"मौन का उपवास" किसी भी बुद्ध की अन्तिम परिणिती है ! जीवन मे इससे बडी बात कुछ भी हो नही सकती ! इसी स्थिति के लिये तो योगी पुरुष अपने जन्मो को खपा देते हैं !
बहुत ऊंची बात कही गई आज तो ! इसिलिये कहते हैं कि कवि/शायर के मुंह से परमात्मा ही बोलता है !
स्वर कंठ में लुप्त हुए, क्या "मौन" का उपवास है?? कंठ भी...और शब्दों का लुप्त हो जाना भी....??ये कब होता है....जब.....दिल कुछ कहना नहीं चाहता....चुप्पा हो जाता है....दिल जब चुप्पा हो जाता है.....तो जुबां का उपवास....जबान का छुपा होना ही तो मौन होना है...अब ये मौन का भी उपवास....ये क्या बला है भई....जानना चाहता हूँ कि मौन भी उपवासा हो जाता है...तब कैसा दीखता होगा...वैसे इस पंक्ति ने भाव को गहरा भी कर दिया...और "एब्स्ट्रेक्ट" भी.....अच्छी लग गई फिर इक बार आपकी कविता....सच....!!
आदरणीय सीमाजी, आज बस आपने ग़ज़ब कर दिया है. "मौन का उपवास" ! न न आज से आपके लिये मन में आदर और और बढ़ गया. मेरा सादर प्रणाम स्वीकार करें, इस मौन के उपवास पर. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति और बहुत ही पैना विश्वास.
िजंदगी की सच्चाई को आपने बडे मामिॆक तरीके से शब्दबद्ध किया है । अच्छा िलखा है आपने । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और प्रितिक्रया भी दें-
bahut hi sundar abhivyakti ha.... khamoshi ko bahut hi sarthak shabd mile hain ye khamoshi aapki shukrgujaar hai samajh to sakte ho is khamoshi ko aap.............
today i hav no word to express how is ur lines. these r unspeechable.
ReplyDeleteu tell me only one thing. how u can think so deeply. out of my thought.
if u hav answer thn plz tell me?
i also try to think like tht.
Rakesh Kaushik
स्वर कंठ में लुप्त हुए,
ReplyDeleteक्या "मौन" का उपवास है..
बेहतरीन!!
"मौन का उपवास" किसी भी बुद्ध की अन्तिम परिणिती है ! जीवन मे इससे बडी बात कुछ भी हो नही सकती ! इसी स्थिति के लिये तो योगी पुरुष अपने जन्मो को खपा देते हैं !
ReplyDeleteबहुत ऊंची बात कही गई आज तो ! इसिलिये कहते हैं कि कवि/शायर के मुंह से परमात्मा ही बोलता है !
राम राम !
स्वर कंठ में लुप्त हुए,
ReplyDeleteक्या "मौन" का उपवास है??
कंठ भी...और शब्दों का लुप्त हो जाना भी....??ये कब होता है....जब.....दिल कुछ कहना नहीं चाहता....चुप्पा हो जाता है....दिल जब चुप्पा हो जाता है.....तो जुबां का उपवास....जबान का छुपा होना ही तो मौन होना है...अब ये मौन का भी उपवास....ये क्या बला है भई....जानना चाहता हूँ कि मौन भी उपवासा हो जाता है...तब कैसा दीखता होगा...वैसे इस पंक्ति ने भाव को गहरा भी कर दिया...और "एब्स्ट्रेक्ट" भी.....अच्छी लग गई फिर इक बार आपकी कविता....सच....!!
amazing!
ReplyDeleteमाफ़ी चाहूँगा, काफी समय से कुछ न तो लिख सका न ही ब्लॉग पर आ ही सका.
ReplyDeleteआज कुछ कलम घसीटी है.
आपको पढ़ना तो हमेशा ही एक नए अध्याय से जुड़ना लगता है. आपकी लेखनी की तहे दिल से प्रणाम.
बहुत, बहुत, बहुत, बहुत, बहुत, बहुत, बहुत, बहुत, बहुत, बहुत, बहुत, बहुत, बहुत, बहुत, बहुत, बहुत, बहुत सुंदर...
ReplyDeleteदिल को छू गया एक-एक शब्द...
