1/23/2009

"हाँ खैरात हूँ मै"

"हाँ खैरात हूँ मै"

रहमो करम खैरात हूँ मै
हाँ अपने दर से ठुकरा दो मुझे.
खरोंच के फैंक दो स्मृतियों को मेरी
हाँ जहन से अपने मिटा दो मुझे
मेरा अस्तित्व बोध भी सताये ना तुम्हे
हाँ बीती बात की तरह झुटला दो मुझे
मेरे साये से भी शिकवा तुमको
हाँ उड़ते धूल के गुबार में मिला दो मुझे
ख्वाबों मे भी आके सता जाऊँ न कभी
हाँ ऐसी कोई संगदिल सजा दो मुझे

नज़र फेर के लेके शिकन इक चेहरे पे
हाँ गुजरी एक रात सा दगा दो मुझे
हाँ खैरात हूँ मै .....ठुकरा दो मुझे


40 comments:

  1. अपनों द्वारा दिया गया दर्द वाकई बर्दाश्त नही होता है ।

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  2. Marvelous & Piercing....seema

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  3. वैसे खैरात को ठुकराना इतना आसान नही होता क्योंकि हम तो अब तक यही पढ़ते सुनते आये थे - "चल हट कहाँ से चला आया खैरात बँट रही है क्या",

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  4. ख्वाबों मे भी आके सता जाऊँ न कभी
    हाँ ऐसी कोई संगदिल सजा दो मुझे

    -काश!! ऐसी कोई संगदिल सजा बनी होती...


    बहुत उम्दा.

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  5. seema ji aapko bhulaane ki kisi me takat nahi kyoM itna khafaa haiM ---
    ai dil naa kar fariaad vafaa yoon hi nibhaaye jaa aayenge vo kabhi jaroor abhi sitaare gardish me hain jo rahmate najar huaa karte the

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  6. रहमो करम खैरात हुं मै
    हाँ अपने दर से ठुकरा दो मुझे.
    खरोंच के फैंक दो स्म्रतियों को मेरी
    हाँ जहन से अपने मिटा दो मुझे.

    सीमाजी
    आपकी इस रचना में दर्द का आभास होता है एसा लगता है की कोई दबा दर्द फ़िर से उखड आया है . ख़ूबसूरत भावाभिव्यक्ति . लिखती रहे और हम नियमित पढ़ते रहे की अभिलाषा के साथ.
    महेंद्र मिश्र
    जबलपुर.

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  7. चुनौती -जोरदार ....बक अप ....!

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  8. देव अनन्त कृपा स्वरुप मैंने तुमको पाया है
    कर चंदन स्वरुप धूर
    मस्तक तिलक लगाया है
    विधिनाथ दया मुझ पर,धर रूप तुम्हारा आया है
    कर्म कोई होकर फलित
    राग सुधा बरसाया है

    खैरात नही, आप वर्षों की तपस्या का वरदान हैं

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  9. ख्वाबों मे भी आके सता जाऊँ न कभी
    हाँ ऐसी कोई संगदिल सजा दो मुझे ! the heightlight of the poem!

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  10. खवाबों मे भी आके सता जाऊँ न कभी

    बस इसके आगे निरुत्तर हूं. लाजवाब रचना. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  11. खरोंच के फैंक दो स्म्रतियों को मेरी ,....

    AISI BAAT AAP HI KAH SAKTI HAI ,ITNI UMDA SOCH WAKAI BAHOT KHUB LIKHA HAI AAPNE DHERO BADHAI AAPKO...


    ARSH

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  12. बहुत खूबसूरत जज्ब्बत पिरोये हैं जाकर लिखे गए शेर बहुत खूबूरत हैं ...

    प्रदीप मनोरिया 09425132060
    http://manoria.blogspot.com
    http://kundkundkahan.blogspot.com

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  13. seema ji, it's amazing!

    ---आपका हार्दिक स्वागत है
    गुलाबी कोंपलें

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  14. मेरे साये से भी शिकवा तुमको
    हाँ उड़ते धूल के गुबार में मिला दो मुझे

    बहुत खुबसूरत बात लिखी है आपने

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  15. आज कुछ मूड बदला बदला सा है..शायद कोई पुरानी कविता है

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  16. नकारात्मक भाव की रचना आपके ब्लाग पर शायद पहली बार देख रहा हूं....
    छोड़िये...

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  17. मेरे साये से भी शिकवा तुमको
    हाँ उड़ते धूल के गुबार में मिला दो मुझे

    बहुत खूब बेहतरीन रचना बारम्‍बार बधाई स्‍वीकार करें

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  18. इसकी मुझे उम्मीद नहीं थी.

