दमे-बाज़ पसीं तक मुकरर्र अपना साथ कर दूं ये दिल मेरे नाम करदो मै जान तेरे नाम कर दूं (दमे-बाज़ पसीं =आखिरी सांस ) अनायास ही निकल आया ये शेर ....शायद यही कहना चाहिए अगर कोई दिल जैसी चीज का विक्रय पत्र बनवाने की बात करे बहुत खूब
सीमा जी कई दिनों बाद लौट कर अपने कुछ चुनिन्दा बुकमार्क ब्लागों की सैर कर रहा हूँ -बस इन दोनों पंक्तियों में ही बहुत गहरी बात है -बेकरारी ,कशिश ,थोड़ी शरारत और चिर समर्पण की आतुरता भी !
सेल डीड आफ हार्ट बहुत अच्छा /सही भी है बयनामा लिखने के पूर्व कोंट्राक्ट की शर्तें तय हो जाना भी लाजिमी है उसका रफ ड्राफ्ट भी जरूरी है /साथ देना और दिल की विक्री कर देना क्या अलग अलग बातें नही हो जायेगी /साथ देना, रहन रखना ,रहन-बिल-कब्ज़, से प्रथक बात है /एक बार विक्रयपत्र संपादित हो जाने पर क्रेता का विक्रेता की संपत्ति पर पूर्ण अधिकार हो जाता है एक ओर तो दिल के साथ देने का कोंट्राक्ट हो रहा है दूसरी और दिल की विक्री भी हो रही है /फिर से सेलडीड रजिस्टर कहाँ होगा /अब विक्रयपत्र संपादित करना ही है तो सबसे पहले साफ़ दिल [कोरे कागज़] का स्टांप पेपर लीजिये -फ़िर उसपर शीरीं जुबान के [टंकमुद्रण], प्रेम स्नेह वफादारी की मुद्रा [रबर स्टाम्प ] अंकित कराइए ,अटूट विस्वास तथा आपस में थोडा अंधविश्वास की गवाही करवाइए ,एक दूसरे की आलोचना न करने का हलफ लिखिए .परमपिता रजिस्ट्रार के कार्यालय में विक्रयपत्र संपादित कराइए दिल विक्रय का नहीं बल्कि आपस में दिल बदलने की बात हो तो ठीक =इसमे किसी वकील या दस्तावेज़ लेखक की जरूरत नहीं पड़ेगी
आपकी शर्त- इस दिल का दोगे साथ,कहाँ तक,ये तय करो। फिर इसके बाद दर्ज, दिले-नामा-ए-बय करो॥ मेरी पूर्ति- दिल में ही डूब जाएंगे,मुसल्लम मिल जाएंगे। अब दर्ज़ दिल पे नाम ये, होकर अभय करो॥
अहा ! क्या ख़ूब कहा सीमाजी, बहुत बेहतरीन और इतनी बड़ी कहानी, महज़ दो मिसरों की ज़ुबानी. ये शेर ग़ज़ल का मतला हुआ और पहली तीन तस्वीरें मसला हुए और आख़िरी तस्वीर मक्ता हुई. हो गयी एक शेर की की ग़ज़ल. है ना. और "दिले-नामा-ए-बय" का भावार्थ समझ लेना हर एक के बस की बात नहीं. और इन तस्वीरों से तो आपने शेर पर जवाहिरात ही जड़ दिए मोहतरमा. मेरी नज़र में क्या, उस्तादों की नज़र में भी मुक़द्दर आज़्माई की इतने दिलकश अंदाज़ से की गयी आपकी ये पेशकश बदीउज़्ज़्माँ मानी जाएगी.
