9/08/2008

कैसे भूल जाए


"कैसे भूल जाए"

जिन्दगी की ढलती शाम के ,
किसी चोराहे पर,
तुमसे मुलाकात हो भी जाए...
"वो दर्द-ऐ-गम",
तेरे लिए जो सहे मैंने,
उनको दिल कैसे भूल जाए...

15 comments:

  1. Nostalgic obsession !All good wishes to author to come out of the dilemma asap !

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  2. shayad aapki in lino ne hume bhi aapke beete hue kal me jhakne ka mauka de diya.

    it's really a fine experience.


    Rakesh Kaushik

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  3. बहुत खूब ...पंक्तियाँ लगी

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  4. सीमा जी
    बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति!!!
    बधाई

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  5. तुमसे मुलाकात हो भी जाए...
    "वो दर्द-ऐ-गम",
    तेरे लिए जो सहे मैंने,
    उनको दिल कैसे भूल जाए...

    वाह सीमा जी बहुत ही अच्‍छा

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  6. जिन्दगी की ढलती शाम के ,
    किसी चोराहे पर,
    तुमसे मुलाकात हो भी जाए...
    "वो दर्द-ऐ-गम",
    तेरे लिए जो सहे मैंने,
    उनको दिल कैसे भूल जाए...


    बहुत सही कहा आपने ! इस मकाम
    पर आकर भूल जाना ? बहुत मुश्किल
    होगा ! शायद माफी भी ....?
    शायद पोइट्री हमें भी समझ आने
    लग गई है ! अनेको धन्यवाद और
    शुभकामनाएं !

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  7. aapka ye andaaj jyada achha hai mohtarma......

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  8. काव्य लेखन में आपने एक ऐसा मुकाम हासिल कर लिया है जहाँ पर पहुँच कर आप में भावों को शब्दों का जामा पहना कर दुनिया को असमंजस में डालने की सक्षमता आ गई है और पढने वाले क्या कल्पना है क्या सत्यता है में कोई अंतर न कर सकें. कईयों को लगता है की आपकी कविता का केंद्र बिंदु आपकी अपनी जिंदगी होगी ....पर मुझे तो ऐसा ही लगता है की आप ने जो कहा है वह मेरी भी कहानी है .. आप की भी हों सकती है ..और हर पाठक की कहानी है ......कविता में व्यक्तिक व्यवहार दिखना उसकी कलात्मकता हों सकती है पर सार्वभौमिकता होना उसका सच्चा गुण होता है .....एक और अच्छी रचना पढ़वाने के लिए धन्यवाद

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  9. जिन्दगी की ढलती शाम के ,
    किसी चोराहे पर,......
    क्या बात हे आप की कविता ने हमारे दिल की बात कह दी.
    धन्यवाद

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  10. kiya kuhb likha hai



    जिन्दगी की ढलती शाम के ,
    किसी चोराहे पर,
    तुमसे मुलाकात हो भी जाए...
    "वो दर्द-ऐ-गम",
    तेरे लिए जो सहे मैंने,
    उनको दिल कैसे भूल जाए...

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