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  19. बहुत सुन्दर!
    पर अपने आप को अकिंचन समझने का काम सामान्यत: नारी ही क्यों करती है?
    या मेरी नारी साहित्य की समझ परिपक्व नहीं है।

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  20. " ओह मुझे लग रहा है आज की मेरी इस कविता ने आप सभी आदरणीय पाठको को बहुत नीराश किया है ....मै एक कहानी पढ़ रही थी जिसमे कहानी का नायक नायिका की भावनाओ को समझे बिना ये कहता है "खैरात और एहसान में मुझे कुछ भी नही चाहिए होता ...चाहे प्यार ही क्यूँ ना हो ..शायद जिन्दगी भी ना मंजूर करूँ...." और इसकी बात से नायिका क्षुब्द होकर चिल्लाती है "हाँ मै तो खैरात हूँ न तुम्हारे लिए .....छोड़ क्यूँ नही देते मुझे "
    बस उसी वक्त इस कविता ने मेरे मन में जन्म लिया था .....और मैंने यहाँ पोस्ट कर दिया...."

    Regards

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  21. हाँ ऐसी कोई संगदिल सजा दो मुझे

    नज़र फेर के लेके शिकन इक चेहरे पे

    हाँ गुजरी एक रात सा दगा दो मुझे

    हाँ खैरात हूँ मै .....ठुकरा दो मुझे

    confusing lines but tring to understand

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  22. अत्यधिक दर्दीली रचना किंतु साथ में कुछ हकीकत उजागर करती भी

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  23. ख्वाबों मे भी आके सता जाऊँ न कभी
    हाँ ऐसी कोई संगदिल सजा दो मुझे
    deep
    ---meet

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  24. आपकी ठुकरा देने अपील पर ब्लागर समुदाय द्वारा विचार किया गया और आपकी अपील को ठुकरा दिया गया।

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  25. आपके स्पष्टीकरण से मुझे बहुत खुशी हुई !

    अब से हम यही समझेंगे कि इस ब्लॉग पर सब दुख दर्द नायक नायिका के हैं . और खुशियाँ आपकी .

    हम तो आपको हा हा हा .... वाली सीमा जी के रूप में ही जानना चाहते हैं !

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  26. अरे आज तो गजब है आप की गजल... उदासी से भरी........
    धन्यवाद

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  27. seema gupta said...
    " ओह मुझे लग रहा है आज की मेरी इस कविता ने आप सभी आदरणीय पाठको को बहुत नीराश किया है ....मै एक कहानी पढ़ रही थी जिसमे कहानी का नायक नायिका की भावनाओ को समझे बिना ये कहता है "खैरात और एहसान में मुझे कुछ भी नही चाहिए होता ...चाहे प्यार ही क्यूँ ना हो ..शायद जिन्दगी भी ना मंजूर करूँ...." और इसकी बात से नायिका क्षुब्द होकर चिल्लाती है "हाँ मै तो खैरात हूँ न तुम्हारे लिए .....छोड़ क्यूँ नही देते मुझे "
    बस उसी वक्त इस कविता ने मेरे मन में जन्म लिया था .....और मैंने यहाँ पोस्ट कर दिया...."
    ...............agar yahi baat hai tab to koi baat nahin......magar agar koi aur baat hai......tab paathak kaise samjhe ki kyaa baat hai....kaun saa dard kavi kaa apnaa dard hota hai...aur kaun saa deakha hua bichaare paathak ko kya pata....vah to rachnaa ke sang ro leta hai...aur rachnaa ke sang hans letaa hai.......!!

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  28. नज़र फेर के लेके शिकन इक चेहरे पे

    हाँ गुजरी एक रात सा दगा दो मुझे
    एक ग़ज़ल का शेर याद आ गया मुझे---ख़ुद को बना के राख बनाया ,बिछा दिया--लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं!!!!!!
    दिल की गहराई से दर्द में बिलखती कविता..


    --bahut achchee lagi--

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  29. aap bakaii lajwab hain aur aapki kavita bhi, romance kaa labrez paimana hai..ek prayisee ki taDap ko khoob jiya hai aapne..kahiN-kahin uljhan hai..lekin phir bhi khoob hai.

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  30. बहुत दर्द भरी रचना है !!!!

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  31. कुछ भी कह पाने की हिम्मत नहीं सीमाजी,
    दर्दनाक ना लिखें। महज़ कविता भी है तो भी। मालिक भली करे।

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  32. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

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  33. तारीफ के लिए शब्द कहाँ से लाऊँ ... लाजवाब

    अनिल कान्त
    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  34. आपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाऐं

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  35. भारतीय गणतंत्र की हार्दिक शुभ कामनाएं

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  36. मै भी आई थी.......

    कहाँ तुम्हारे प्यार का खुला संसार

    कहाँ हमारी सिमटी सी विमंदित दुनिया

    शेष शुभ, इति... शुभदा

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  37. bahut hi dard bhari rachna likhi hai seema ji, lekin jo likha hai ek dam sach likha hai. hum jisse pyar karte hai wo jab humare sath ye karee to wqii main bahut dard hota hai.

    ek baar fir se dhero subhkamnye or apki ish rachna ko bhi hum or sab rachnaoo ki trha no. (1)par rakhna chahenge

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  38. bahut hi dard bhari or sunder rachna likhi hai, waqii me jab hum kisi se pyar karte hai or wo ish trha se humare pyar ka majak udata hai to dil yahi kehta hai.

    "han kehrat hu main"

    ek bar firse dhero subhkanye ke sath dhero badhiya....

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