाले
    निरूत्तर लौटे वो संदेश सभी
    हर प्रयास विफल हो जाता है "

    सुन्दर अभिव्यक्ती!, सुन्दर भाव!!

    सच किसी प्रिय के लिये प्रिय तक संदेश भेजे जाने के बाद जवाब का इंतजार करना और जवाब आना किसी रॉकेट का अपने लक्ष्य तक पहुँच जाने के बाद सकुशल लौट के आने सा ही है.

    मुकेश कुमार तिवारी

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  3. सुनी लगती है ये धरती...
    अगन ये नभ बरसाता है
    तुमको खोजे कण कण में
    ये मन उद्वेलित हो जाता है..

    बहुत ही बढ़िया भावपूर्ण रचना . पढ़कर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि ये पंक्तियाँ जैसे किसी की बेसब्री से प्रतीक्षा में है .
    आभार. .

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  4. सुनी लगती है ये धरती...
    अगन ये नभ बरसाता है
    तुमको खोजे कण कण में
    ये मन उद्वेलित हो जाता है..

    बहुत ही बढ़िया भावपूर्ण रचना . पढ़कर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि ये पंक्तियाँ जैसे किसी की बेसब्री से प्रतीक्षा में है .
    आभार. .

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  5. बहुत ही खूबसूरत. "उम्मीद बोराई जाती है" इस पंक्ति ने तो हमें बौरा दिया.

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  6. पानी की बूंदों से बाँचे

    और पवन के रुख पे सजों डाले

    निरूतर लौटे वो संदेश सभी

    हर प्रयास विफल हो जाता है...

    खूबसूरत भाव -अभिव्यक्ति .
    हृदय की उथल पुथल और आशा -निराशा को बेहद खूबसूरती से चित्रित किया है.

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  7. पानी की बूंदों से बाँचे

    और पवन के रुख पे संजो डाले

    निरूतर लौटे वो संदेश सभी

    हर प्रयास विफल हो जाता है...
    बहुत गहरी कविता.. आभार

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  8. विरह महसूस करा दिया आपने आपनी इस रचना से...
    खूबसूरत...
    मीत

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  9. निरूतर लौटे वो संदेश सभी
    हर प्रयास विफल हो जाता है...

    इंतजार की कशिश को शानदार अभिव्यक्ति दी है आपने.बहुत ही सुंदर. शुभकामनाएं.

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  10. अरमानो के पंख लगा

    एक स्पर्श तुम्हारा पाने कों

    सेंध लगा रस्मो की दीवारों मे

    दिल बैरागी हो जाता है.....


    --बढ़िया भावपूर्ण रचना . बहुत ही खूबसूरत.

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  11. आत्‍माभिव्‍यक्ति की सुंदर रचना।

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  12. कविता का एक एक शब्द पढने वाले को बांध कर रखने में समर्थ है ,
    निर्मोही से ह्रदय लगा कर यही हालत होती है जैसे की आपने लिखा है

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  13. तुमको खोजे कण कण मे
    ये मन उद्वेलित हो जाता है....
    अति सुंदर ....खूबसूरत भाव -अभिव्यक्ति .

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  14. सेंध लगा रस्मो की दीवारों मे
    दिल बैरागी हो जाता है.....

    बहुत खूब. सीमा जी आपने इन दो पंक्तियों में बहुत कुछ कह डाला. एक तरफ रस्मों की दीवारों में भेदने की ललक और दूसरी और दिल का बैरागी हो जाना ...............................

    सुन्दर प्रस्तुति.

    बधाई हो.

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  15. amit verma20/4/09 1:03 PM

    This poem is as beautiful as nature Ise padhte padhte mano me kahin kho sa gaya..
    Truly mesmerising and eloquent poetry of yours..

    Love and Care
    Amit Verma

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  16. अरमानो के पंख लगा
    एक स्पर्श तुम्हारा पाने कों
    सेंध लगा रस्मो की दीवारों मे
    दिल बैरागी हो जाता है.....
    वाह बहुत खूबसूरत शब्द और तिलस्मी चित्र....दोनों मिल कर रचना को नए आयाम दे रहे हैं....बधाई...
    नीरज

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  17. बहुत खूब. आपने इन दो पंक्तियों में बहुत कुछ कह डाला. एक तरफ रस्मों की दीवारों में भेदने की ललक और दूसरी और दिल का बैरागी हो जाना.
    बहुत ही बढ़िया भावपूर्ण रचना . पढ़कर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि ये पंक्तियाँ जैसे किसी की बेसब्री से प्रतीक्षा में है

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  18. अरमानो के पंख लगा

    एक स्पर्श तुम्हारा पाने कों

    सेंध लगा रस्मो की दीवारों मे

    दिल बैरागी हो जाता है.....

    sundar bhavabhivykti

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  19. सुन्दर कविता और उसके साथ सुन्दर चित्र.

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  20. बहुत भावपूर्ण !! बहुत खूबसूरत !!

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  21. पानी की बूंदों से बाँचे
    और पवन के रुख पे सजों डाले
    निरूतर लौटे वो संदेश सभी
    हर प्रयास विफल हो जाता है...

