
आज ख़ुद को एक बेरहम सजा दी मैंने ,
एक तस्वीर थी तेरी वो जला दी मैंने
तेरे वो खत जो मुझे रुला जाते थे
भीगा के आंसुओं से उनमे भी,
एक तस्वीर थी तेरी वो जला दी मैंने
तेरे वो खत जो मुझे रुला जाते थे
भीगा के आंसुओं से उनमे भी,
" आग लगा दी मैंने ..."


http://vangmaypatrika.blogspot.com/2008/09/blog-post_06.html
jawab nahi
ReplyDeleteawesome yaar.....bahut hi badhiya ...... after alimit of love and sacrifice...this is the thought and feel......
ReplyDeleteतेरे वो खत जो मुझे रुला जाते थे
ReplyDeleteभीगा के आंसुओं से उनमे भी,
" आग लगा दी मैंने ..."
बाप रे ! इतना गुस्सा ? पहले बार देखा ! और
वो भी सिर्फ़ छोटी सी ५ लाइनों में ! काबिले
तारीफ़ रचना ! बहुत बधाई और शुभकामनाएं !
aap itni gehrai se sochti hai ke hume majboor hona padta hai comment dene ke liye
ReplyDeletebahut hi achcha likha hai aapne.
आग लगा दी मैंने ..."
ReplyDeleteभाव व्यक्त करने में आपका जवाब नही !
बहुत बधाई ! सुंदर रचना !
भीगा के आंसुओं से उनमे भी,
ReplyDelete" आग लगा दी मैंने ..."
सच में आप ने ब्लॉग मैं आग लगा दी
सुंदर
aaj kai dinon bad aa paya.
ReplyDeleteaur aate hi aapki ye rachana padh kar man me utal-puthal mach gayi.
jawab nahin aapka.
shukriya.
वो मेरे ख़त थे तेरे पास तो हम रहते थे
ReplyDeleteवरना क्या और था ख़ुद को जो जिला दी मैंने
तूने तस्वीर जलाई के जला डाला मुझे
फिर भी हर ज़ुल्म पे तेरे है दुआ दी मैने
बहुत ही सुन्दर कविता, सही किया यह कम्बख्त यादे किसी हाल मे जीने नही देती...
ReplyDeleteधन्यवाद
nice
ReplyDeleteभीगा के आंसुओं से उनमे भी,
ReplyDelete" आग लगा दी मैंने ..."
बहुत खूब.......
hamesha ki tarah wah tajmahal
ReplyDeleteThanks everybody for ur presence shown n droping ur valueable thoughts. Regards
ReplyDeletebeautiful words!
ReplyDeleteबहुत सही!!!
ReplyDeleteआपका मंच बिना पूछे सार्वजनिक निवेदन के लिए इस्तेमाल कर रहा हूँ:
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निवेदन
आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.
ऐसा ही सब चाहते हैं.
कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.
हिन्दी चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.
-समीर लाल
-उड़न तश्तरी
भई वाह... क्या आग लगाई है सीमा जी..
ReplyDeleteआपका शब्द-चित्रण लाजवाब है..
बधाई....
three words for this
ReplyDeleteW O W
अच्छी पोस्ट.......
ReplyDeleteस्वप्नभंग या मोहभंग ?
ReplyDeleteआज ख़ुद को एक बेरहम सजा दी मैंने ,
ReplyDeleteएक तस्वीर थी तेरी वो जला दी मैंने
तेरे वो खत जो मुझे रुला जाते थे
भीगा के आंसुओं से उनमे भी,
" आग लगा दी मैंने ..."
बेहतरीन
आज ख़ुद को एक बेरहम सजा दी मैंने ,
ReplyDeleteएक तस्वीर थी तेरी वो जला दी मैंने
तेरे वो खत जो मुझे रुला जाते थे
भीगा के आंसुओं से उनमे भी,
" आग लगा दी मैंने ...
in lino main pyar bhi hai gusha bhi