इस दिल का दोगे साथ, कहाँ तक, ये तय करो ! फिर इसके बाद दर्ज, दिले-नामा-ए-बय करो ! ...........अरे इस तरह तो हमने सोचा भी ना था.... कि तुम अपने दिल को सेल पर लगा दोगे... अगर जो लगा भी दिया तो ऐसा लाजवाब खरीदार कहाँ होगा.... साथ तो अब भला कहाँ तक कोई देता है.... जो तुम्हारे साथ चलेगा....वो तुम्हारा हमनवां होगा.... जो मिल गया...तुझे किसी का साथ....ख़ुद तेरी आंखों से बयां होगा....... हम देते रहे "गाफिल" तमाम उम्र उसका साथ.... क्या पता था,उसका दिल सीने में नहीं....पहलू में पिन्हा होगा....!!
कायल हुए, घायल हुए और कहें इस तीर के बारे!
ReplyDelete(नोट: बारे: बारे में)
इस दिल का दोगे साथ, कहाँ तक, ये तय करो !
ReplyDeleteफिर इसके बाद दर्ज, दिले-नामा-ए-बय करो !
काबिलेतारीफ अच्छी नजम है दो ही लाईनों में सबकुछ बयां कर दिया
क्या बात है , लेकिन जब दिल ही दगा दे जाये तो??
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर शेर.
धन्यवाद
इस दिल का दोगे साथ, कहाँ तक, ये तय करो !
ReplyDeleteफिर इसके बाद दर्ज, दिले-नामा-ए-बय करो !!
वाह क्या लाजवाब नज्म है ! फ़िर से आपको नमन ! बहुत बहुत शुभकामनाएं !
कमाल की रचना है !
माईक्रो ब्लागींग :)
ReplyDeleteबहुत खूब ! धन्यवाद !
ReplyDeletewaah sundar
ReplyDeleteदिल का बयनामा शर्त सहित वाह
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeleteनया और अच्छा शब्द पता चला। दिल का विक्रय पत्र - शब्द थॉट्स से लोडेड।
ReplyDeleteबहोत खूब सीमा जी ,क्या उम्दा लिखा है ,बस दो लाइन और कत्ल .. बहोत खूब हमेशा की तरह.. बहोत बहोत बधाई आपको ...
ReplyDeleteदमे-बाज़ पसीं तक मुकरर्र अपना साथ कर दूं
ReplyDeleteये दिल मेरे नाम करदो मै जान तेरे नाम कर दूं
(दमे-बाज़ पसीं =आखिरी सांस )
अनायास ही निकल आया ये शेर ....शायद यही कहना चाहिए अगर कोई दिल जैसी चीज का विक्रय पत्र बनवाने की बात करे
बहुत खूब
इस दिल का दोगे साथ, कहाँ तक, ये तय करो !
ReplyDeleteफिर इसके बाद दर्ज, दिले-नामा-ए-बय करो !!
kam shabdo me umda khoobasoorat Najm. anand aa gaya . thanks .
लाजवाब नज्म...
ReplyDeletekhobsuruat
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteबाजारीकरण से बचना असंभव है :)
ReplyDeleteऔर दिल के बारे में क्या कहूँ- ये चल संपत्ति है या अचल, पता नहीं।
सीमा जी कई दिनों बाद लौट कर अपने कुछ चुनिन्दा बुकमार्क ब्लागों की सैर कर रहा हूँ -बस इन दोनों पंक्तियों में ही बहुत गहरी बात है -बेकरारी ,कशिश ,थोड़ी शरारत और चिर समर्पण की आतुरता भी !
ReplyDeleteदिले-नामा-ए-बय तो हो ही गया दर्ज,
ReplyDeleteफ़िर साथ दिल दे या ना दे खुदगर्ज़ .
