"फर्ज निभाने को" तन्हाइयों ने फ़िर बीज तेरी यादो के रोपे मन के बंजर खलिहानों मे घावो की पनीरी अंकुरित हुई बीते लम्हों की फसल उगाने को तिल तिल जल के राख़ हुए अरमान उर्वरक बन बिखर गये दिल दरिया अश्रु बह निकले
कवयित्री ने रूपक और अतिशयोक्ति अलंकार का सुंदर प्रयोग किया है ! मन में खलिहान का भेद रहित आरोप है . किंतु बंजर भूमि में अंकुरण होता नहीं इसलिए वहाँ खलिहान नहीं हो सकता तो अतिशयोक्ति अलंकार भी हो गया !
बीते लम्हों की फसल उगाने को तिल तिल जल के राख़ हुए अरमान उर्वरक बन बिखर गये दिल दरिया अश्रु बह निकले ......... शब्दों के इस सुंदर प्रयोग को पढ़ कर गुलज़ार याद आ गये. सुंदर रचना.
संगीत की झंकार लिए, शब्दों में भरा प्यार लिए भावपूर्ण अलंकार लिए लिख देते है जो कुछ भी वो एक सुन्दर कविता हो जाती है हर रोज़ उनकी कलम से एक प्रेम गीता हो जाती है फ़र्ज़ निभाने को आ जाते है मुझ जैसे अनेको पढने वाले जो आप लिख जाते हो एक गम सरगम पा जाता है
भावनाओं का उफान तो आपमें सदा ही उत्प्रेरक होता दिखायी देता है....और यहाँ उसका भी अतिरेक हो गया है....बेशक वो अच्छा ही बन पडा है.....हाँ मगर मेरे जैसा पाठक अब आपसे कुछ अलग ही उम्मीद कर रहा है.....जहाँ आपके मन के विम्ब किसी और जगत में भी खुलते हुए दिखायी दें........आशा है आपकी और से अब कोई अलग सी रचना भी रची जाने वाली है..........इसी इंतज़ार में ये अदना नेट पाठक........!!
फिर वही शाम वही तनहाई है
ReplyDeleteफिर तेरी याद चली आई है
यादों जितनी वफादार दुनिया में दूसरी और कोई भी चीज़ नही होती है
अरमान उर्वरक बन बिखर गये
ReplyDeleteदिल दरिया अश्रु बह निकले
बहुत गहनतम भाव. शुभकामनाएं.
रामराम.
Wah..wah
ReplyDeleteSEEMA ji vahi dilkash andaz.... hamesha ki tarah mugdh kar diya aapne....jai ho..
"मन के बंजर खलिहानों मे
ReplyDeleteघावों की पनीरी अंकुरित हुई "
कवयित्री ने रूपक और अतिशयोक्ति अलंकार का सुंदर प्रयोग किया है ! मन में खलिहान का भेद रहित आरोप है . किंतु बंजर भूमि में अंकुरण होता नहीं इसलिए वहाँ खलिहान नहीं हो सकता तो अतिशयोक्ति अलंकार भी हो गया !
बहुत उमन्दा रचना.. एक एक पंक्ति भावों से सरोबार..
ReplyDeleteबेहतरीन..
एक फिल्मी गीत याद आ गया तोड़ मरोड़ कर "गजब किया रे कर गया दिल पे जादू". बहुत सुंदर रचना. आभार.
ReplyDeleteमुझे तो विवेक जी की टिप्पणी में मजा आ गया, सीमा जी की कलम तो हमेशा की तरह उम्दा है.
ReplyDeleteबीते लम्हों की फसल उगाने को
ReplyDeleteतिल तिल जल के राख़ हुए
अरमान उर्वरक बन बिखर गये
दिल दरिया अश्रु बह निकले
बहुत खूब लिखा सीमा जी आपने
तन्हाइयों ने फ़िर
ReplyDeleteबीज तेरी यादो के रोपे
मन के बंजर खलिहानों मे
सच में ऐसा ही होता है...
मीत
हमेशा की तरह उम्दा ,गहन भाव.शुभकामनाएं,,,
ReplyDeleteआदरणीय सीमाजी, हर लिहाज़ से सार्थक कविता कही आज आपने, जो बहुत ही सुन्दर अलंकृत भाव लिए हुए है। बहुत ख़ूब।
ReplyDeleteबीते लम्हों की फसल उगाने को
ReplyDeleteतिल तिल जल के राख़ हुए
अरमान उर्वरक बन बिखर गये
दिल दरिया अश्रु बह निकले
.........
शब्दों के इस सुंदर प्रयोग को पढ़ कर गुलज़ार याद आ गये. सुंदर रचना.
