12/15/2008

"दृष्टि "

"दृष्टि"

अनंतकाल से ये दृष्टि
प्रतीक्षा पग पर अडिग ,
पलकों के आंचल से
सर को ढांक ,
आतुरता की सीमा लाँघ
अविरल अश्रुधारा मे
डूबती , तरती , उभरती ,
व्याकुलता की ऊँचाइयों को छु
प्रतीक्षाक्षण से तकरार करती
तुम्हारी इक आभा को प्यासी
अनंतकाल से ये दृष्टि
प्रतीक्षा पग पर अडिग




38 comments:

  1. बहोत खूब लिखा है आपने सीमा जी बहोत ही उम्दा ढेरो बधाई आपको


    अर्श

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  2. बेहतरीन ! ..द्रष्टि को दृष्टि करें !

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  3. अनंतकाल से ये द्रष्टि
    प्रतीक्षा पग पर अडिग

    बहुत सुन्दर लिखा ! शायद दृष्टि की यही नियति है !

    राम राम !

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  4. अनंतकाल से ये द्रष्टि
    प्रतीक्षा पग पर अडिग

    अतिसुन्दर अभिव्यक्तियां, निरन्तरता को तत्पर हैं ये उक्तियां ! आश्चर्यचकित कर देने वालीं प्रस्तुतियां हैं आपकी सीमाजी. शुभकामनाओं सहित.

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  5. पलकों के आंचल से
    सर को ढांक ,
    आतुरता की सीमा लाँघ
    अविरल अश्रुधारा मे
    डूबती , तरती , उभरती ,
    मोतियों से जड़े इन शब्दों को सलाम...वाह...
    नीरज

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  6. @ अरविन्द जी मार्गदर्शन का बहुत शुक्रिया , मैंने ठीक कर दिया है"

    regards

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  7. पलकों के आंचल से
    सर को ढांक ,
    आतुरता की सीमा लाँघ
    अविरल अश्रुधारा मे
    डूबती , तरती , उभरती ,

    बहुत सुंदर रचना, बधाई!
    दुःख के सागर में डूबा
    मैं ज्यों ही ऊपर उतराता
    कोई आता
    मेरा जीवन रक्षक बन जाता
    कोई आता।

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  8. kitni sacchi baat kahi aapne ,

    in fact hamari nazare hi hamare jeevan ka adhaar hai

    bahut badhai ,

    vijay
    http://poemsofvijay.blogspot.com/

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  9. द्रष्टि = दृष्टि
    पलकों के आंचल से
    सर को ढांक ,
    आतुरता की सीमा लाँघ
    अविरल अश्रुधारा मे
    डूबती , तरती , उभरती ,

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  10. हम भी अडिग है,आपकी तारीफ़ करते रहेंगे।

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  11. बहुत सुंदर रचना है।

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  12. Seema,
    कैसे अब यह प्यास बुझेगी
    चक्छु साक्ष जितना पीलो
    हाँ यादों के कोप भवन में
    कुछ बीते लम्हे जी लो

    प्रेम प्रतीक्षा प्रति छण है
    किसे ढूंढता विचलित व्याकुल मन है
    मत फैलाओ समक्ष किसी के
    विरह विलीन दामन सी लो

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  13. बहुत खुब..हमेशा की ही तरह बेहतरीन रचना..

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  14. डूबती , तरती , उभरती ,
    व्याकुलता की ऊँचाइयों को छु
    प्रतीक्षाक्षण से तकरार करती
    तुम्हारी इक आभा को प्यासी
    अनंतकाल से ये दृष्टि...
    बहुत सुंदर...
    ---मीत

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  15. virah ko paribhashhit karta kaavy!

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  16. उर्दू से इतर हिन्दी भाषा पर आपकी पकड़ कमाल है .

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  17. कविता के साथ आपके द्वारा लगाये हुये चित्र भी बहुत आकर्षक हैं.

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  18. अनंतकाल से ये दृष्टि
    प्रतीक्षा पग पर अडिग


    और गजल मिल गई। अच्छा है। सुन्दर।

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  19. व्याकुलता की ऊँचाइयों को छु
    प्रतीक्षाक्षण से तकरार करती...
    kya baat hai seema ji! bahut khuuub!
    sundar kavita!

    [aur aap ke picture selection ki to main fan hun hi!:)
    keep posting beautiful pics]

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  20. दृष्टि और प्रतीक्षा में जबरदस्त बॉण्डिंग है!

