

सन्नाटा श्रृंगार कर रहा,
पल-पल दिन और रैन का
सरिता भी निस्पंद हुई अब,
चिन्ह ना कोई बैन का
सन्नाटा श्रृंगार......
संध्या की हर साँस है घायल,
गुमसुम तारों की है झिलमिल,
कोपभवन जा छिपी चांदनी,
आँगन सूना नैन का
सन्नाटा श्रृंगार......
खुशियों का बाजार लुटा,
निष्प्राण हुआ मन का मुख्यालय,
रीती भावों की गागरिया................
'परिचय' क्या सुख-चैन का ?
सन्नाटा श्रृंगार कर रहा,
पल-पल दिन और रैन का
(बैन = वार्ता, बातचीत
रीती = खाली)
आपकी कविता की बात तो रोज करते है...
ReplyDeleteवैसे आप चित्र भी बहुत अनुठे लगाती है.. बहुत खुबसुरत!!
खुशियों का बाजार लुट गया
ReplyDeleteनिष्प्राण हुआ मन का मुख्यालय
सुंदर शब्दावली अद्भुत भाव
हमें बड़ी ईर्षा होती है. अब सन्नाटे को शृंगार युक्त देख पाना हमारे बस की बात नहीं. सुंदर. आभार.,
ReplyDeleteआपकी कविता की बात तो रोज होती है...
ReplyDeleteआप चित्र भी बहुत खुबसुरत लगाती हैं
"निष्प्राण हुआ मन का मुख्यालय"
ReplyDeleteक्या बात है ! वाह !
namaskaar seema ji.
ReplyDeletekavitayen aapki bahut padhi hai maine. do din pehle navbharat akhbaar me bhi apki ek kriti chapi thi.
kafi umda likhti hai. lekin main aapki soch ki thah nahi pa paya.
aap jo bhi kuch likhi hai bilkul hakar sab se hat kar. yahan aapne snaate ka hi shrngaar kar diya.or vo bhi inti khubi se.
aap sach me bahut hi pratibhashali or badi kaviyatri hai.
mahan to main apko keh nahi sakta. kyonki uske liye aapko shayad bahut lamba rasta tay karna padega.
is rachna ke liye aapko bahut bahut bdhi ho
congratulation!.
Rakesh Kaushik
सचमुच शानदार कविता!
ReplyDeleteकोपभवन में छुपी चांदनी
ReplyDeleteअंगना सुना चंचल नैन का
बिल्कुल सही ! कभी कभी चांदनी भी कोपभवन मे जा बैठती है और कभी खिडकी दरवाजे बंद करने के बावजूद जबरन घुस आती है !
बहुत लाजवाब !
बहुत सुंदर
ReplyDeleteकविताओं के साथ चित्र भी इतने खूबसूरत.....पढकर और देखकर बहुत अच्छा लगा ।
ReplyDeleteबहुत बढिया रचना है। चित्र भी बहुत सुन्दर हैं।
ReplyDeleteनिष्प्राण हुआ मन का मुख्यालय
रीता है भावों का बर्तन
परिचय मिले न सुख चैन का
सन्नाटे ने श्रृंगार किया है....
निष्प्राण हुआ मन का मुख्यालय
ReplyDeleteरीता है भावों का बर्तन
परिचय मिले न सुख चैन का
सन्नाटे ने श्रृंगार किया है....
sunder...
---meet
bahut sundar rachna . man ko chooti hui ..
ReplyDeletesannate ka itna shandaar jikr kiya hai ki bus poochiye mat ..
badhai..
pls visit my blog for some new poems.
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
कोपभवन में छुपी चांदनी
ReplyDeleteअद्भुत शब्द प्रयोग....वाह...क्या लिखती हैं आप...
नीरज
खुशियों का बाजार लुट गया
ReplyDeleteनिष्प्राण हुआ मन का मुख्यालय
रीता है भावों का बर्तन
परिचय मिले न सुख चैन का
सन्नाटे ने श्रृंगार किया है....
bahut khoob seema ji, bahut hi shaandaar, antim pankti ne to hairaan kar diya.
कोपभवन में छुपी चांदनी
ReplyDeleteअंगना सुना चंचल नैन का
काफी सुन्दर धन्यवाद ..
nit naye shabd kahan se laayen, isliye sirf wah se kaam chalayen.
ReplyDeleteयह कविता भी श्रृंगार के वियोग पक्ष की गहन अनुभूति से अनुप्राणित है !
ReplyDeleteसशक्त अभिव्यक्ति !धन्यवाद
ReplyDeleteअहो सीमाजी,
ReplyDeleteये तो पूर्ण गेयता में लिखी गई अतिसुन्दर रचना है जी आपकी. चित्रों के क्रंदित मौन को कितनी सहज शब्दाभिव्यक्ति प्रदान कर दी आपने.
सन्नाटे का श्रृंगार, सरिता की निस्पंदता, मूक संध्या,चांदनी का कोपभवन, सूना नयनांगन, मन का निष्प्राण मुख्यालय और रीती गागर. शायद सुख-चैन का इससे अधिक व्यथित "परिचय" हो ही नहीं सकता. इस गूढ़ और उत्तम रचना के लिए मेरा सादर नमन निवेदन स्वीकार करें और साथ ही बहुत बहुत बधाई भी.
bahut hi sunder rachna likhi hai..
ReplyDeletebahiya
पढ़ लिया-गा लिया. मजा आया.
ReplyDeleteवाह! आपके शब्द अनमोल हैं जो भावों को घुट्टी सा पिला देते हैं। हमारे पास इनकी प्रशंसा के शब्द ही नहीं हैं। बधाई...।
ReplyDeleteपरिचय मिले न सुख चैन का
ReplyDelete............
एकाकीपन ओर सन्नाटे का इतना खूबसूरत चित्रण करने के बाद क्या सुख चैन के परिचय की आवश्यकता रह जाती है ..सिर्फ साहित्य ..ओर उसमे भी काव्य ओर वो भी सीमा जी का रचा हुआ ही इतना शसक्त हो सकता है जो दुखों ओर आंसुओं को भी इतनी जीवटता ओर संजीदगी से पेश किया जाता है की सुखो के परिचय की कोई महता रह ही नहीं जाती
आँगन सूना नैन का
ReplyDeleteसन्नाटा श्रृंगार......
Excellent expression!
वाह वाह वाह वाह..............
ReplyDeletekamaal ki rachna seema g...
ReplyDeletebadhai.. badhai..
सीमा जी,
ReplyDeleteअद्भुत, सुंदर रचना प्रस्तुति पर मेरा आपको सदर नमन.
निम्न पंक्ति दिल के बहुत करीब लगी...........
'परिचय' क्या सुख-चैन का ?
चन्द्र मोहन गुप्त
urdu pe aapki pakad dekh li thi...ab jaandaar hindi se bhi saamna ho gaya
ReplyDeleteकोपभवन जा छिपी चांदनी,
ReplyDeleteआँगन सूना नैन का
अद्भुत, सुंदर रचना !