
रात के स्वर्णिम पहर में
झील को दर्पण बना
चाँद जब बादलो से निकल
श्रृंगार करता होगा
चांदनी का ओढ़ आँचल
धरा भी इतराती तो होगी...
धरा भी इतराती तो होगी...
मस्त पवन की अंगडाई
दरख्तों के झुरमुट में छिप कर
दरख्तों के झुरमुट में छिप कर
परिधान बदल बदल
मन को गुदगुदाती तो होगी.....
मन को गुदगुदाती तो होगी.....
नदिया पुरे वेग मे बह
किनारों से टकरा टकरा
किनारों से टकरा टकरा
दीवाने दिल के धड़कने का
सबब सुनाती तो होगी .....
सबब सुनाती तो होगी .....
खामोशी की आगोश मे रात
जब पहरों में ढलती होगी
ओस की बूँदें दूब के बदन पे
ओस की बूँदें दूब के बदन पे
फिसल लजाती तो होगी ......
दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....
दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....

http://hindivangmay1.blogspot.com/2009/02/blog-post_27.html
दूर बजती किसी बंसी की धुन
ReplyDeleteपायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....
वाह वाह सुंदरतम रचना. बहुत बधाई.
रामराम.
रात के स्वर्णिम पहर में
ReplyDeleteझील को दर्पण बना
चाँद जब बादलो से निकल
श्रृंगार करता होगा
चांदनी का ओढ़ आँचल
धरा भी इतराती तो होगी...
bahut sunder bhaaw hai...dil ko chu gae
अनजानी सी कोई आहट आकर
ReplyDeleteतुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी..... कोई संदेश कहीं दूर तक गूंज जाता है.
romani,behad khubsurat
ReplyDelete" खामोशी की आगोश में अनजानी सी कोई आहट". वाकई मजा आ गया. हमने लाइन बदल डाली. आभार.
ReplyDeleteचांदनी का ओढ़ आँचल
ReplyDeleteधरा भी इतराती तो होगी...
-वाकई....
बहुत खूब कल्पनाशीलता है. आनन्द आ गया रचना पढ़कर.
hahahaha
ReplyDeletesach me ek anjani se soch bas yunhi aankho k saamne se gujar jati hai
in panktiyon me dil ko chune wali vo ajeeb si megnate hai.
it's really very very nice
आज तो बिल्कुल अलग अंदाज.. बे्हररीन..
ReplyDeletejab sath hotaa hai chsmaa aankhon par
ReplyDeletekaiton ko maine dhoondhte dekh
jabki wo rahaa apni jagah par
"दूर बजती किसी बंसी की धुन
ReplyDeleteपायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी....."
सुन्दर अभिव्यक्ति, भावपूर्ण पंक्तियां.
सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामना .
bahot hi khubsurati se likha gaya... behad umda rachana....
ReplyDeletearsh
आपके इस शाब्दिक चित्रण से मन एकदम उसी समां में जा पहुँचा जो चित्रण आपने किया है...
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
मीत
प्रकृति के बिम्बों के जरिये श्रृंगार का मुखर स्वर- संदेश !
ReplyDeleteसुन्दर भावभरी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमेरे शब्दों में
झील तेरी आंखें हैं
प्यार परछांई है
दिल की बातें सभी
लफ़्जों में सिमट आई हैं
दूर बजती किसी बंसी की धुन
ReplyDeleteपायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....
बहुत रूमानी भाव हैं सुंदर लगी आपकी यह कविता
jheel,darpan,chandani rat, chand,yad,payal bansi.sab kuchh ek saath. narayan narayan
ReplyDeletewah seema ji
ReplyDeletekya romance hai aapki is kavita mein
bahut hi khoobsurati se sajaya hai isey aapne.
itni sunder rachna ke liye badhai aur dhanyawad
manuj mehta
वाह वाह क्या तुकबन्दी है।
ReplyDeleteमस्त पवन की अंगडाई
ReplyDeleteदरख्तों के झुरमुट में छिप कर
परिधान बदल बदल
मन को गुदगुदाती तो होगी.....
वाह सीमा जी आप ने कलपना को कविता मै बदल दिया. बहुत ही सुंदर लगा.
धन्यवाद
इन पन्नों पर यह कविता पढ़कर ऐसा लगा जैसे ऊमस भरे गर्म दिन के बाद अचानक बारिश की रिमझिम शुरू हो जाय और ठण्डी हवा बहने लगे।
ReplyDeleteआपने दुःख के बादलों के बीच से निकलकर यह जो प्यार से सहलाती गुदगुदाती रचना पढ़वायी है वह एक अलग एहसास दे गयी।
धन्यवाद।
सुन्दर अति सुन्दर।
ReplyDeleteदूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....
मीठा सा अहसास।
कोमल भाव लिए एक बहुत प्यारी रचना... बधाई...
ReplyDeleteनीरज
दूर बजती किसी बंसी की धुन
ReplyDeleteपायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....
romantic......
धरा भी इतराती तो होगी...
ReplyDeleteमन को गुदगुदाती तो होगी.....
सबब सुनाती तो होगी .....
फिसल लजाती तो होगी ......
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....
सीमाजी
हमेशा कि तरह आज भी सुन्दर- मन को भाने वाली रचना। बहुत ही अच्छी कविता। मै तो आपके इस ब्लोग पर अक्सर आके कभी कभी चोरी-चोरी एक दो लाईन चुरा लेता हु और दोस्तो को पत्नि को सुना देता हु - खुश हो जाते है। मेरा काम बन जाता है।
आप के नई पोस्ट का इन्तजार रहता है। हार्दिक मगलभावना सहीत।
जय हिन्द॥॥।
PRAKRUTI CHITRAN PRBHWSALI HAI
ReplyDeleteदूर बजती किसी बंसी की धुन
ReplyDeleteपायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी
-वाह!!!!!!!!!!
