10/19/2011

दुनिया वालों से डर न जाए कहीं


दुनिया वालों से डर न जाए कहीं
इश्क तेरा बिखर न जाए कहीं

डूबता जा रहा है जिसमें तू
वो नदी भी उतर न जाए कहीं

जिस तरफ से पलट के आई मैं
खौफ है तू उधर न जाए कहीं

राह तकती रहूंगी मैं लेकिन
फ़िक्र है तू मुकर न जाए कहीं

दर्द ही दर्द का मुहाफ़िज़ है
दर्द हद से गुज़र न जाए कहीं

सर झुका तो दिया है क़दमों में
बंदगी बे-असर न जाए कहीं

इश्क की बारगाह में "सीमा"
हुस्न खुद ही संवर न जाए कहीं

9 comments:

  1. pahlee baar aap ke blog se parichay huaa,achhaa lagaa
    सर झुका तो दिया है क़दमों में
    बंदगी बे-असर न जाए कहीं
    sundar likhaa hai

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  2. दुनिया वालों से डर न जाए कहीं
    इश्क तेरा बिखर न जाए कहीं

    डूबता जा रहा है जिसमें तू
    वो नदी भी उतर न जाए कहीं

    बहुत खूब!

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  3. दर्द ही दर्द का मुहाफ़िज़ है
    दर्द हद से गुज़र न जाए कहीं
    बहुत खुबसूरत शेर दाद को मुहताज नहीं फिर भी दिल से निकला वाह वाह ..

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  4. सर झुका तो दिया है क़दमों में
    बंदगी बे-असर न जाए कहीं

    अब जब ये सर झुका ही दिया तो बंदगी हो न हो ये तो उसको ही देखना है ...
    बहुत ही दिलकश, गहरे एहसास हैं सभी शेरों में .. लाजवाब ...

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  5. aaj jo post kiya hai usme tippani ka option nahi mil rahaa

    urdu to muze aati nahi par photo dekha

    khushi hui ki sarhaden paar bharteey hui bhaavnaae

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  6. दर्द ही दर्द का मुहाफ़िज़ है
    दर्द हद से गुज़र न जाए कहीं
    बहुत खूबसूरत लबो लहजा ......बाकमाल शायरी.... वाह

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