11/10/2008

"खामोश सी रात"





"खामोश सी रात"

सांवली कुछ खामोश सी रात,
सन्नाटे की चादर मे लिपटी,
उनींदी आँखों मे कुछ साये लिए,
ये कैसी शिरकत किए चली जाती है....
बिखरे पलों की सरगोशियाँ ,
तनहाई मे एक शोर की तरह,
करवट करवट दर्द दिए चली जाती है....
कुछ अधूरे लफ्जों की किरचें,
सूखे अधरों पे मचल कर,
लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है...
सांवली कुछ खामोश सी रात अक्सर...


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http://rachanakar.blogspot.com/2008/11/blog-post_25.html

33 comments:

  1. लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है...
    सांवली कुछ खामोश सी रात .बहुत तल्ख़ बयान है .अच्छा है .

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  2. lahu ko bhi sard kiye jyati hai,waah bahut sundar

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  3. कुछ अधूरे लफ्जों की किरचें,
    सूखे अधरों पे मचल कर,
    लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है..

    kya baat hai Seema ji--bahut hi achcha likha hai --tasveer bol uthi ho jaisey...

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  4. kafi gehri imaginations hai. kafi behtar bani hai. i hope u really caught ur line al along.

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  5. एक-एक पंक्‍ति‍यॉं शानदार।

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  6. As always , marvelous.....

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  7. करवट करवट दर्द दिए चली जाती है...
    गहरी किंतु शालीन अभिव्यक्ति ! शुभकामनाएं !

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  8. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...शुभकामनाएं...

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  9. Seema,
    tanha simti udaas si raat
    kitni dard bhari har baat
    zakhmon se koi choor ho jaise
    ghum ke dariya bahe hon saath
    kankar patthar kaante ghum ke
    zakhm-e-dil par naye aaghaat
    shaayed tum ko kuch bahlaa de
    pyaar ki cchoti see saoghaat
    tum ko padh kar dukh jhela hai
    qubool karo mere jazbaat

    Thanks

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  10. सूखे अधरों पे मचल कर,
    लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है...
    सांवली कुछ खामोश सी रात अक्सर...

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  11. अच्छा लगा पढ़ कर...

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  12. अब इस आह के लिये वाह ही लिख सकता हू.

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  13. लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है...
    सांवली कुछ खामोश सी रात अक्सर...

    u got terrific sense to commnad the words which flows like river from the mountain
    regards

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  14. बहुत बढीया कविता।

    आपकी हर कविता बढीया होती है।

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  15. सुंदर अति सुंदर रचना !

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  16. बिखरे पलों की सरगोशियाँ ,
    तनहाई मे एक शोर की तरह,
    करवट करवट दर्द दिए चली जाती है....


    -क्या बात है, सुन्दर!

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  17. "सूखे अधरों पे मचल कर,
    लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है."
    एकदम जीवन से हो उठे आपके भावः इन दो पंक्तियों में..
    अच्छी रचना

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  18. सीमा जी आप की रचनाशक्ति बहुत अद्भुत है. बीच में चित्रों का संगम उसमें चार चाँद लगा देता है .

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  19. सांवली कुछ खामोश सी रात,
    सन्नाटे की चादर मे लिपटी,
    उनींदी आँखों मे कुछ साये लिए,
    ये कैसी शिरकत किए चली जाती है....
    बहोत ही मासूमियत भरी रचना,साथ में मेहसुसियत भी लिए है..
    आपको ढेरो बधाई सीमा जी .

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  20. वाह!
    सूखे अधरों पे मचल कर,
    लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है...
    सांवली कुछ खामोश सी रात अक्सर...
    बड़ी सशक्त रचना है।

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  21. शानदार....बधाई सीमा जी .

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  22. और भी तनहा कर जाती है तनहा-तनहा बहती रात ....
    चुपके-चुपके पैर दबाकर जाती है ये आती रात......
    अक्सर आकर खा जाती है ख्वाबों को भी काली रात
    गम रोये तो आँचल देकर मुझे सुलाती प्यारी रात....
    प्यारा सपना आते ही दूर चली जाती सारी रात....
    आँखों को मूँद लेता हूँ आखों में भर जाती रात....
    शाम गए जब घर लौटूं तो जख्मों को सहलाती रात....
    मुझसे तो अक्सर ही प्यारी बातें करती रात....
    कुछ मुझसे सुनती है, कुछ अपनी भी सुनाती रात.....

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  23. "खामोश सी रात"

    सांवली कुछ खामोश सी रात,
    सन्नाटे की चादर मे लिपटी,
    उनींदी आँखों मे कुछ साये लिए,
    ये कैसी शिरकत किए चली जाती है....
    बिखरे पलों की सरगोशियाँ ,
    तनहाई मे एक शोर की तरह,
    करवट करवट दर्द दिए चली जाती है....
    कुछ अधूरे लफ्जों की किरचें,
    सूखे अधरों पे मचल कर,
    लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है...
    सांवली कुछ खामोश सी रात अक्सर
    किस कदर तन्हाई में
    लफ्जों का इंतज़ार करते हुए
    तुमको क्यूँ बेदर्द किए चली जाती है ....
    खामोश सी रात अक्सर

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  24. Saanvlee see kuchh khaamosh see raat. Kitni behtareen peshkash hai aapkee aadarNeey Seemaajee. Kya kahna ! Aha !

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  25. घणी चोखी शे आप की कविता,
    बहुत ही ्सुंदर कविता धन्यवाद

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  26. बहुत प्रखर अिभव्यिक्त । जीवन की िस्थितयों का यथाथॆ शब्दांकन । अच्छा िलखा है आपने ।

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  27. " aap sbhee kaa bhut bhut shukriya"

    Regards

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  28. बहुत बढ़िया लिख रही हैं आज कल शब्द संयोजन बहुत सटीक रहा है, तारीफ़ के लिए 'वाह' शब्द भी छोटा रहेगा इस बार!

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  29. nice one mam, very good work
    regards

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  30. कुछ अधूरे लफ्जों की किरचें,
    सूखे अधरों पे मचल कर,
    लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है...
    सांवली कुछ खामोश सी रात अक्सर...


    कुछ भी नहीं कह सकता सीमा जी,
    बस यूँ ही लिखती रहिये....

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  31. कुछ अधूरे लफ्जों की किरचें,
    सूखे अधरों पे मचल कर,
    लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है...
    सांवली कुछ खामोश सी रात अक्सर...

    very nice seema ji keep it up

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  32. कुछ अधूरे लफ्जों की किरचें,
    सूखे अधरों पे मचल कर,
    लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है.


    दिल से लिखा और दिल से सराहा गया है

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  33. lahu ko bhi sard kiye jati hai



    wah bahut kuhb seema ji




    accha laga padh kar

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"Each words of yours are preceious and valuable assets for me"