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  21. गजल के साथ या कहे ग़ज़ल के बाद कविता शुद्ध हिन्दी का अधिकतम प्रयोग . हर्ष है हर्ष है

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  22. बहुत सुंदर कविता लिखी आप ने .
    धन्यवाद

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  23. अनंतकाल से ये द्रष्टि
    प्रतीक्षा पग पर अडिग

    बेहतरीन रचना के लिए ढेरो बधाईयां सीमा जी

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  24. कुवांरी थी मेरी चाह
    ढूँढती अपने प्रियतम को
    सजती थी,संवरती थी रोज रोज
    गले में मोतियों के माल पहनती थी
    कानो में स्वर्ण कुंडल धारण करती थी
    हाथों में कंगन सजाती
    पैरों में पायल खनकाती थी
    सोलह सृंगार करती थी
    मन के बगीचे में फिरती थी
    रोज प्रतीक्षा करती थी अपने प्रियतम का
    कभी हंसती कभी खिलखिलाती
    कभी इठलाती
    और कभी मायूस हो जाती थी
    पर वह नही आता था.
    एक दिन
    एक परी ने झांक कर देखा
    उसकी मासूम आंखों में
    उसकी तरलता, उसकी गर्माहट , उसकी प्यास
    परी ने अपनी जादू की छड़ी घुमाई
    अचानक ही एक अनजान सी चमक उठी
    और भर गयी पूरे बगीचे में
    रंग बिरंगे फूल खिल उठे
    ठंडी हवाएं चलने लगीं
    पेडों पे कोयलें गाने लगीं
    उसने देखा
    दूसरे कोने पर खड़ा है
    उसके सपनो का राजकुमार
    उसका तन-मन दोनों पुलकित हो उठा
    उसने कदम उठाये जाने को प्रियतम के पास
    मन में आनंद और उत्साह लिए
    जन्मो की प्यास लिए
    राजकुमार भी बढ़ा उसकी ओर
    बाहें फैलाये
    दोनों ही आतुर थे मिलन को
    बिल्कुल बेखबर
    समय के बिषधर से
    जो कुंडली मारे बैठा था वहीं
    उन दोनों के बीच
    दोनों पास पहुँचने ही वाले थे कि
    बिषधर ने धंसा दी अपने बिषैले दांत
    राजकुमार के पैरों में
    एक आर्तनाद
    एक तड़प
    और वो गिर पड़ा वहीँ धरती पर
    उससे थोडी दूर
    उसके प्रियतम के साथ ही
    मर गया सब कुछ
    उसके अन्दर और बाहर
    उसकी प्यास
    उसकी प्रतीक्षा
    उसका सृंगार
    अब वह कुंवारी नही है.

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  25. अनंतकाल से ये दृष्टि
    प्रतीक्षा पग पर अडिग.
    बहुत सुंदर कविता.ढेरो बधाईयां.

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  26. वाह वाह बेहतरीन भावाभिव्यक्ति बधाई आपको

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  27. हम्म............जितना लम्बा इंतज़ार.......उतनी गहरी कविता.........ताज्जुब है कि ये लेखिका इसी भाव को लेकर कविता रचती चली आ रही हैं....मगर रचनाओं में ये दुहराव बहुत ज्यादा दृष्टिगोचर नहीं होता.......लेकिन हमें ऐसा लगता है कि इन्हें तनिक इस एकरसता से बाहर भी आन चाहिए....क्यूँ कि जो दर्द को झेल गया...वो खुशी को भी अपने शब्दों में कई रंग दे देगा....सीमा जी....सच....मैं झूठ नहीं बोलता....सच...!!

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  28. दुखांत यह नही होता कि
    तुम्हारे पास तुम्हारे प्रिय का नाम पता नही है
    और तुम्हारे जीवन कि चिट्ठी तुम्हे सदा रुलाती रहे
    दुखांत यह होता है कि
    तुम अपने जीवन भर की चिट्ठी
    अपने प्रिय के नाम लिख लो
    और तुमसे उसका नाम पता गुम जाए
    दुखांत यह नही होता कि
    अपने इश्क के ठिठुरते जिस्म के लिए
    तुम जीवन भर गीतों के पैरहन सीते रहो
    दुखांत यह होता है कि
    तुम्हारे विचारों का स्याही -धागा चुक जाए
    और तुम्हारे कलम कि सुई -नोक टूट जाए .

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  29. oh oh
    nice impact
    but it should have to be added some more words between

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  30. ओ बसंती हवाओं !
    अब मत ढूंढो मेरे ह्रदय को -
    सुबह की पहली किरण की चमक में
    पेडों की लहराती शाखों के कम्पन में
    बहती नदी की कलकल में
    उत्श्रिन्खल झरनों के गुनगुन में
    नही पा सकोगे अब उसे तुम
    सितारों की टिमटिमाहट में
    ओस की बूदों की शीतलता में
    पक्षियों के मधुर गान में
    चाँदनी की श्वेत छाँव में
    नही पा सकोगे उसे अब
    पहले सा
    क्योंकि टूट कर बिखर चुका है
    वह कई टुकडों में
    अब देख पाओगे उसे तुम
    टूटते तारों के साथ गिरते हुए
    बारिश की बूदों के साथ मिट्टी में मिलते हुए
    रेगिस्तान में रेत के कणों के साथ तपते हुए
    आग की लपटों के साथ जलते हुए.

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  31. Drishti...Sheershak se bahoot achchhee panktiyan likhi hain Seema ji...apne. Badhai.
    Poonam

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  32. great lines well composed
    regards

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  33. बहुत सुंदर भावः और उतना ही सुंदर शब्द प्रवाह वाह वाह बधाई

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  34. bahut sunder bhaw ,bahut hi acchi or behtrin rachna ...

    ek bar firse dhero badhiya

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"Each words of yours are preceious and valuable assets for me"