12/08/2008

"ख्वाबों के आँगन "



"ख्वाबों के आँगन "

ख्वाबों के आँगन ने अपना
कुछ ऐसे फ़िर विस्तार किया,
वर्तमान ने हकीक़त ,
का दामन ठुकराया ,
अस्तित्व ने अपने,
सामर्थ्य से मुख फैरा,
शीशमहल का निर्माण किया...
विवशता का परित्याग कर ,
दर्पण मचला जिज्ञासा का,
भ्रम की आगोश मे,
मनमोहक श्रिंगार किया ...
बहते दरिया की भूमि पर ,
इक नीवं बना अरमानो की,
हर तर्ष्णा को पा लेने का,
निरर्थक एक प्रयास किया ...
ख्वाबों के आँगन ने अपना

कुछ ऐसे फ़िर विस्तार किया.........



http://vangmaypatrika.blogspot.com/2008/12/blog-post_8134.html

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3846072.cms#write

26 comments:

  1. हर तर्ष्णा को पा लेने का,

    निरर्थक एक प्रयास किया ...

    bahut hi achcha likha hai. wonderful.




    Rakesh Kaushik

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  2. वर्तमान ने हकीक़त ,
    का दामन ठुकराया ,
    अस्तित्व ने अपने,
    सामर्थ्य से मुख फैरा,

    बहुत बढिया ! शायद ख्वाब ऐसे ही होते हैं !

    रामराम !

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  3. bahut sundar bhav

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  4. बहते दरिया की भूमि पर ,
    इक नीवं बना अरमानो की,
    हर तर्ष्णा को पा लेने का,
    निरर्थक एक प्रयास किया ...
    ख्वाबों के आँगन ने अपना
    कुछ ऐसे फ़िर विस्तार किया.........
    its a truth....
    very nice
    ---meet

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  5. Do din se apnee kitabon mein almaariyon mein laga hua hoon . meri pyaari kitaabein deemak ne barbaad kar deen, kisi tarah jo bach gyee hain unhein mehfooz karne mein laga hua hoon . dosteel kke almaariyan banwaayee hain taaki unhein bachaa sakoon, aisa agta hai waqt kum aur kaam zyaada ho rahaa hai..............phir blog dekha..........mooyoosi se bhara pachtawa aur khud se shikaayat karti huyee ek kavita.........abhee meri ek puraani diary bhi mil gayee .......uski ek ghazal haazir--khidmat hai......
    hum milay aur juda ho gay
    hum thay kya aur kya ho gaye

    ashk dil ka lahoo ban gaye
    ghumzadah kee dua ho gaye

    ek manzil kaheen kho gayee
    raastay sub fana hogaye

    hum raqeebon ki lekar panaah
    baywajah daastaan ho gaye

    ab sakhee iltijaa unse kya
    wo to hum se khafaa ho gaye

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  6. ख्वाबों के विस्तार की तो पूछें ही मत। आभासी विश्व कहीं बड़ा और सशक्त है इस ठोस पर निरर्थक विश्व से।
    या कम से कम ऐसा लगता है।

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  7. इक नीवं बना अरमानो की,
    हर तर्ष्णा को पा लेने का,
    निरर्थक एक प्रयास किया ...
    ख्वाबों के आँगन ने अपना
    कुछ ऐसे फ़िर विस्तार किया........

    बहुत सुंदर लिखा है आपने

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  8. बहुत ही सुंदर लिखा है आपने सीमा जी इसके लिए बारम्‍बार बधाई

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  9. बहुत सुंदर लिखा है आपने-----

    ख्वाबों के आँगन ने अपना
    कुछ ऐसे फ़िर विस्तार किया,
    वर्तमान ने हकीक़त ,
    का दामन ठुकराया ,

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  10. ख्वाबों के आँगन ने अपना

    कुछ ऐसे फ़िर विस्तार किया.........


    --बिल्कुल सही..बहुत उम्दा रचना है..बधाई हो!!