सेल डीड आफ हार्ट बहुत अच्छा /सही भी है बयनामा लिखने के पूर्व कोंट्राक्ट की शर्तें तय हो जाना भी लाजिमी है उसका रफ ड्राफ्ट भी जरूरी है /साथ देना और दिल की विक्री कर देना क्या अलग अलग बातें नही हो जायेगी /साथ देना, रहन रखना ,रहन-बिल-कब्ज़, से प्रथक बात है /एक बार विक्रयपत्र संपादित हो जाने पर क्रेता का विक्रेता की संपत्ति पर पूर्ण अधिकार हो जाता है एक ओर तो दिल के साथ देने का कोंट्राक्ट हो रहा है दूसरी और दिल की विक्री भी हो रही है /फिर से सेलडीड रजिस्टर कहाँ होगा /अब विक्रयपत्र संपादित करना ही है तो सबसे पहले साफ़ दिल [कोरे कागज़] का स्टांप पेपर लीजिये -फ़िर उसपर शीरीं जुबान के [टंकमुद्रण], प्रेम स्नेह वफादारी की मुद्रा [रबर स्टाम्प ] अंकित कराइए ,अटूट विस्वास तथा आपस में थोडा अंधविश्वास की गवाही करवाइए ,एक दूसरे की आलोचना न करने का हलफ लिखिए .परमपिता रजिस्ट्रार के कार्यालय में विक्रयपत्र संपादित कराइए दिल विक्रय का नहीं बल्कि आपस में दिल बदलने की बात हो तो ठीक =इसमे किसी वकील या दस्तावेज़ लेखक की जरूरत नहीं पड़ेगी
ReplyDeleteBahut badiya.
ReplyDeleteआपकी शर्त-
ReplyDeleteइस दिल का दोगे साथ,कहाँ तक,ये तय करो।
फिर इसके बाद दर्ज, दिले-नामा-ए-बय करो॥
मेरी पूर्ति-
दिल में ही डूब जाएंगे,मुसल्लम मिल जाएंगे।
अब दर्ज़ दिल पे नाम ये, होकर अभय करो॥
SEEMA JEE ,
ReplyDeleteAAPKE IS SHER MEIN
KHOOBSOORAT ZAZBA HAI.
TASEER HO TO AESEE HO
MUBAARAK.
hum to saath denge is dil ka janm janmo tak, par tum kahan tak rahoge saath ye khud tay karo
ReplyDeleteRakesh Kaushik
अहा ! क्या ख़ूब कहा सीमाजी, बहुत बेहतरीन और इतनी बड़ी कहानी, महज़ दो मिसरों की ज़ुबानी. ये शेर ग़ज़ल का मतला हुआ और पहली तीन तस्वीरें मसला हुए और आख़िरी तस्वीर मक्ता हुई. हो गयी एक शेर की की ग़ज़ल. है ना.
ReplyDeleteऔर "दिले-नामा-ए-बय" का भावार्थ समझ लेना हर एक के बस की बात नहीं. और इन तस्वीरों से तो आपने शेर पर जवाहिरात ही जड़ दिए मोहतरमा. मेरी नज़र में क्या, उस्तादों की नज़र में भी मुक़द्दर आज़्माई की इतने दिलकश अंदाज़ से की गयी आपकी ये पेशकश बदीउज़्ज़्माँ मानी जाएगी.
इस दिल का दोगे साथ, कहाँ तक, ये तय करो !
ReplyDeleteफिर इसके बाद दर्ज, दिले-नामा-ए-बय करो !
...........अरे इस तरह तो हमने सोचा भी ना था....
कि तुम अपने दिल को सेल पर लगा दोगे...
अगर जो लगा भी दिया तो ऐसा लाजवाब खरीदार कहाँ होगा....
साथ तो अब भला कहाँ तक कोई देता है....
जो तुम्हारे साथ चलेगा....वो तुम्हारा हमनवां होगा....
जो मिल गया...तुझे किसी का साथ....ख़ुद तेरी आंखों से बयां होगा.......
हम देते रहे "गाफिल" तमाम उम्र उसका साथ....
क्या पता था,उसका दिल सीने में नहीं....पहलू में पिन्हा होगा....!!
bahut hi sunder rachna likhi hai
ReplyDeletesabd hi nhi reh gaye ab to mere pass kiya kahu fir bhi .........
ek barr firse badhiyan