-रूमानी कविता :)
दूर बजती किसी बंसी की धुन
ReplyDeleteपायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....
........................उसी की इक आहट की झलक पाकर किसी के भीतर कोई कविता खिलखिलाती होगी.....किसी की याद रुलाती भी होगी....तो यह कह कर ढाढस भी बंधाती होगी कि ज़रा ठहर ना कि अभी वह आती ही होगी......आती ही होगी....आती ही होगी.......!!
सीमा जी की हर कविता में एक कशिश होती है, भावों और शब्दों के चुनाव में ऐसा आकर्षण है जो पाठक को
ReplyDeleteरचना को बार बार पढ़ने में बाध्य कर देता है। उनकी अन्य रचनाओं की भांति "झील को दर्पण बना" भी बहुत सुंदर रचना है।
महावीर शर्मा
और जग के सघन रव के बीच जगकर
ReplyDeleteरागिनी मेरी कभी अंगडाई लेकर
प्यास से सूखे तुम्हारे तप्त अधरों पर
राग कोई चाह की गाती तो होगी
आज अल्फ़ाज़ ही नहीं मिल रहे सीमाजी आपकी इस अतिसुन्दर रचना की तारीफ़ के लिए।
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteThis poetry is really picturesque and creates a pictre before my eyes for each and every line, it has.
ReplyDeleteKeep on amazing us with power of your writings
amit...
Seema ji,
ReplyDeleteYour blog is live blog.It refreshes me. Nice poem .
आ. महावीरजी की टिपण्णी जैसी है बस वही मुझे कहना है....
ReplyDeleteखामोशी की आगोश मे रात
जब पहरों में ढलती होगी
ओस की बूँदें दूब के बदन पे
फिसल लजाती तो होगी ......
आप बहुत सुन्दर रचनाकार है...
इस मुखर अभिव्यक्ति के लिये बधाई सीमा जी...
ReplyDelete"तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी....."
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
बहुत सुंदर कविता है, बधाई।
ReplyDeleteचांदनी का ओढ़ आँचल
ReplyDeleteधरा भी इतराती तो होगी...
अति सुन्दर...........
चालीस टिप्पणियों तले दबा
ReplyDeleteकह रहा हूँ बात एक
इस कलम के जादू से
हो रही बरसात एक
डूबता जाता है मन
"रात के स्वर्णिम पहर"
चांद निकल कर आयेगा
ढ़ायेगा फिर एक कहर...
दूर बजती किसी बंसी की धुन
ReplyDeleteपायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी....
सुन्दर भाव, खूबसूरत कविता।
दूर बजती किसी बंसी की धुन
ReplyDeleteपायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....
शब्दों को खूबसूरत ख्याल में पिरो कर सुनहरे एहसास में बांधा है आपने.
जगजीत जी की ग़ज़ल की याद दिला गयी यह कविता
बहुत खूबसूरत
दूर बजती किसी बंसी की धुन
ReplyDeleteपायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....
बहुत ही हृदय स्पर्शी बात कही है ...उपरोक्त उपमाओं के अतिरिक्त भी बहुत से ऐसे उपमान ओर बातें होती है जो यादों को तरोताजा कर देती है पर उनको याद कैसे करे जो भुलाये ही न जाते हो. न जिनको भुलाना चाहते है . नदिया का पूरा वेग ओर मस्त पवन अपने काम कर जाते है कविता का शीर्षक बहुत अच्छा लगा ओर चित्र के तो क्या कहने इस तरह की भावः पूर्ण रचनाओं को पाठको के सम्मुख लाने के लिए आप सदैव बधाई की पात्रा रहोगी .महान विचारों से भरी आपकी रचनात्मकता को साहित्य के एक पाठक की तरफ से अनेकों साधुवाद
रात के स्वर्णिम पहर में
ReplyDeleteझील को दर्पण बना
चाँद जब बादलो से निकल
श्रृंगार करता होगा
चांदनी का ओढ़ आँचल
धरा भी इतराती तो होगी...
.......धरा अवश्य इतराती होगी ......ओर चाँद का श्रंगार करना झील को दर्पण बनाकर उसमे देखना ....सौन्दर्य का इससे बेहतर नमूना मैंने आज तक नहीं पढ़ा ओर न ही महसूस किया
आप की इस रचना को मेरी तरफ से ओस्कर ओर गोल्डन ग्लोब ....स्वीकार करें
दूर बजती किसी बंसी की धुन
ReplyDeleteपायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....
दिल में उतर जाने वाली पंक्तियॉं है, बधाई।
मस्त पवन की अंगडाई
ReplyDeleteदरख्तों के झुरमुट में छिप कर
परिधान बदल बदल
मन को गुदगुदाती तो होगी.....
.....!!!!!
रात के स्वर्णिम पहर में
ReplyDeleteझील को दर्पण बना
चाँद जब बादलो से निकल
श्रृंगार करता होगा
चांदनी का ओढ़ आँचल
धरा भी इतराती तो होगी.
वाह सीमा जी लाजवाव
देरी के लिए माफी बहुत ही सुंदर रचना है
धरा इसे पढ़ती तो और इतराने लगती। सुन्दर!
ReplyDeletebahut hi sunder or kiya kehte hai wo "romani" kavita likhi hai
ReplyDeletevery nice seema ji
बहुत ही लाजवाब कहा सीमाजी।
ReplyDeleteअरे वाह! बहुत खूब! एकदम याद आती होगी। ऐसे में तो याद आये बिना रह ही नहीं सकती!
ReplyDelete