---मीत
क्या "मौन" का उपवास है
ReplyDeleteमौन का उपवास .बहुत ही बढ़िया बात लिखी है आपने इस में
मौन का उपवास?! हमारा मौन तो कुपोषित है। :(
ReplyDeleteक्या "मौन" का उपवास है
ReplyDeleteअद्भुत शब्द...वाह...
नीरज
पीडा के अंकुर को पल्लवित होने दो,
ReplyDeleteमौन को मुखरित होने दो.
ए कमाल तो आप ही कर सकती हो. मौन का भी उपवास, यह हमारी कल्पना के भी बाहर है. आभार.
ReplyDeleteमौन का उपवास........क्या बात है मोहतरमा !
ReplyDeleteअद्भुत ,अकल्पनीय !
ReplyDeleteशब्दों का बढ़ता कारवां,
ReplyDeleteस्वर कंठ में लुप्त हुए,
क्या "मौन" का उपवास है
अति सुंदर बेहतरीन रचना
क्या "मौन" का उपवास है
ReplyDeleteबहुत सुंदर!
sochataa hun fariyaal kar le maujhe upvaas karte nahi aayegaa to.........
ReplyDeleteउम्दा लेखन बहोत ही बढ़िया भाव भरा हुआ है ...ढेरो बधाई आपको...
ReplyDeleteअर्श
शब्दों का बढ़ता कारवां,
ReplyDeleteस्वर कंठ में लुप्त हुए,
क्या "मौन" का उपवास है .
सुंदर बेहतरीन रचना.
आदरणीय सीमाजी,
ReplyDeleteआज बस आपने ग़ज़ब कर दिया है. "मौन का उपवास" ! न न आज से आपके लिये मन में आदर और और बढ़ गया. मेरा सादर प्रणाम स्वीकार करें, इस मौन के उपवास पर. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति और बहुत ही पैना विश्वास.
मौन का उपवास अब तोड दें . थोडा फलाहार करने दें उसे :)
ReplyDeleteिजंदगी की सच्चाई को आपने बडे मामिॆक तरीके से शब्दबद्ध किया है । अच्छा िलखा है आपने । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और प्रितिक्रया भी दें-
ReplyDeletehttp://www.ashokvichar.blogspot.com
स्वर कंठ में लुप्त हुए,
ReplyDeleteक्या "मौन" का उपवास है..
ओर यह मॊन का उपवास बहुत कुछ कह रहा है, बहुत खुब.
धन्यवाद
ही..ही... बहुत बढीया
ReplyDeleteस्वर कंठ में लुप्त हुए,
क्या " मौन " का उपवास है
सोच के बताउंगा।
सुंदर काव्य-कौशल, अनुपम शब्द-योजना, अद्भुत रचना-चातुर्य और अनूठी भावाभिव्यंजकता से भरी हुई एक उत्कृष्ट रचना है। बधाई।
ReplyDeleteमहावीर शर्मा
सीमा,
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति है, बहुत सुंदर शब्दों का और भावों का गूँथना। पहली छ: पंक्तियों की तो तुलना ही नहीं।
मगर मौन का उपवास - ये ठीक से समझ नहीं आया।
अधरों पे आके थम गया
ReplyDeleteकब आगे बढ़ेगा?
अच्छा है।
" यहाँ उपस्थित अभी आदरणीयजनों के प्रोत्साहन और आशीर्वाद के लिए दिल से आभारी हूँ"
ReplyDeleteregards
शब्दों का बढ़ता कारवां,
ReplyDeleteस्वर कंठ में लुप्त हुए,
क्या "मौन" का उपवास है
hameshaa की तरह की तरह गहरे विचार सुंदर शब्द संयोजन
शब्दों का बढ़ता कारवां,
ReplyDeleteस्वर कंठ में लुप्त हुए,
क्या "मौन" का उपवास है
hameshaa की तरह की तरह गहरे विचार सुंदर शब्द संयोजन
bahut hi sundar abhivyakti ha....
ReplyDeletekhamoshi ko bahut hi sarthak shabd mile hain ye khamoshi aapki shukrgujaar hai samajh to sakte ho is khamoshi ko aap.............
"moun ka upwas"
ReplyDeleteatti suder rachna
bahut achha laga padh kar,,
ek bar firse dhero badhiya savikar kare
good composition
ReplyDeleteशब्दों का बढ़ता कारवां,
ReplyDeleteस्वर कंठ में लुप्त हुए,
बस "मौन" का ही वास है