दमे फिराक था की लम्हा क़यामत का कसूर क्या था मेरी नादान मुहब्बत का लिखी हैं सिर्फ मेरी बेगुनाही की सजाएँ कानून अजब गजब है उनकी अदालत का .......... आपको बहुत से बधाइयाँ आप हर रोज बेहतर से बेहतरीन लिखते जा रहे हों.
आपसे एक गुज़ारिश है सीमाजी, या तो आप उड़ कर सामने आ जाइए, या हमारे क़त्ल को ख़ंजर भिजवा दीजिये. जज़्बात का इतना खूबसूरत खज़ाना हमने नहीं देखा है जी . हम बारहा आपके कायल हुए जाते हैं. मालिक बड़ी उम्र दराज़ करे आपकी .
महोदय ,जय श्रीकृष्ण =मेरे लेख ""ज्यों की त्यों धर दीनी ""की आलोचना ,क्रटीसाइज्, उसके तथ्यों की काट करके तर्क सहित अपनी बिद्वाता पूर्ण राय ,तर्क सहित प्रदान करने की कृपा करें
दम -ऐ -फिराक मे निकली थी जान मेरी ,
ReplyDeleteफ़िर क्यूँ लिखी गईं सजाएं नाम पे तेरी ???
आज की मैंने ये पहली पोस्ट पढी है !
मेरे पास तारीफ़ के लिए शब्द नही है !
सिर्फ़ इतना ही ...लाजवाब ! ..
शुभकामनाएं !
"Tau Je, thanks a lot for your wish along a word of appreciation early morning"
ReplyDeleteRegards
सजाएँ मिलती हैं, यही है दस्तूर |
ReplyDeleteहो या ना हो आपका कसूर |
अच्छी अभिव्यक्ति है, आपने दो पंक्तियों में ही काफी कुछ कह दिया है
on today's post i m speechless.
ReplyDeletethis is owesome
best wishes
Rakesh Kaushik
sirf yahi kahunga mukkamal likha hai aapne fir se seema ji.......... badhai swikaren..
ReplyDeleteregards
हमेशा की ही तरह.. लाजबाब
ReplyDeleteसजाएँ होती है फ़िर समझ लो जिन्दगी उनकी,
ReplyDeleteअगर मरने वाला हो ह्रदय की बंदगी उनकी.
यही जीवन है, जो आपने कहा है. बस एक पल है जिसके दायरे में हम जीते है.
इन छोटी सी लाइनों की तारीफ के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं....
ReplyDeleteपर फ़िर भी इतना कह देता हूँ की..
सुभान अल्लाह...
दमे फिराक था की लम्हा क़यामत का
ReplyDeleteकसूर क्या था मेरी नादान मुहब्बत का
लिखी हैं सिर्फ मेरी बेगुनाही की सजाएँ
कानून अजब गजब है उनकी अदालत का ..........
आपको बहुत से बधाइयाँ आप हर रोज बेहतर से बेहतरीन लिखते जा रहे हों.
सुन्दर
ReplyDeleteसजाएँ मिलती हैं, यही है दस्तूर |
ReplyDeleteहो या ना हो आपका कसूर
वाह जी बहुत ही लाजवाव
सुंदर अतिसुंदर,सुंदरतम!!
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteअजी जान तो आप साथ मे ले गई फ़िर सजा केसी , बहुत खुब
ReplyDeleteधन्यवाद
wah-wah
ReplyDeletelajawab, ati sundar.
ReplyDeleteमैं ताऊ से सहमत हूँ !
ReplyDeleteदम -ऐ -फिराक मे निकली थी जान मेरी ,
ReplyDeleteफ़िर क्यूँ लिखी गईं सजाएं नाम पे तेरी ???
the above need to be understand
between the lines u r still live
regards
दम -ऐ -फिराक मे निकली थी जान मेरी,
ReplyDeleteफ़िर क्यूँ लिखी गईं सजाएं नाम पे तेरी.
वाह लाजवाब.शुभकामनाएं.
very nice
ReplyDeleteआपसे एक गुज़ारिश है सीमाजी, या तो आप उड़ कर सामने आ जाइए, या हमारे क़त्ल को ख़ंजर भिजवा दीजिये. जज़्बात का इतना खूबसूरत खज़ाना हमने नहीं देखा है जी . हम बारहा आपके कायल हुए जाते हैं. मालिक बड़ी उम्र दराज़ करे आपकी .
ReplyDeleteवाह!आप वाक़ई दाद की हक़दार हैं।
ReplyDeleteअगर आप मेरी बात को मज़ाक़ में ना उड़ा दें तो यह कहूंगा कि आप को 'मलिका-ए-तख़्खयुल' कह दिया जाए तो ग़लत नहीं होगा।
कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया आपने। बधाई।
ReplyDelete'i am highly obliged and thank ful to all of you for your support and encouragement. ' with Regards
ReplyDeleteमहोदय ,जय श्रीकृष्ण =मेरे लेख ""ज्यों की त्यों धर दीनी ""की आलोचना ,क्रटीसाइज्, उसके तथ्यों की काट करके तर्क सहित अपनी बिद्वाता पूर्ण राय ,तर्क सहित प्रदान करने की कृपा करें
ReplyDeleteवाह...........
ReplyDeleteदो पंक्तिंया सिर्फ आपके लिये..
सुराही में समंदर दीखता है
मुझे तुझ में कलंदर दीखता है
--yM
ये तो माइक्रो गजल हो गई। सुन्दर!
ReplyDeletebeutiful lines
ReplyDeletebadhiya
दम भर को जरा दम भी ले-ले ओ फिराक .....
ReplyDeleteमैं जो आऊंगा .....
तेरी जान निकल जायेगी !!
(भूत जो हूँ )