8/08/2008

"अदा"




"अदा"

फिर वही आतिशफिशानी कर रही उसकी अदा
फिर वही मदिरा पिला डाली है उसके जाम ने ..........

जब भी गुज़रा वो हसीं पैकर मेरे इतराफ़ से

दी सदा उसको हर एक दर ने हर एक बाम ने......

एक अजब खामोश सा एहसास था दिल में मेरे

उसका नज़ारा किया है पहले हर इक गाम ने...


http://vangmaypatrika.blogspot.com/2008/09/blog-post_4097.html

9 comments:

  1. sach kahun,mere liye kuchh kathin hai ye

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  2. bahut achchi likhi hai...
    behatarin

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  3. जाम पे जाम जाम पे जाम पिए जा ए शाकी
    होश रहे ना रहे चिंता न कर संभालने वाले हैं बाकी

    बहुत खूब
    नशा हो रहा है अब तो मुझे

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  4. सबसे पहले तो बधाई ग्रहण कीजिये इस सुन्दरतम प्रस्तुति के लिए.
    आप कैसे लिख लेती है इतनी विविधता से और इतनी सुन्दरता से. ये जरुर बताएं.

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  5. jajbaaton ki mahfil
    jo aapne sajaai hai
    us per aitbaar ho kaise
    khamosh ehsaas ko jabaan mil jaaye jis tarhaa?

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  6. बेहद खूबसूरत...बहुत उम्दा...वाह!

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  7. बहुत अच्छी रचना है मुश्किल शब्द है मेरी समझ से बाहर हैं उर्दू हिंदी शब्दकोष पास रखना पड़ेगा फिर भी ये शेर तो बहुत ही अच्छा लगा .

    एक अजब खामोश सा एहसास था दिल में मेरे
    उसका नज़ारा किया है पहले हर इक गाम ने...

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"Each words of yours are preceious and valuable assets for me"