Sister हमेशा की तरह उम्दा
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कुछ लाईनों में दिल से उठे भावों में दर्द ,प्रेम,और रोमांच की अभिव्यक्ति।शुभकामनाएं
ReplyDeleteखूबसूरत एहसासों में भीगे हुए , दिल को छू जाने वाले शब्दों को मोतियो की तरह एक सुंदर माला में सृजित किया है आपने ! सुंदर रचना.
ReplyDeleteआपकी जादूई लेखनी का चमत्कार बिखेरती एक और भावः पूर्ण रचना...लाजवाब...
ReplyDeleteनीरज
लाजवाब रचना है
ReplyDelete---
तख़लीक़-ए-नज़र
beautiful
ReplyDeleteदिल दरिया अश्रु बह निकले
सींच उन्हें अपना "फर्ज निभाने को "
सीमा जी आपकी कविताओं में इतना दर्द कहाँ से आता है ?
ReplyDeleteसंगीत की झंकार लिए,
ReplyDeleteशब्दों में भरा प्यार लिए
भावपूर्ण अलंकार लिए
लिख देते है जो कुछ भी वो
एक सुन्दर कविता हो जाती है
हर रोज़ उनकी कलम से
एक प्रेम गीता हो जाती है
फ़र्ज़ निभाने को आ जाते है
मुझ जैसे अनेको पढने वाले
जो आप लिख जाते हो
एक गम सरगम पा जाता है
सीमा जी
ReplyDeleteअभिवन्दन
अति सुंदर भाव हैं आपकी रचना में
वाह बहुत खूब परिकल्पना---
बीते लम्हों की फसल उगाने को
और
अरमान उर्वरक बन बिखर गये
बधाई
- विजय
दिल दरिया कित्ता तो जिम्मेदारी से काम करता है! है न!
ReplyDeleteएक नए रूप में दर्द और virah के भाव लिए कविता.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.
विवेक जी की टिप्पणी का समर्थन करती हूँ.
सीमाजी बहुत ही खुबसूरती से शब्दों को पिरोया हे आपने
ReplyDeleteबेहतरीन रचना है
आभार
बीते लम्हों की फसल उगाने को
ReplyDeleteतिल तिल जल के राख़ हुए
अरमान उर्वरक बन बिखर गये
दिल दरिया अश्रु बह निकले
Bahut Sundar aur man ko bhane wali kavita.
बहुत बढीया है
ReplyDelete"मन कि गहराई
किसी ने छू नही पाई"
रूपक और अलंकृत सुंदर भावपूर्ण कविता के लिए बधाई।
ReplyDeleteभावनाओं का उफान तो आपमें सदा ही उत्प्रेरक होता दिखायी देता है....और यहाँ उसका भी अतिरेक हो गया है....बेशक वो अच्छा ही बन पडा है.....हाँ मगर मेरे जैसा पाठक अब आपसे कुछ अलग ही उम्मीद कर रहा है.....जहाँ आपके मन के विम्ब किसी और जगत में भी खुलते हुए दिखायी दें........आशा है आपकी और से अब कोई अलग सी रचना भी रची जाने वाली है..........इसी इंतज़ार में ये अदना नेट पाठक........!!
ReplyDeletedear seema,
ReplyDeleteyaaden hoti hai aisi , jo man ko bhaavuk kar jaati hai .. aapne bahut sundar likha hai , shabd ji uthe hai ..
aapko badhai
vijay
seemaji dil ko chhoo liya
ReplyDeleteSeema ji
ReplyDeletebahut sundar bhav..abhivyakti.
shubhkamnayen.
HemantKumar
तिल तिल जल के राख़ हुए
ReplyDeleteअरमान उर्वरक बन बिखर गये
सुंदर प्रस्तुति.
great lines
ReplyDeleteआप के ब्लॉग को देख कर, पड़ कर, बस एक लफ्ज़ याद आता है, खुबसूरत
ReplyDeleteAapke ghare lafz bhaut prabhavit kar gaye
ReplyDeleteबीज तेरी यादो के रोपे
ReplyDeleteमन के बंजर खलिहानों मे
बहुत ही खुबसूरती से शब्दों को पिरोया हे .....!
तन्हाइयों ने फ़िर
ReplyDeleteबीज तेरी यादो के रोपे
मन के बंजर खलिहानों मे
घावो की पनीरी अंकुरित हुई
चाँद लम्हों में पूरे युग की कहानी कह दी है आपने..
अजीब सा नशा है आपके लिखने में
बहुत बढ़िया , बेहतरीन अभिव्यक्ति ! शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteBAHUT HI SUNDER BDHIYA
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