    वाह जी वाह बहुत ही खुबसूरत भाव हैं बेहतरीन रचना के लिए बधाइ

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  22. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति व्यक्त की है आपने इस रचना के माध्यम से ..बहुत अच्छी लगी यह

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  23. अरमानो के पंख लगा
    एक स्पर्श तुम्हारा पाने कों
    सेंध लगा रस्मो की दीवारों मे
    दिल बैरागी हो जाता है.

    मुझे तो पसंद आयी ये लाईनें - दीदार को तरसती ! अभिसार को उत्कंठित !

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  24. बिरह बेदना की सुन्दर अभिव्क्ति......

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  25. "अरमानो के पंख लगा / एक स्पर्श तुम्हारा पाने कों

    सेंध लगा रस्मो की दीवारों मे / दिल बैरागी हो जाता है..... "

    बहुत खूब मैम...बहुत खूब !!!

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  26. bahut hee sundar . 'man vairagee' adbhut abhivyakti .

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  27. सीमा जी
    मिलन और विछोह के बीच इंसान की बेबसी को बहुत ही गहरे में बांधा है इस कविता में अपने.............
    हर शब्द अपने आप में कुछ कहता हुवा लगता है............

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  28. जिंदगी की कटु सच्‍चाइयों से ओतप्रोत कविता।


    -----------
    खुशियों का विज्ञान-3
    ऊँट का क्‍लोन

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  29. sandesh chaahaa tha jinse, kya unhe pataa hai?

    laute jo sandesh niruttar, prashnon ki koi khataa hai?

    armaano ka pankh lagaa ke dil ud ud kahaan jaataa hai ?

    bin lakshy ke kabhi koi kaam safalta bhalaa paata hai?




    chitr lagaaya sunder hai man ka
    snahare parinde kaa
    kya pataa dil hai kyon kahtaa
    aisa kuchh mere sang bhi to hota hai

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  30. baki kya rah jata gar...uttar mil jaate to.....!!
    aur bi mushkil jaati....gar....uttar mil jaate to....!!
    jindgi aboojh rahi...isiliye hamne jee bhi lee.....!!
    vakt se pahle mar jaate gar....uttar mil jaate to.....!!

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  31. bahut hi sunder rachna ,

    iske alawa kuch likhna bahut muskil hai,

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  32. मुश्किल ही ना हो जाती गर....उत्तर मिल भी जाते तो.....??
    बाकि ही क्या रह जाता गर.....उत्तर मिल भी जाते तो.....!!
    और भी मुश्किल हो जाती गर....उत्तर मिल भी जाते तो ....!!
    जिन्दगी बड़ी अबूझ रही.....इसीलिए हमने जी भी ली.....!!
    वक्त से पहले मर जाते हम गर....उत्तर मिल भी जाते तो.....!!
    हमने वक्त को पल-पल सींचा....पल-पल इक इंतज़ार किया
    हर पल भारी-भारी हो जाता गर....उत्तर मिल भी जाते तो....!!
    हर दुश्वार को आसां बनाना आदमी की ही अनूठी फितरत है
    हर आसानी मुश्किल हो जाती गर उत्तर मिल भी जाते तो....!!
    हमने मुहब्बत को अपनाया..और गाफिल सबों से प्यार किया
    हम गाफिल भला कहाँ रह पाते गर...उत्तर मिल भी जाते तो...!!

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  33. पानी की बूंदों से बाँचे
    और पवन के रुख पे सजों डाले
    निरुत्तर लौटे वो संदेश सभी
    हर प्रयास विफल हो जाता है...

    बहुत बढ़िया ...संवेदनशील अभिव्यक्ति ..
    हेमंत कुमार

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  34. ये कसक है या दीवानापन
    सुध बुध को समझ ना आता है...
    यह भाव भरा हर गीतों में
    दारुण क्रन्दन कर जाता है।
    सीमा जी के मन के भीतर
    संत्रास अगाध समाता है?

    एक और विप्रलम्भ के लिए शुक्रिया।

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  35. बहुत ही अच्छी कविता । धन्यवाद

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  36. इन पंक्तियों को पढ कर मन की व्यथा का अंदाजा सहज ही हो जाता है।

    ----------
    TSALIIM.
    -SBAI-

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  37. seema ji ,

    bahut hi sundar rasbhari kavita . prem ki sampoorn abhivyakti ko sajaati hui ....

    badhai sweekar karen ..

    vijay
    http://poemsofvijay.blogspot.com

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  38. बहुत ही अच्छी कविता । धन्यवाद

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  39. तुम एक बार कहे कर तो देखो कैसे बदले गई ये धरती ये चमन ..कोशिश तो करो ...खुद चल दे दी ये धरती ..बहुत उमंदा

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  40. kuch bhavnatmak vakyon ka punj-
    kavita hi hai !

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  41. गर्म मौसम की तपीश में एक अच्‍छी कवि‍ता।

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  42. बहुत उत्तम रचना है !

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  43. ये पंक्तियाँ बहुत मनोहारी हैं-अरमानो के पंख लगा
    एक स्पर्श तुम्हारा पाने कों
    सेंध लगा रस्मो की दीवारों मे
    दिल बैरागी हो जाता है.....

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"Each words of yours are preceious and valuable assets for me"