


सांवली कुछ खामोश सी रात,
सन्नाटे की चादर मे लिपटी,
उनींदी आँखों मे कुछ साये लिए,
ये कैसी शिरकत किए चली जाती है....
बिखरे पलों की सरगोशियाँ ,
तनहाई मे एक शोर की तरह,
करवट करवट दर्द दिए चली जाती है....
कुछ अधूरे लफ्जों की किरचें,
सूखे अधरों पे मचल कर,
लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है...
सांवली कुछ खामोश सी रात अक्सर...

http://vangmaypatrika.blogspot.com/2008/11/blog-post_8604.html
http://rachanakar.blogspot.com/2008/11/blog-post_25.html
लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है...
ReplyDeleteसांवली कुछ खामोश सी रात .बहुत तल्ख़ बयान है .अच्छा है .
lahu ko bhi sard kiye jyati hai,waah bahut sundar
ReplyDeleteकुछ अधूरे लफ्जों की किरचें,
ReplyDeleteसूखे अधरों पे मचल कर,
लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है..
kya baat hai Seema ji--bahut hi achcha likha hai --tasveer bol uthi ho jaisey...
kafi gehri imaginations hai. kafi behtar bani hai. i hope u really caught ur line al along.
ReplyDeleteएक-एक पंक्तियॉं शानदार।
ReplyDeleteAs always , marvelous.....
ReplyDeleteकरवट करवट दर्द दिए चली जाती है...
ReplyDeleteगहरी किंतु शालीन अभिव्यक्ति ! शुभकामनाएं !
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...शुभकामनाएं...
ReplyDeleteSeema,
ReplyDeletetanha simti udaas si raat
kitni dard bhari har baat
zakhmon se koi choor ho jaise
ghum ke dariya bahe hon saath
kankar patthar kaante ghum ke
zakhm-e-dil par naye aaghaat
shaayed tum ko kuch bahlaa de
pyaar ki cchoti see saoghaat
tum ko padh kar dukh jhela hai
qubool karo mere jazbaat
Thanks
सूखे अधरों पे मचल कर,
ReplyDeleteलहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है...
सांवली कुछ खामोश सी रात अक्सर...
अच्छा लगा पढ़ कर...
ReplyDeleteअब इस आह के लिये वाह ही लिख सकता हू.
ReplyDeleteलहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है...
ReplyDeleteसांवली कुछ खामोश सी रात अक्सर...
u got terrific sense to commnad the words which flows like river from the mountain
regards
बहुत बढीया कविता।
ReplyDeleteआपकी हर कविता बढीया होती है।
सुंदर अति सुंदर रचना !
ReplyDeleteबिखरे पलों की सरगोशियाँ ,
ReplyDeleteतनहाई मे एक शोर की तरह,
करवट करवट दर्द दिए चली जाती है....
-क्या बात है, सुन्दर!
"सूखे अधरों पे मचल कर,
ReplyDeleteलहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है."
एकदम जीवन से हो उठे आपके भावः इन दो पंक्तियों में..
अच्छी रचना
सीमा जी आप की रचनाशक्ति बहुत अद्भुत है. बीच में चित्रों का संगम उसमें चार चाँद लगा देता है .
ReplyDeleteसांवली कुछ खामोश सी रात,
ReplyDeleteसन्नाटे की चादर मे लिपटी,
उनींदी आँखों मे कुछ साये लिए,
ये कैसी शिरकत किए चली जाती है....
बहोत ही मासूमियत भरी रचना,साथ में मेहसुसियत भी लिए है..
आपको ढेरो बधाई सीमा जी .
वाह!
ReplyDeleteसूखे अधरों पे मचल कर,
लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है...
सांवली कुछ खामोश सी रात अक्सर...
बड़ी सशक्त रचना है।
शानदार....बधाई सीमा जी .
ReplyDeleteऔर भी तनहा कर जाती है तनहा-तनहा बहती रात ....
ReplyDeleteचुपके-चुपके पैर दबाकर जाती है ये आती रात......
अक्सर आकर खा जाती है ख्वाबों को भी काली रात
गम रोये तो आँचल देकर मुझे सुलाती प्यारी रात....
प्यारा सपना आते ही दूर चली जाती सारी रात....
आँखों को मूँद लेता हूँ आखों में भर जाती रात....
शाम गए जब घर लौटूं तो जख्मों को सहलाती रात....
मुझसे तो अक्सर ही प्यारी बातें करती रात....
कुछ मुझसे सुनती है, कुछ अपनी भी सुनाती रात.....
"खामोश सी रात"
ReplyDeleteसांवली कुछ खामोश सी रात,
सन्नाटे की चादर मे लिपटी,
उनींदी आँखों मे कुछ साये लिए,
ये कैसी शिरकत किए चली जाती है....
बिखरे पलों की सरगोशियाँ ,
तनहाई मे एक शोर की तरह,
करवट करवट दर्द दिए चली जाती है....
कुछ अधूरे लफ्जों की किरचें,
सूखे अधरों पे मचल कर,
लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है...
सांवली कुछ खामोश सी रात अक्सर
किस कदर तन्हाई में
लफ्जों का इंतज़ार करते हुए
तुमको क्यूँ बेदर्द किए चली जाती है ....
खामोश सी रात अक्सर
Saanvlee see kuchh khaamosh see raat. Kitni behtareen peshkash hai aapkee aadarNeey Seemaajee. Kya kahna ! Aha !
ReplyDeleteघणी चोखी शे आप की कविता,
ReplyDeleteबहुत ही ्सुंदर कविता धन्यवाद
बहुत प्रखर अिभव्यिक्त । जीवन की िस्थितयों का यथाथॆ शब्दांकन । अच्छा िलखा है आपने ।
ReplyDeletehttp://www.ashokvichar.blogspot.com
" aap sbhee kaa bhut bhut shukriya"
ReplyDeleteRegards
बहुत बढ़िया लिख रही हैं आज कल शब्द संयोजन बहुत सटीक रहा है, तारीफ़ के लिए 'वाह' शब्द भी छोटा रहेगा इस बार!
ReplyDeletenice one mam, very good work
ReplyDeleteregards
कुछ अधूरे लफ्जों की किरचें,
ReplyDeleteसूखे अधरों पे मचल कर,
लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है...
सांवली कुछ खामोश सी रात अक्सर...
कुछ भी नहीं कह सकता सीमा जी,
बस यूँ ही लिखती रहिये....
कुछ अधूरे लफ्जों की किरचें,
ReplyDeleteसूखे अधरों पे मचल कर,
लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है...
सांवली कुछ खामोश सी रात अक्सर...
very nice seema ji keep it up
कुछ अधूरे लफ्जों की किरचें,
ReplyDeleteसूखे अधरों पे मचल कर,
लहू को भी जैसे सर्द किए चली जाती है.
दिल से लिखा और दिल से सराहा गया है
lahu ko bhi sard kiye jati hai
ReplyDeletewah bahut kuhb seema ji
accha laga padh kar