12/06/2008

"तुम बिन "


"तुम बिन " हर गीत अधुरा तुम बिन मेरा,
साजों मे भी अब तार नही..
बिखरी हुई रचनाएँ हैं सारी,
शब्दों मे भी वो सार नही...
जज्बातों का उल्लेख करूं क्या ,
भावों मे मिलता करार नही...
तुम अनजानी अभिलाषा मेरी,
क्यूँ सुनते मेरी पुकार नही ...
हर राह पे जैसे पदचाप तुम्हारी ,
रोकूँ कैसे अधिकार नही ...
तर्ष्णा प्यासी एक नज़र को तेरी,
मिलने के मगर आसार नही.....


27 comments:

  1. क्या बात है! बहुत बढ़िया!!

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  2. it's re nice
    bahut hi badhiya likha hai aapne

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  3. हर गीत अधुरा तुम बिन मेरा,
    साजों मे भी अब तार नही..
    बिखरी हुई रचनाएँ हैं सारी,
    शब्दों मे भी वो सार नही...


    आपकी हर पोएट्री स्क्रीन पर पढने के बावजूद भी कानो में मधुर घंटियों के मानिंद खनकती है ! वाकई लाजवाब है ! बहुत शुभकामनाएं !

    रामराम !

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  4. टूटे हैं तार सब सितारों के
    गीत बनता नहीं न राग मिले

    दिल तो सूना है फ़िर भी जिंदा हैं
    ज़िंदगी का कोई सुराग मिले!

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  5. good composition,
    regards

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  6. हर राह पे जैसे पदचाप तुम्हारी ,
    रोकूँ कैसे अधिकार नही ...
    तर्ष्णा प्यासी एक नज़र को तेरी,
    मिलने के मगर आसार नही.....

    i have no word for these lines...
    --meet

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  7. हर गीत अधुरा तुम बिन मेरा,
    साजों मे भी अब तार नही..
    बिखरी हुई रचनाएँ हैं सारी,
    शब्दों मे भी वो सार नही...

    बहुत खूब लिखती हैं आप

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  8. behad khubsurat

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  9. Kya kahun aapki harek post,harek rachna behad khoobsoorat hai....
    Dil se nikalti hai dil ko chooti hai....

    Badhai....

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  10. लाजवाब है...शुभकामनाएं/

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  11. मैं क्या करुँ ? इन बुतों को कैसे ?
    अनीसो-दर्द-आशना बना दूँ !
    क्या अपने खू़ने-जिगर से इनके,
    दिलों पे नक्शे-वफ़ा बना दूँ ?

    बेहद भावपूर्ण और दर्द भरी रचना लिखी है आपने सीमाजी. दिल भर आया पढ़कर.

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  12. हर गीत अधुरा तुम बिन मेरा,
    साजों मे भी अब तार नही..
    बिखरी हुई रचनाएँ हैं सारी,
    शब्दों मे भी वो सार नही...

    बहुत सुंदर!!!!

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  13. बिखरी हुई रचनाएँ हैं सारी,
    शब्दों मे भी वो सार नही...

    ----
    अजी नहीं जी! ये तो ख्याल हैं जो लहरों के मानिन्द उफनते उतरते हैं। सार क्यों नहीं है?

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  14. हर गीत अधुरा तुम बिन मेरा,
    साजों मे भी अब तार नही..
    बिखरी हुई रचनाएँ हैं सारी,
    शब्दों मे भी वो सार नही...
    सीमा जी बहुत ही सुंदर लगी आप की यह कविता, अजी हर कविता सुंदर लगी.
    धन्यवाद

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  15. हर गीत अधुरा तुम बिन मेरा---भावुक रचना |

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  16. बहोत खूब लिखा है आपने ढेरो बधाई आपको.

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  17. बहुत ही सुंदर...........

    very emotional...

    isase jiyaadaa kyaa kahun main....??

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  18. कथ्य और िशल्प दोनों दृिष्ट से बेहतर है ।
    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  19. what an expression.........
    nishabd hun
    but reframing

    हर गीत अधुरा तुम बिन मेरा,
    साजों मे भी अब तार नही..

    बिखरी हुई रचनाएँ हैं सारी,
    शब्दों मे भी वो सार नही...

    जज्बातों का उल्लेख करूं क्या ,
    भावों मे मिलता करार नही...

    हर राह पे जैसे पदचाप तुम्हारी ,
    रोकूँ कैसे अधिकार नही ...

    तुम अनजानी अभिलाषा मेरी,
    क्यूँ सुनते मेरी पुकार नही ...

    तर्ष्णा प्यासी एक नज़र को तेरी,
    मिलने के मगर आसार नही.....

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  20. yun hee kuchh tlashate beechh rashte men mil gayee aapkee--tum bin aur shabdon kee vadiyon men vicharta man mil gaye. achha laga. bahoot sundar.

    khaalee panne

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  21. aapki nazm ki kya baat hai , aap ki har nazm mein kuch naya sa hota hai .. sochne ke liye bahut bada canvas chahiye ..



    badhai

    vijay
    http://poemsofvijay.blogspot.com/

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  22. तर्ष्णा प्यासी एक नज़र को तेरी,
    मिलने के मगर आसार नही.....


    har lines bahut acchi hai but ye line kuch jada acchi lagi, jo apni hi kahni batati hui partit huii..



    subhkamnee savikar karee

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