
हर साँस मे जर्रा जर्रा
पलता है कुछ,
यूँ लगे साथ मेरे
चलता है कुछ.
सोच की गागर से
निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ


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आप हास्य लिखें तो मुझे आश्चर्य न होगा !
ReplyDeleteदर्द लिखतीं हैं तो होता है !
अजीब सामंजस्य बिठाया हुआ है आपने !
दिल को छू गई रचना !
जो मोम बनके मुझमे ,
ReplyDeleteबर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
अ हा ! क्या बात कही सीमा जी, बहुत बहुत बहुत लाजवाब। बहुत ही उम्दा पंक्तियाँ सचित्र। आलातरीन !
बहुत सुंदर! पढ़कर अपनी कुछ लाइनें याद आ गयीं.
ReplyDeleteसब कुछ तो खो गया है क्या पास रह गया है
तुम साथ हो ये झूठा अहसास रह गया है
हाथों से फिसले लम्हे फ़िर किसको मिल सके हैं
जाती हवा का झोंका चुपके से कह गया है
विवेक की बात में भी दम है, कविता में दर्द है इसलिये हा हा हा हा...
ReplyDeleteकहीं तो कुछ बदला है
ReplyDeleteकल जो स्याह दिख रहा था
आज उजला है
वेदना के वृक्ष के नीचे से
कोई दूसरा अंकुर निकला है
जो जमा था अन्दर बर्फ सा
आज कुछ तो पिघला है
मुझे आपकी ऐसी रचनाएं बेहद पसंद हैं .
बहोत ही खुबसूरत बहोत बढ़िया लिखा है सीमा जी बहोत दिनों के बाद आपको पढने को मिला सुबह सुबह मज़ा आगया ... ढेरो बधाई आपको
ReplyDeleteअर्श
वाह.... खूबसूरत अहसासों से भरपूर काव्याभिव्यक्ति...
ReplyDeleteये एहसास क्या ...
ReplyDeleteतुम्हारा है प्रिये ???
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
--बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ हैं..मोम का बर्फ की मानिंद पिघलना अद्भुत कल्पना है...सुंदर रचना!-
kisi ne kaha hai "mit jane do in hasrato ko,ye bhee to khun piti thi apna" bar bar har bar aapki rachna ko good,better,best kahana nahi bhata, iske bad kya shabd hai apne ko nahi aata. narayan narayan
ReplyDeleteये एहसास क्या ...
ReplyDeleteतुम्हारा है प्रिये ???
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
-जबरदस्त!! वाह!!
aaj dil garden garden ho gya.
ReplyDeletesach me bahut hi umda likhi hai,
kafi dino baad dil ke kareeb koi rachna padhne ko mili hai
हर बार की तरह दिल में बस जाने वाली कविता!
ReplyDeleteचाँद, बादल और शाम
आपकी कविता की दाद देने के लिये नये शब्द गढ़्ने पडे़गें.. आप हर बार कुछ नया ले कर आती है और हम है जो हर बार बस वाह वाह किये जा्तें है..
ReplyDeleteसोच की गागर से
ReplyDeleteनिकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
एक रूमानी और पुरअसर ख्याल। मुबारकबाद कुबूल फरमाएँ।
ये एहसास क्या ...
ReplyDeleteतुम्हारा है प्रिये ???
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
बहुत सुंदर शब्द प्रयोग किए हैं...
सुंदर...
मीत
पहली दो पंक्तिया ही कमाल करती है..
ReplyDeleteजो मोम बनके मुझमे ,
ReplyDeleteबर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
बहुत लाजवाब.
रामराम.
अब तारीफ़ के लिए और क्या बाकी रह गया।
ReplyDeleteएक बार फिर लाजवाब कर दिया.
ReplyDelete19 Comments
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Blogger विवेक सिंह said...
आप हास्य लिखें तो मुझे आश्चर्य न होगा !
दर्द लिखतीं हैं तो होता है !
अजीब सामंजस्य बिठाया हुआ है आपने !
दिल को छू गई रचना !