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  11. ख्वाबों के आँगन ने अपना

    कुछ ऐसे फ़िर विस्तार किया,

    वर्तमान ने हकीक़त ,

    का दामन ठुकराया ,

    अस्तित्व ने अपने,

    सामर्थ्य से मुख फैरा,

    शीशमहल का निर्माण किया...

    विवशता का परित्याग कर ,
    o my god......

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  12. बेहतरीन प्रस्तुति ! बधाई स्वीकारें .

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  13. वर्तमान ने हकीक़त ,
    का दामन ठुकराया ,
    अस्तित्व ने अपने,
    सामर्थ्य से मुख फैरा,

    sach kaha aapne ......

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  14. बहते दरिया की भूमि पर ,
    इक नीवं बना अरमानो की,

    बहोत खूब लिखा है आपने बहोत ही उम्दा रचना ढेरो बधाई स्वीकार करें.......

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  15. दर्पण मचला जिज्ञासा का,
    भ्रम की आगोश मे,
    मनमोहक श्रिंगार किया ...
    बहते दरिया की भूमि पर ,

    ये कवि और शायर ऐसे ही होते हैं क्या? :)
    एक बार फिर मन झूम उठा।

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  16. वर्तमान ने हकीक़त ,
    का दामन ठुकराया ,
    अस्तित्व ने अपने,
    सामर्थ्य से मुख फैरा,
    अति खुबसुरत, अति सुंदर.
    धन्यवाद

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  17. लाजवाब सीमा जी...आप की हर रचना विलक्षण है...
    नीरज

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  18. ख्वाबों के आँगन ने अपना
    कुछ ऐसे फ़िर विस्तार किया,
    वर्तमान ने हकीक़त ,
    का दामन ठुकराया ,
    अस्तित्व ने अपने,
    सामर्थ्य से मुख फैरा,
    शीशमहल का निर्माण किया...
    विवशता का परित्याग कर ,
    दर्पण मचला जिज्ञासा का,
    भ्रम की आगोश मे,
    मनमोहक श्रिंगार किया ...
    बहते दरिया की भूमि पर ,
    इक नीवं बना अरमानो की,
    हर तर्ष्णा को पा लेने का,
    निरर्थक एक प्रयास किया ...
    ख्वाबों के आँगन ने अपना
    कुछ ऐसे फ़िर विस्तार किया.........

    पूरी की पूरी अति सार्थक्ता की अद्भुत अभिव्यक्ति है सीमाजी आपकी. इतने प्यारे और सुन्दर विचार आपके ही ज़ेहन में विस्तार पाते हैं जी. बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये.

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  19. बहते दरिया की भूमि पर ,

    इक नीवं बना अरमानो की,

    हर तर्ष्णा को पा लेने का,

    निरर्थक एक प्रयास किया ...
    ख्वाबों के आँगन ने अपना

    कुछ ऐसे फ़िर विस्तार किया.........

    maine kyaa kahanaa hai...sab to aapne hi kah diyaa....dard se bhi sabdon kaa shringaar hotaa hai...yah aapki rachnaaon se hi jana hai....ab to lagtaa hai ki dard se rachnaaon kaa shringaar hota hai.....!!

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  20. ख्वाबों के आँगन ने अपना
    कुछ ऐसे फ़िर विस्तार किया...

    बहुत सुंदर!
    सीमा में सिमटा मैं अब तक
    था कितना संकीर्ण हुआ
    सत्य अनावृत देखा मैंने
    जब असीम ने मुझे छुआ!

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  21. बहुत सुन्दर उद्गार, सशक्त अभिव्यक्ति. अप्रतिम, पिछ्ली रचना भी बहुत अच्छी है.

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  22. एक अनुठी रचना,बहुत सुन्दर !

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  23. bahut hi accha likha hi seema ji






    dhero badhiya

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  24. Hey, this is great
    I loved this one when you sent it to me earlier..

    Sach me, bahut khushi hui tumhari poetry Navbharat me dekhker..
    Keep it UP , You're the BEST

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  25. pehli pankti se ant tak shashakt bhaav...

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"Each words of yours are preceious and valuable assets for me"