विवेक जी ने भी अच्छी टिप्पणी की है
आपकी कविता के बारे में क्या कहूं बेहतरीन लिखते ही हो हमें भी अपना शिष्य बना लो ना ताकि हम भी कोशिश कर सकें कुछ यूं लिखने की वाकई लाजवाब
sach aakhari anktiyon ne jaan bhar di kavita mein bahut sundar
ReplyDeleteजो मोम बनके मुझमे ,
ReplyDeleteबर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
shayad isi me arth nihit hai puri rachna ka.....vakai..
हर साँस मे जर्रा जर्रा
ReplyDeleteपलता है कुछ,
यूँ लगे साथ मेरे
चलता है कुछ.
kya khub likha aapne
क्या बात है,
ReplyDeleteजो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
सीमा जी जबाब नही आप की कविता का, बस हम तो यही कहे गे कि वाह वाह वाह
धन्यवाद
लाजवाब और बेमिसाल ।
ReplyDeleteवाह ! सुंदर भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteWonderful !
ReplyDeleteमोम और बर्फ! अपोजिट्स का द्वन्द्व!
ReplyDeleteजो मोम बनके मुझमे ,
ReplyDeleteबर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
गुस्ताखी माफ़ -
अगर कुछ यूँ लिखा जाय तो _
जो अंतराग्नि बन मुझमें
मोम के मानिंद पिघलाता है
बर्फ सा कुछ !
ehsaas....
ReplyDeletemene to ehsaas hi nahi balki haqikat me paya ek behtreen rachna ko..
khoob likhti he aap...
ham jese padne valo ke liye sone pe suhaaga he,
dhnyavad
सुन्दर!! ई त सवाल है जी! इसका जबाब कब तलक आयेगा? पढ़वाइयेगा!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteantarduand ki sunder abhivyakti
ReplyDeleteये एहसास क्या ...
ReplyDeleteतुम्हारा है प्रिये ???
जो अंतराग्नि बन मुझमें
मोम के मानिंद पिघलाता है
बर्फ सा कुछ !
bahut sundar shabd rachnaa gahre bhav
"@ आदरणीय अरविन्द जी मार्गदर्शन के लिए आभार ...ये पंक्तियाँ सच मे खुबसुरत है...."
ReplyDeleteRegards
अब क्या करें...हम तो प्रशंशा कर कर थक गए हैं...आप जब भी लिखती हैं गज़ब लिखती हैं...
ReplyDeleteनीरज
लाजवाब। कहते हैं कविताएं दिल का आवाज होती हैं, दर्द और जज्बात से भरी हुई। भाव और विचार से सराबोर। बेहतरीन काव्य है।
ReplyDeleteseema ji
ReplyDeletewonderful expression of emotions ..
you have this art in you..
bahut badhai ..
meri aaj ki rachan padhiyenga , ek sacchi ghatna par hai ..
regards
kya baat hai
ReplyDeleteये एहसास
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
(+) (+)
ReplyDelete===
===
बढीया कविता।
उप्पर मैने ड्राईंग कीया है।
'ये एहसास क्या ...
ReplyDeleteतुम्हारा है प्रिये ???
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ'
- लाजवाब परिभाषा.
प्रशंसनीय...
ReplyDeleteआपकी कविता की उष्मा से मन में यादों के पिघलने का अंदेशा हो रहा है.
खूबसूरत अहसासों से भरपूर ....
ReplyDeleteपिघलता है कुछ तो...पिघलने दो.....महकता है मन जो....महकने दो....दरकता है कुछ भीतर धीरे-धीरे....बनता है कुछ मन में हौले-हौले....दर्द को भीतर से बाहर जो निकाला है....दरीचे से इक शोर निकला है....शोर में भी इक चुप्पी है....जरा सा तो रुक जाओ....इस चुप्पी के अर्थों को हमें भी समझने दो.....!!
ReplyDeleteइतनी गहराई से, इतनी सोज़ से, इतने ख़ुशी और गम के मिश्रित एहसास से लिखी हुयी है यह रचना,
ReplyDeleteखोया हुवा बहुत कुछ पा लिया है मैंने..........
bahut hi sunder dil ko chuu lene wali rachna hai.
ReplyDeletedhero badhiya
its just superb
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